" सीधी बात " साफ करता हूँ पालक तो हाथ आ जाती है मिट्टी कुछ छोटे मोटे कीड़े जंगली घास-फूस और बहुत कुछ जो उस पालक से चिपककर ज़िंदा है एक झटके से गाली निकलती है सब्जीवाले के नाम कि कितना कचरा पालक के नाम पर दे दिया पकड़ा दिया इतना महँगा खेत से उखाड़ते समय क्यों ध्यान नहीं रखते पालक का हरी पत्तियाँ ही तो काम की होती है खून बढ़ता है हरेपन से क्या मालूम नहीं इन मूर्खों को कितना लोह अयस्क होता है कितना सस्ता स्रोत है गरीब और कुपोषित लोगों के लिए एक स्त्री के लिए - जो एक जीवन को जन्म देने के लिए तत्पर है एक बच्चे के लिए- जिसके शरीर पर अभी मांस, मज्जा और हड्डी बन ही रही है आहिस्ता से इतनी सरल सी बात ध्यान नहीं रहती फिर देखता हूँ पालक से निकले कचरे को बारीकी से और अचानक चौक उठता हूँ कि हरेपन के बिना लाल का बढ़ना मुश्किल लगता है मित्रों. - संदीप नाईक
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