Skip to main content

Basics of Life 27 Jan 2019 and Few Points on Manikarnika



परेशान हो - जीवन, प्रतिस्पर्धा, असफल होने और तनावों - अवसादों से, जेब मे रुपया नही है, घर दोस्तों से निराश हो, प्रेम में असफल और अपनी पीड़ा भी नही कह पा रहे तो सुनो -

◆घर से निकलो
◆अनजान लोगों से मिलो
◆उनके संघर्ष को समझों

◆पैदल चलो शहर में
◆अंधेरे दबे कोनों में जाओ
◆मदमस्त हो जाओ 
◆वर्जनाएं तोड़ो 
◆उन्मुक्त हो जाओ 
◆मन के कोनो को जीने दो
◆अपनी गलीज़ बौद्धिकता खुद पर मत थोपो
◆जीवन को जीवन रहने दो
◆यह कोई पुरस्कार की दौड़ नही
◆यह खुद को समझने की पहल है
◆किसी को क्यों देखें हम
◆हम किसी के लिए नही बनें हैं

मेरा जीवन है और इस पर सिर्फ मेरा अधिकार है
*****
21 वी सदी के दूसरे दशक की घटिया फ़िल्म - मणिकर्णिका
◆◆◆

इतने अच्छे भव्य दृश्य, सिनेमेटोग्राफी और पर्याप्त से ज़्यादा रुपया खर्च करने के बाद भी कमजोर
कंगना के बजाय सोनाक्षी या दीपिका पादुकोण या अभिषेक की घरवाली को ले लेते तो भला होता दर्शकों का
फिल्मी दुनिया से इतिहास की उम्मीद करना नितांत मूर्खता है इसलिए कोई टिप्पणी नही
डायलॉग लिखने वाला किसी चलताऊ किस्म का कहानीकार होगा जो सेटिंगबाज किस्म का होगा और उसे लगा होगा इस मूर्खतापूर्ण लेखन में उसकी पुरस्कार लायक घटिया कहानी की तरह उसके सड़कछाप डायलॉग लेखन को बुकर मिल जाएगा
पूरी फिल्म में फ़िल्म की फिलिंग ही नही निहायत हड़बड़ी में खत्म करके निर्देशक ने लूट लिया बेदर्दी से, इससे तो नवाजुद्दीन की ठाकरे देखता तो राजनैतिक समझ बनती कम से कम
मेकअप तो गज्जब का है स्लीवलेस से लेकर गजब का परिधान है और इतनी दूर विठुर, कालपी, झांसी और ग्वालियर में उस समय इतना विकास था तो अंग्रेज ही भले थे
गीत और संगीत की गुंजाइश ना होने पर भी कुछ का कुछ ठूँस दिया यह निर्देशक की बुद्धि है
बाकी क्या लिखूँ और ढाई घँटे में इत्ता सारा दिखाना और अंत में ॐ बनाकर झांसी की रानी को जलाना भी था
समय , रुपया और दिल दिमाग बर्बाद करना हो तो जाएं मणिकर्णिका
वाहियात, बकवास और पछतावा

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...