सीधी सी बात है नरेंद्र मोदी सरकार, अमित शाह ने ईवीएम के जरिए सन 2011 से फर्जीवाड़ा करके चुनाव जीते हैं और ये सब महाभ्रष्ट और काइयां है, हर मोर्चे पर असफल इस मोदी सरकार ने विदेश नीति तो बर्बाद की ही, बल्कि देश को भी भुखमरी के कगार पर ला दिया, नौटबंदी के गोरख धंधे से शुरू हुआ यह खेल अब SIR तक आ पहुंचा है
अब समय आ गया है नरेंद्र मोदी सरकार अपने धूर्त और बदमाश मंत्रियों सहित इस्तीफा दें, वोट चोर तो है ही, पर ये देश के साथ देशवासियों को बेवकूफ बनाकर कार्पोरेट्स को फायदा पहुंचा रहे है, हिंदू राष्ट्र के नाम पर ये खुले आम अपनी ही जनता को धोखा दे रहे है
अब असली आजादी के आंदोलन की जरूरत है, मोदी और इसके पूरे मंत्रिमंडल से, चुनाव आयोग से, अदाणी और अंबानी जैसे बदमाश शोषकों से आजादी
यदि राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट कुछ नहीं कहता स्वत: संज्ञान लेकर तो इनकी भी महत्ता कुछ नहीं है मतलब, और इस पाप में ये भी शामिल है
अगर इस चुनाव आयोग और सरकार में थोड़ी भी शर्म है तो राहुल के सबूतों को तार्किक ढंग से काटकर दिखाए और असली बात जनता के सामने रखें, वरना इस्तीफा दे
ज्ञानेश कुमार डूब मर कमीने चुल्लू भर पानी में, तुम ब्यूरोक्रेसी के सेप्टिक टैंक के वो सबसे हल्के पदार्थ हो - जो तैरकर सबसे ऊपर आ गए हो, तलूए चाटकर कब तक जिंदा रहोगे हरामखोर
संघी दिमाग को चढ्ढी से पेंट पहनाकर साध लिया तो उनके भूसे में कुछ समझ आयेगा नहीं, न्यूयॉर्क के मेयर का चुनाव इस बात की आश्वस्ति है कि अब गधों और हरामखोरों को जनता जान रही ही और ये सब भागेंगे, जनता सड़क पर दौड़ा दौड़ाकर मारेगी ट्रंप हो या अपने यहां के उजबक तानाशाहों को, ऐसा कैसा रामराज ला रहा है मोदी कि जनता को ही खारिज कर रहा है कायर
वोट चोर गद्दी छोड़
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किसी ने अभी पूछा - "संदीप, एक प्रश्न है -
बहुत देर तक सोचना नहीं पड़ा और प्रत्युत्पन्नमति से उत्तर दिया कि - "सिर्फ मन की शांति, सुकून और संतोष, निरपेक्ष और तटस्थ भाव से जीना , सब कुछ छोड़कर जैसे यह एक यात्रा है और हमें बस अगले स्टेशन उतरना है, हम उतरते समय रेल की सीट उखाड़कर नहीं ले जाते, बस के शीशे नहीं रख लेते बैग में, अपने संग चल रहे सहयात्रियों से बहुत बात होती है, बहुधा हम खुल भी जाते है, खाने से लेकर विचार शेयर करते है, सहजता से एक प्रेम भी हो जाता है, पर स्टेशन आने पर उतरना ही पड़ता है, बिछड़ना ही पड़ता है, जैसे हम बगैर अपेक्षा से हर यात्रा में उतर जाते है - वैसे ही रहना है जीवन में"
याद रहे कि हर पल एक स्टेशन गुजरते जा रहा है, हर पल हम आगे बढ़ रहे है, हर क्षण सब कुछ पीछे छूटते जा रहा है, हम जैसे एक नदी में दो बार नहीं उतर सकते, वैसे ही एक सफर में पीछे लौटना मुश्किल होता है, इसलिए निर्मोही रहो, बाहर से गुजरते जा रहे, नदी - पहाड़ - पुल - झरने - सड़कें - भोगदे या क्रॉसिंग पर खड़ी उतावली भीड़ को ना देखो, बस यह देखो कि हम कहां है, कितने और स्टेशन बाकी है, यात्रा तो अनवरत जारी ही है, आराम कर लो, सब सहेज कर अपनी गठरी में रख लो - क्योंकि यही अब आपके साथ जायेगी, जो काम का नहीं है या जो उपयोग में आ गया है - उसे बाहर के संसार में फेंक दो और आहिस्ते से दरवाज़े तक पहुंच जाओ
