भोत दिनों से बाहेर चल रिया हूँ, तबियत भी ठीक नी चल रई थी, कजने कैसा लग रिया था, जी घबरा रिया था
फेर समझ आया कि गड़बड़ कहां हो रई हेगी
एक गुमटी से गर्मागर्म ताजी बन रही दस रुपए की मालवी झन्नाट सेव लेकर तीन - चार फ़क्की में खत्म की, ढेका पे हाथ पोछे और हेडपंप से पानी पिया चुल्लू भर के
है नी
***
बहुत पुरानी स्मृतियां कभी यूं कौंधती है कि मन विचलित हो जाता है और लगता है कि आ अब लौट चलें
स्मृतियां जोड़ती है, भावनात्मक रूप से तोड़ती है, तस्वीरों पर प्रतिबंध नहीं मन की गांठों पर प्रतिबंध लगना चाहिए़
***
पिछले दिनों कर्मवीर, माखनलाल पत्रकारिता विवि के खंडवा परिसर जाना हुआ, वहां के निदेशक मनोज भाई, आसिफ भाई, चौरे जी के साथ अन्य साथियों से मुलाकात हुई, साथ ही उस दिन उपस्थित छात्रों से बातें हुई, विकास संवाद के बारे में, कुपोषण, संविधान, समुदाय, मीडिया के ट्रेंड्स, बदलते परिवेश में भूमिका और कौशल - दक्षताओं के साथ क्या किया जाना चाहिए जैसे व्यापक विषयों पर छात्रों से बात करके अच्छा लगा, वे सभी तेजस्वी लगें और संभावनाओं से भरपूर, युवाओं की आंखों में उजाले है - बस उन्हें सही मौके की तलाश है
इस परिसर में जब से पत्रकारिता का पाठ्यक्रम बंद हुआ है छात्रों की संख्या पर बड़ा असर पड़ा है, अब कम्प्यूटर के पाठ्यक्रम ही है, कारण यह है कि मप्र के भोपाल कैंपस में ही छात्रों की भर्ती हो जाती है, शेष रीवा परिसर ने चले जाते है, कर्मवीर बाहर से एक बंगले नुमा भवन में लगा कोई निजी संस्थान लगता है, खंडवा में बहुत संभावनाएं है बल्कि मुझे लगता है यहां कानून और पत्रकारिता के साथ समाज कार्य यानी Law, Social Work and Journalism को मिलाकर एक अंतर आनुषंगिक पाठ्यक्रम बनाना चाहिए और यहां शुरू करना चाहिए़
साथ ही इस परिसर को अब अपनी जमीन और निज भव्य भवन की आवश्यकता है , भोपाल में भाई Vijay Manohar Tiwari जी, जो कुलपति है विवि के, वे इस ओर ध्यान देंगे और अपने कार्यकाल में यदि वो यह महती काम कर पाएं तो बड़ी बात होगी यह मेरे निज विचार है, पूर्वी और पश्चिम निमाड़ अपने आपमें संस्कृति, कला और शिक्षा को लेकर समृद्ध है और यहां बहुत संभावनाएं है
इस विवि से बहुत पुराने संबंध है, स्व कमल दीक्षित जी, शरद बेहार जी, रामशरण जोशी जी, दीपक तिवारी जी के समय से भोपाल परिसर में आना जाना लगा रहता था, स्व पुष्पेंद्र पाल सिंह जी के साथ यहां के बच्चों ने मेरे पूर्व के संस्थानों में बहुत काम किया, इंटर्नशिप की और आज वे देशभर के मीडिया संस्थानों में है, हमारे मीडिया फेलो रहें और आजतक जुड़े हुए भी है - तो मैं कभी मौका नहीं चूकता यहां के फैकल्टी सदस्यों या छात्रों से मिलने का , यह विवि घर सा लगता है - बहरहाल , एक अच्छा दिन खंडवा में बीता
इस पूरे फसाने में इसी परिसर के पूर्व छात्र जो इन दिनों कानपुर से पीएचडी कर रहे है अखिलेश यादव को शिद्दत से याद किया गया और Asif Siddiqui भाई ना होते तो मैं समय पर जा भी नहीं पाता और प्यारे लोगों से मिल भी नहीं पाता, शुक्रिया आसिफ भाई
***
Comments