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Showing posts from February, 2025

Drisht Kavi and other Post of 28 Feb 25

एक पुस्तक का विमोचन इतनी बार हो रहा है कि कहा नही जा सकता, मुम्बई से लेकर कालूखेड़ी , अमेरिका से लेकर भैंसदेही तक, अंडमान निकोबार से लेकर बीजाडांडी तक - लिखे और छपे हुए जुम्मे - जुम्मे दो हफ्ते बीते नई और उम्मीद इतनी कि पचास लाख प्रतियां बिक जाएँ किसी तरह से - पूरा खानदान लग गया है लेखक और प्रकाशक का, बस फर्क इतना है कि प्रकाशक सभी के साथ न्याय कर रहा है धीरे से सबकी किताबों का केश लोचन करवा रहा है पर लेखक तो एकदम ई भयानक आत्म मुग्ध हो गया है - सुबह दिशा मैदान को जा रहा तो किताब ले जा रहा है कि "भाई हाथ भी मत धो - पेले बिमोचन कर दें, फोटू पेलना हेगा फेसबुक पर" और प्रचार का तो पूछो ई मत भिया - बीबी, माशुकाएं, बच्चे, सास, ननद, बहु, टोमी, कालू, मोती और रेट कैट तक कर रिये हेंगे पर फिर भी ससुर एक लम्बर पे नई आ रई हेगी - सबसे हाथ पाँव जोड़कर लिखवा लिया, फोटू मंगवा लिए पढ़ते हुए , पोष्ट भी कर दिए पर माल बिक नई रिया क्या इलाज है किसी के पास #दृष्ट_कवि *** मप्र का राजगढ़ - ब्यावरा पुण्यात्माओं की भूमि है आज की खबर यह है कि मधुरानी तेवतिया दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की प्रमुख सचिव ...

Cherry, Khari Khari, Man Ko Chithti and other Posts from 15 to 25 Feb 2025

सामाजिक नागरिक संस्थाओं में काम तो बहुत होता है परंतु काम करने के अपने द्वंद, समस्याएं, चुनौतियां और रास्ते बहुत मुश्किल है - खासकरके पिछले दो दशक से सामाजिक संस्थाओं के सामने काम करने की बड़ी चुनौतियां खड़ी हो गई है ; समाज - सरकार और अनुदान देने वाली संस्थाएं - यानी तीनों के साथ तालमेल बिठाकर समाज के गरीब और वंचित वर्ग के साथ उनके हकों को दिलाने के लिए काम करना बहुत मुश्किल होते जा रहा है दूसरा यह भी है कि जिस तरह से इधर संस्थानों में काम होता है - उससे लग रहा है कि सामाजिक नागरिक संस्थाएं अपने उद्देश्य तक नहीं पहुंच पा रही है और कुल मिलाकर अपने आंतरिक मसलों में उलझ कर रह जाती है. इसके कई कारण है - संस्थानों में टीम प्रबंधन का ना होना, संस्थाओं को अपने मायने और बुनियादी दृष्टिकोण की समझ ना होना, कार्यक्रम प्रबंधन ठीक से ना कर पाना, और अलग -अलग स्तर पर समाज और सरकार के साथ संचार को लेकर स्पष्टता नहीं होना बड़ी वजह है, जिसकी वजह से ना मात्र कार्यक्रमों पर असर पड़ता है बल्कि वांछित परिणाम भी नहीं मिल पा रहें है इन सब मुद्दों पर बहुत शोध और काम हुआ है, परंतु वह या तो अंग्रेजी में है या फि...

Khari Khari, Man Ko Chiththi - Posts from 1 Feb to 14 Feb 2025

कभी कभी थोड़ी सी लापरवाही या आलस जीवन भर का अफसोस बन जाता है, यह सिर्फ़ भुगत कर ही महसूस किया जा सकता है *** असुरों को हराने के लिये अप्सराओं की ज़रूरत होती है और यह बात समझने में बहुत लोग चूक जाते है, बेहतर है कि जितनी जल्दी हो समझ लें ताकि आप राज, समाज, सत्ता और अर्थ को भलीभाँति समझ सकें [ कृपया जेंडर से इसे जोड़कर ना देखें - इस समय अप्सराएँ खुद इस संवेदनशील और गहन उपयोग के लिये स्वयं तत्पर है ] #खरी_खरी *** दिल्ली पुस्तक मेले में हर दिन होने वाले विमोचन का होना शुभ है पर जो आलू बोल रहे है ज्ञान दान कर रहें है किसी भी विधा पर बग़ैर किताब पढ़े और मैला सा अंट-शंट बोल रहे है उसे आप एक बार ठहरकर सुन लें तो कसम से मेले से भाग जायेंगे दूसरा, विमोचन के फोटो देखिये ज़रा - बस 4,5 लोग जिनका केशलोचन हो रहा है वो पोस्ट हो रहा पर विपरीत दिशा में जो निर्वात है या पाठक या श्रोता है - वो नदारद है इसलिये उनके फोटोज़ नही है कुछ धाकड़ प्रकाशक एकदम से बूढ़ा गए है, थक गए है और उनके स्टॉल मरघट सी शांति लिये है और वे किसी हरिश्चंद्र की तरह इन मरघटों की चौकीदारी करते नजर आ रहें है - इनके लेखक ही कन्नी काटकर निकल गए ह...

समाज कार्य में क्या ना करें Feb 2025 - Posts

4 ढेरों क़िताबें मंगवाकर रखी है, सेट के सेट, कहानियाँ, कविताएँ, उपन्यास, पत्रिकाएँ - पर अफ़सोस अपनी ही दुनिया में इतना उलझ गया हूँ और कुछ आलस तारी हो जाता है, लम्बे सफ़र के बाद जब - जब लौटकर घर आता हूँ तो और इस सबमें बिल्कुल भी समय ही नही मिलता पढ़ने को और लिखना छूटने की पीड़ा से तो इतना त्रस्त हूँ कि फेसबुक पर भी आवक कम हो गई है नेटफ्लिक्स, अमेज़ॉन, ज़ी - 5, डिस्कवरी से लेकर तमाम चैनल्स और ओटीटी की सदस्यता है, पर फिल्में, डॉक्युमेंट्रीज़ या संगीत के कार्यक्रम भी नही देख पा रहा हूँ , शरीर की बीमारियां, काम का तनाव, निश्चित अवधि में सब एक साथ समेट लेने के दुष्प्रयास और दो जून की रोटी... उम्र का लम्बा हिस्सा इस सबमें ही बीत गया - जो लिखा-पढ़ा था, अब वही ताक़त है बस, वही एक हिम्मत है कि शायद कभी कुछ फिर से लिख सकूँ, समालोचना या रंजकता की विरल या सघन दृष्टि से कुछ पढ़ पाऊँ, इस सबमें सबसे ज़्यादा दिक्कत यह हुई कि काम के लिए लिखने की एक कृत्रिम और सबको ख़ुश करने वाली भाषा ने मन - मस्तिष्क पर कब्ज़ा कर लिया और वहाँ पचास निरीक्षक खड़े मिलें - ऐसे - ऐसे उजबक जो ना लेखन की पुख्ता समझ रखते थे, ना साहित्य की - ...