Three of Us के बहाने से विरेचन व्यथा 31 Dec 23 नही देखी तो देख लीजिये शेफाली शाह और जयदीप एहलावत का उत्कृष्ट अभिनय और स्वानन्द किरकिरे का पूरक और अवास्तविक हल्का - फुल्का अभिनय देखने योग्य है यह फ़िल्म स्मृतियों के झंझावातों के बीच जीवन खोजने की एक मुक़म्मल कोशिश है और डिमेंशिया को आइना दिखाकर पुराने प्रेम को नये संदर्भों में पुनर्जीवित करने की संभावना है पर सांसारिक व्यवधान अपनी जगह बदस्तूर है जैसे लगता है कि हवा में चलता झूला वही रूका रहें, किसी रोप वे पर चलता हिंडोला स्थाई रूप से ठहर जाये और हम नश्वर संसार के संग अपने प्रिय को निहारते ही रहें एक पुराने क़स्बे में ज़िंदगी का जवान होना और भगदड़ तथा शांति के बीच शेष समय में बस हम सिर्फ़ खुशी से जीना चाहते है बग़ैर किसी दाँव पेंच के और इस सबमें कोई दोस्त, कोई माशूका या आशिक मिल जाये तो फिर और कुछ कहना - समझना बेमानी है अफ़सोस कि जीवन वैसा होता नही - जैसा हम चाहते है, हम सबको जीवन एक बार पुनः अतीत में ले जाता है और तब हमें खुले दिल से माफी मांग लेनी चाहिये - ताकि शेष जीवन हम पश्चाताप की अग्नि में ना जलकर हम सामान्य हो सकें और शायद फिर कभी पलटकर ...
The World I See Everyday & What I Think About It...