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Showing posts from April, 2017

मै इस काया में कुछ इस तरह

मैं इस काया में कुछ इस तरह  मेरे भीतर बहते खून का अंश नदियों से आता है  इसलिये वह निस्तेज बहता रहता है। पहाड़ों से मैंने सख्ती ली है जो मेरी हड्डियों में कड़कड़ाती है  इसलिए जल्दी टूटता नही मैं ! मेरी मज्जाओं में कोमल पत्तियाँ खिलती है, मेरी नसों में ये झूमती पत्तियाँ नृत्य करती है  और इस तरह मरुथल में भी जीवन आगे बढ़ता है। मेरी घ्राणइंद्रियों में मौलश्री और मोगरे की महक है, रातरानी और मधुमती को गुनता हुआ  जीवन को रसों से सरोबार कर रहा हूँ ! मेरी आँखों से गिरते आंसू तपती धूप में भभकते आसमान से बिखरती वर्षा की बूंदें है  जो असमय आकर सब कुछ शांत कर जाती है। मैं सुनता हूँ घास के तिनकों की आहट जो आपस मे बतियाते हुए कहते है कि इस आपाधापी में  अपने अंदर के सुरों को ध्यान लगाकर सुनते रहना, जो तुम्हारे अंदर अनहद बजता है उसे मत छोड़ना ! मेरे पांवों में सृष्टि का घूमता पहिया है जो सारे संसार को नाप लेना चाहता है  और गति को उलटना भी !!! मेरे हाथ मेरी सीमाओं को तय करते है जो दूर क्षितिज तक जा सकते है  और अनंतिम दिशाओं तक पस...

आशिक की है बारात - जरा झूमके निकले. 27 April 2017

भौंडी आवाज में गरीब बैंड वालों को गवाने वालों, ढोल और ताशों से दूसरों का चैन छिनने वालों, सड़कों पर घटिया नाच कर ट्रैफिक जाम करने वालों - जाओ तुम्हे श्राप देता हूँ कि तुम्हारे वैवाहिक जीवन मे इससे ज्यादा कलह और शोर हो, तुम्हारी जीवन गाड़ी हमेंशा किसी ट्रैफिक में दबकर सिसकती रहें और तुम अपनी घरवाली के ढोल ताशों पर ताउम्र नाचते रहो और कोई एक चवन्नी भी ना लुटाएं, तुम्हारे जीवन मे बिजली ना आये और ऐसा अंधेरा छा जाएं कि तुम एक जुगनू के लिए तरस जाओ। शादी कर रहे हो तो क्या किसी के बाप  पर एहसान कर रहे हो - साला रात रात भर पुट्ठे हिलाकर नाचते हो और दूसरों की नींद हराम करते हो, बारात में घण्टों सड़कों पर मटकते रहते हो, तुम्हारी शादी क्या इतिहास में पहली बार हो रही ? साला अपना जीवन तो नर्क बनाओगे ही शादी के बाद - उसके मातम में हम सबको क्यों लपेटे में लेते हो ? और प्रशासन , पुलिस खींसे निपोरकर नाचते लौंडों और पसीने में नहाती औरतों को घूरकर मजे से देखती रहती है कि कही कुछ दिख जाए, सड़क पर और छतों पर खड़े लोग काल भैरव को मन्नत करते है कि कुछ सामान दिख जाए तो दिन बन जाएं - इन सब बारातियों...

रज्जब अली खां मार्ग से टेकड़ी के रास्ते तक - दस कविताएँ

रज्जब अली खां मार्ग से टेकड़ी के रास्ते तक   _______________________________________________________ 1 कहते है मालवे के पठार पर संगीत सर चढ़कर बोलता है बड़े बड़े धुरंधर पैदा ही नही हुए वरन दूर दूर से आकर बस गए लोग संगीत में शुभ अशुभ के महत्व के होते भी शरीर की खामियों के बाद   चुनौती दी और गाड़ दिए झंडे ऐसे कि बनारस के घाट सूने हो गए   चंडी , रंडी , भंगड़ी और गंगा के लिए जाने जाने वाले बनारस में भी   ऐसा प्रताप नही बरसा जबकि छोड़कर नही गए बिस्मिल्लाह खां घाट छोड़कर कभी छन्नूलाल गाते रहे जीवन भर और कबीर का नाम जुड़ा होने के बाद भी बनारस बना नही रहा इलाहाबाद , पटना , मद्रास या बड़ौदा भी दे नही पाया संगीत को वो सब   जो इस पठार ने अवध को पछाड़ते हुए दे दिया रज्जब अली , उस्ताद अमीर खां , लता मंगेशकर , कुमार गन्धर्व या मुकुल शिवपुत्र   दुनिया को घुंघरू में बांधकर पैरों में फंसाकर ढेरो रुपया कमाने वाले प्रिया प्रताप पंवार कहते है शबे मालवे की फिजां में संगीत जहर की तरह भरा है ये पागलपन ही यहां के लोगों को सुरों की गुलामी में जीने को अभिशप्त कर देता ह...

A Few Posts in April 2017

प्रोफेसर यशपाल ने 1991 में साक्षरता आंदोलन के समय कहा था कि स्कूल , कॉलेज और विश्व विद्यालय एक साल के लिए बन्द कर दो और देश को साक्षर करो। मैं आज आव्हान करता हूँ कि सच मे दो साल के लिए सब बन्द कर दो और जागरूकता पैदा करो, जूझने दो युवाओं को, किशोरों को देखने दो देश और समस्याएं, जाने दो खेतों और कारखानों में । प्रशासनिक कर्मचारियों, मास्टरों और ब्यूरोक्रेट्स को खेतों में भेजो हम्माली करने दो ससुरों को, गाय भैंस बकरी चराने दो, जंगल मे लगे पौधों में पानी डालने की ड्यूटी लगाओ तब स मझ आएगा कि कागज, आधार कार्ड, राशन कार्ड और नियम कायदे क्या होते है। गोबर उठवाओ और कंडे थापने दो तब भूलेंगे ऑफिसर्स क्लब की रंगीनियाँ। डाक्टर, वकील और एनजीओ वालों को अंडमान की सेल्युलर जेल में डाल दो और गड्ढे खुदवाओ इनसे। मीडिया को तब तक तुम्हारी मालिश, भड़ैती, और निज कक्षों में रखों ताकि तुम्हारे अहम और दर्प को सिसकार मिलती रहें, मीडिया मर्सिया गाकर पूरा खुला और घोषित भाट चारण बनकर नंगा हो जाये और इतना सक्षम कि ये युवा दो साल बाद लौटें तो इनकी मार खाने लायक बन सकें । फिर ये युवा तय कर लेंगे कि उन्हें क्या ...