आज यह अनमोल तोहफ़ा मिला - "लोकगायन में कबीर" - कबीर के 125 दुर्लभ लोकपदों का संग्रह अर्थ सहित- डॉक्टर सुरेश पटेल ____ कबीर को 1987 से व्यवस्थित ढंग से पढ़ना - समझना और गुनना शुरू किया था, अफसोस यह रहा कि मालवा में रहकर भी वाचिक परम्परा में कबीर से बहुत देरी से जुड़ा और अब तक जो समझा वह बहुत कम समझ पाया हूँ, और लगता है कि कबीर को समझने के लिए एक क्या दस जीवन भी कम है, अपने संगीत गुरू स्व पंडित कुमार गन्धर्व जी के भजनों ने एक नया झरोखा खोला और दिमाग़ के कुछ जाले साफ़ किये, भजनों की शास्त्रीयता से लोक शैली में कबीर को समझना आसान था पर कुछ शब्दों की क्लिष्टता और कुछ ठेठ मालवीपन से दिक्कत हुई पर धीरे - धीरे सब साफ होता रहा और इस सबमें बहुत सारे लोगों का हाथ रहा एक लम्बी यात्रा लगभग 35 वर्षों की रही है - पदमश्री प्रहलाद टिपानिया जी, डॉक्टर Suresh Patel जी, नारायणजी देलम्या जी, कालूराम जी बामनिया, मित्र दयाराम सारोलिया से लेकर प्रोफेसर Purushottam Agrawal जी और विदुषी Linda Hess जी जैसे स्कालर्स से बहुत सीखने को मिला, मालवा की असँख्य भजन मंडलियों ने बहुत बारीकी से मुझे मांजा और पक्क...
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