उतरते समय भीड़ होगी - चढ़ने और उतरने वालों की, कुछ छूट ना जाए और किसी को सहारा ना देना पड़े
सफर में हूँ और हर सफर की अपनी प्रसव पीड़ा होती है, बस चंद स्टेशन और फिर सब खत्म, लगता है सुरंग बहुत लंबी, घुमावदार और अंधेरी थी, जिसे पारकर रोशनी के इस मुहाने पहुंचा हूँ, आगे सब साफ है अब
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हमारा अस्तित्व एक तिनके के क्षणांश भी नहीं फिर काहे को निंदा, खुशी, परपीड़न, मोह, तनाव, अवसाद और संत्रास - एक ही जीवन है और साठ - सत्तर वर्ष में क्या ही कर लेंगे, अपना जीवन जी ले वही बहुत है
ओशो कहते थे कि जो जीवन जैसा है, उसे वैसे ही स्वीकार करना शुरू करो, जब आप लड़ना बंद कर देते हैं, तो आपको शांति मिलती है और मानसिक तनाव कम होता है, उन्होंने सिखाया कि जीवन के प्रति साधारण और सरल दृष्टिकोण अपनाना महत्वपूर्ण है, जो किसी भी स्थिति में खुशी दे सकता है
और मै अपने हिसाब से सिर्फ इतना कहूंगा कि बस अब उसी अवस्था में आ रहा हूँ, मोहमाया से दूर होते - होते तटस्थ भी होना सीख रहा हूँ, व्यक्तिगत लड़ाईयां, द्वेष भाव, ईर्ष्या और क्रोध पर लगभग नियंत्रण पा लिया है, कृतज्ञता का भाव अपना रहा हूँ, दूसरों की बात पर ध्यान देना बंद कर दिया है, वृहद मुद्दों पर अभी भी क्षोभ है और इसलिए उबल पड़ता हूँ
अपने आप पर भी काबू पा लिया तो जीवन धन्य होगा और सफर आसान हो जायेगा
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हमारे सारे कर्म, सुख या दुख या अच्छाई और गलती हमारी है, हम जो बोलते है, करते और समझते है - उसके लिए हम ही जिम्मेदार है, किसी और को दोष देना सिवाय मूर्खता के कुछ नहीं, इसलिए हमें यदि सही या तथाकथित रूप से सुधरना है तो हमें ही सारे प्रयास और सारे हथकंडे अपनाने होंगे - क्योंकि इसके लिए हम किसी पर निर्भर नहीं रह सकते , दूसरे क्या कर रहे है, क्या कह रहे है, या क्या धारणा बनाते है - इसके लिए हमें अपनी समझ को बार - बार दुरुस्त करते हुए ही निर्णय लेना होगा, एक ही जीवन है और हम क्या सोचे, क्या समझे और क्या करें या क्या ना करें - यह निर्णय जब तक हम अपने हाथ में नहीं लेंगे, तब तक खुश होना तो दूर - हम सहजता से जी भी नहीं पाएंगे
सरल सी एक ही बात अब तक समझ आई कि किसी बात पर ध्यान मत दो और जो करना है - वह कर गुजरो, दूसरों की बातों, निंदा, स्तुति या बकवास पर ध्यान दोगे तो जीवन में अपने - आपको जस्टिफाई करते - करते ही सब खत्म हो जायेगा, जो करना है - करो और किसी की परवाह मत करो, एक ही जीवन है, भरपूर जियो - सारी हदें तोड़कर और वर्जनाओं से मुक्त होकर, अंत में यह महसूस होगा कि जिन मूर्खों के लिए जी रहे थे या समर्पण कर रहे थे, जिनसे डर कर छुप रहे थे, उन्होंने कभी आपके बारे में सोचा ही नहीं
All autobiographies are lies. I do not mean unconscious, unintentional lies. I mean deliberate lies. No man is bad enough to tell the truth about himself during his lifetime, involving, as it must, the truth about his family, friends and colleagues. And no man is good enough to tell the truth in a document which he suppresses until there is nobody left alive to contradict him.”
