मैं मरूंगा सुखी मैंने जीवन की धज्जियां उड़ाई हैं. - अज्ञेय ***** जिस अंदाज में देवास जैसे छोटे से कस्बे में पटाखों की गूँज है और रोशनी की जगमगाहट है उससे लगता नही कि मैं एक औसत मध्यम वर्गीय लोगों और प्रायः रूपये का रोना रोने वालों के बीच रहता हूँ और अब मुझे फिर से औद्योगिक क्षेत्र की समाप्ति के बाद उजड़े शहर में गरीबी, बेचारगी, बेरोजगारी, बाज़ार, मालरहित कस्बाई मानसिकता और अभाव जैसे शब्दो को परिभाषित करना होगा। समझ नही आता कि रुपया आता कहाँ से कैसे है और कहाँ और क्यों जा रहा है बावजूद इसके कि यह कस्बा आज भी औसत जीवन जीता है और लगभग हर घर किसी ना किसी ऋण की किश्तें चुकाते हुए, हाँफते हुए साँसों के सफर में आगे बढ़ने की दौड़ में शामिल है। पिछले 48 वर्षों में पहली बार मुझे यह एहसास हुआ है तो लगता है कि मैं गलत हूँ, देश सच में बदला है और लोग खुश है, तरक्की पर है और उन्नति कर रहे है। गलत मूल्यांकन करने के लिए मैं खुद दोषी हूँ, कल 30 करोड़ का सोना बिका इस कस्बे में अखबार आज दहाड़ रहे थे और वुडलैंड से लेकर रेड चीफ और सारे ब्रांड बेचने वाले मित्र खुश है कि माल खप गया है। द...
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