मालवा के देवास, पीथमपुर से लेकर लेबड घाटा बिल्लोद या सीहोर तक देखिये उद्योगों को, सीहोर की गन्ना फेक्ट्री, क्षिप्रा के बरलाई की गन्ना फेक्ट्री, इंदौर के मिलें, उज्जैन की विनोद मिल, और आसपास के अनेक उद्योग जो बंद हो गए और हर घर में बेरोजगारों की फौज इकट्ठा हो गयी है जो आये दिन हिंसा और तनाव का निर्माण करती है, यही बेरोजगार और तनाव ग्रस्त लोग महिलाओं पर हिंसा कर रहे है, आये दिन चैन चोरी, डकैती, बलात्कार और लूट की घटनाएँ बढ़ रही है. उद्योगों के बंद होने से घर घुट गए है, परेशान लोग और मुसीबतों में पड़ गए है, ना उजाला है ना कोई संभावना, दिक्कत ये है कि इन अँधेरे गलियारों में कोई चकाचौंध नहीं है और इन बेबस घरों में कोई झांकने नहीं जा रहा, बच्चे कुपोषित हो रहे है, और युवा टुकुर टुकुर आँखों में सपने लिए अंधे हो गए है, कोई उम्मीद की किरण नजर नहीं आती, धूर्त और चालाक एनजीओ इन्ही के नाम पर कौशल उन्नयन, दक्षता और विकास के नाम पर अपनी दूकान चला रहे है, नतीजा यह है कि हर तीसरे घर में छोटी मोटी किराने की दूकान खुल गयी या कुछ और इसी तरह का काम... प्रदेश में पिछले दस बारह वर...