— George Bernard Shaw
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The Joy of Learning
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ग्वालियर से आई एक महिला परियोजना अधिकारी ने कहा कि "यहां पर रहना और सीखना इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हम लोग घर से कम-से-कम चार-पांच दिन बाहर हैं, और हमें वह सब नहीं करना पड़ता - जो रोज अपने घर में - दफ्तर में काम करना पड़ते है, आपको बताऊँ एक दिन तो मैं सुबह 5:00 बजे ही उठ गई और अपने हॉस्टल के कमरे के अंधेरे में ही ढूंढने लगी कि फ्रिज कहां पर है, क्योंकि दूध निकालना है चाय बनानी है, सब्जी साफ करनी है और खाना बनाना है - पर फिर याद आया कि अरे मैं तो घर में नहीं हूँ, मैं इस समय भोपाल में हूँ और एक बहुत अच्छा प्रशिक्षण ले रही हूं और उसके बाद मैं फिर 8:00 बजे तक सोती रही"
अशोकनगर से आई एक महिला पर्यवेक्षक ने कहा कि "हमें यहां पर सब कुछ रेडीमेड मिल रहा है, ना सफाई करना पड़ रही है, ना कपड़े धोना पड़ रहे हैं, सुबह नाश्ता रेडीमेड मिल जाता है, चाय मिल जाती है, खाना मिल जाता है, दिनभर हंसी-खुशी के माहौल में हम ढेरों बातें सीखते हैं और शाम को हम सब मिलकर बाजार जाते हैं और शॉपिंग करते हैं, रात को खाना खाते हैं और देर तक गप्प करते रहते हैं, अपने संगी - साथियों के साथ हमें समझ में आ रहा है कि सीखना हमेशा आनंदमयी प्रक्रिया है और विभाग के प्रशिक्षण से हटकर यह प्रशिक्षण बहुत बेहतर है क्योंकि हमें कोई डांट - फटकार नहीं रहा है, और हम मजे-मजे में बहुत सारे कौशल और दक्षताएं सीख रहे हैं, असल में यह सब चीज हमें पता थी - परंतु व्यवस्थित ढंग से जो सीखना यहां पर चार दिनों में हुआ है वह अकल्पनीय है", महिलाओं के लिए ये चार - पांच दिन अनूठे और निराले होते है जहां वे तन्मयता से बदलाव के गुर सीख रही है
महिला बाल विकास विभाग, मप्र शासन एवं GIZ के सौजन्य से चार दिवसीय प्रशिक्षण राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान, भोपाल में संपन्न हुआ जिसमें ग्वालियर और शहडोल संभाग के लगभग 60 प्रतिभागी उपस्थित थे, हमने समुदाय में व्यवहार परिवर्तन कैसे हो और अपने काम के साथ कैसे इसे जोड़े - ताकि हम निर्धारित लक्ष्य प्राप्त कर सके इसके बारे में सीखा, इस प्रशिक्षण में मैंने अपने सह प्रशिक्षक शाद भाई, हनीफ शेख, उपासना और पवन भैंसारे के साथ मिलकर 4 दिन का प्रशिक्षण संपन्न किया, इन भागीदारों के साथ प्रशिक्षक के तौर पर रहना बहुत ही अच्छाअनुभव था
अभी तक हम लोग मप्र के पांच संभाग के पांच बैच में यह प्रशिक्षण संपन्न कर चुके है और हर बार भागीदारों को सीखाने के साथ मैं खुद बहुत कुछ सीखता हूँ और यह मेरे लिए बहुत शैक्षिक और सुखद होता है
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बिहार चुनाव देश का बदनुमा दाग़ है
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बिहार चुनाव में जो आज हत्या हुई और किसी विधायक उम्मीदवार पीयूष पर हमला हुआ, वह शर्मनाक है, अस्वीकृति की संस्कृति को स्वीकारना और असहमति को सम्मान देना यदि नहीं आता तो बंद कर दीजिए यह नौटंकी कु-सरकार बहादुर और नीतीश नाम के कलंक
इस तरह की हत्याएं अस्वीकार्य है और यदि कानून व्यवस्था बिगड़ती है तो नीतीश से लेकर लालू तक को जेल में बंद कर दिया जाए, मोदी, शाह, मनोज तिवारी जैसे भांड से लेकर योगी, राहुल आदि की सभाएं खारिज कर इन नेताओं के राज्य में प्रवेश पर तुरंत रोक लगाई जाए, ये लोग सौहार्द्र बढ़ाने के बजाय लोगों को धर्म, जाति और रोजगार के नाम पर उकसा रहे है
14 नवंबर तक मीडिया जैसे दलाल और नीचतम माध्यम को नियंत्रण में रखना जरूरी है, वरना अनंत सिंह से लेकर लालू, नीतीश, तेजस्वी, चिराग या जीतनराम तक के लोग तांडव करेंगे
हमें इन चुनावों में गर्व होने के बजाय शर्म आ रही कि क्या - क्या बेवकूफियां लोकतंत्र के नाम पर बिहार में हो रही है और इसमें हत्या भी शामिल है, मजेदार यह कि ये राज्य और यहां के लोग अपने को बुद्धिजीवी और ब्यूरोक्रैट बनाने की मशीन कहते है, और मेरा स्पष्ट रूप से मानना है कि इस सबके के लिए जिम्मेदार केंद्र सरकार है, साथ ही वो बिहारी भी जो देशभर में नौकरी करके रोटी कमाते है और बकलोली करते है, ज्ञान पेलते है यहां - वहां जाति व्यवस्था पर, बिहार जाकर उज्जड़ भी हो जाते है एवं अपने ब्राह्मण, भूमिहार या दलितों के घेटों के संग - साथ उत्तेजक भीड़ में शामिल हो जाते है
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मै अब कहानियों पर यकीन नहीं करता, जीवन में कहानियों को बहुत सुना, करीब से घटते हुए देखा, कहानियों को जिया भी है, और कहानियों को बुनते हुए भी देखा - कहानियां सच्ची और झूठी भी होती है, अपने स्वार्थ और निजी फायदों के लिए लिखी - बुनी और सुनी - सुनाई जाती है या प्रस्तुत की जाती है या बेची जाती है, हम सब जानते है कि पुरस्कारों के लिए कहानियों का होना कितना जरूरी है और जीवन में इनका होना भी
कहानियों पर यकीन करना इसलिए छोड़ा कि बहुत कहानियां जीवन में लिखी - जो वास्तविकता से कोसों दूर थी और सिर्फ एक संदेश के लिए समूचा ताना-बाना बुना था मैने, जीवन में अपने अलावा मैने हजारों लोगों को पढ़ा और समझा, लाखों लोगों को कहानी के किसी चलते - फिरते पात्र के रूप में देखा है पर असली कहानी के लिए आज भी आँखें तरस रहीं है, अब मै किसी भी शख्स, घर, परिवार या समाज में कहानी नहीं देखता - क्योंकि अब मैं कहानी बुनकर बेचना नहीं चाहता
कहानियों के कहने वाले पर भी गहरा संदेह होता है - क्योंकि किसी ने अपने आप को आजतक गद्दार नहीं कहा या कहानी का दुखद अंत नहीं लिखा, जो लिखा वो मात्र दिवास्वप्न ही था - जो सिर्फ स्वांत - सुखाय ही था, कहानियां मन बहलाव का साधन निकली जिसकी छाया तले हम अपना दर्प पालते रहते है और खुश होकर एक भ्रम में जीवन निकाल देते है, और जब जीवन अंत की ओर आता है तो सिवाय गुनगुने पछतावों के कुछ नहीं हाथ लगता, अंत में आँखें मूंदते समय हम एक दुखांत वाली कहानी के चरित्र के रूप में खत्म हो जाते है
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