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Showing posts from March, 2010
इधर कुछ दिनों से तबियत कुछ ज्यादा ही ख़राब रहने लगी है यह शायद शक्कर का प्रपात है या रक्त चाप का असर कि सफर में अब वो रवानगी नहीं रही.... सब कुछ छुट गया है लिखना पढना तो ख़तम हो रहा है अब प्रकाशकांत से तो मिलने भी डर लगता है क्योकि देवास जाओ तो दन्त पड़ती ही है बहादुर तो चलो लिख लेता है कल ही फोन आया था कि कविता संग्रह की तैय्यारी है जैसे बीबी को डेलिवेरी होने वाली है...... मेरा क्यों छुट गया ये सब यह समझ से परे तो नहीं अलबत्ता यह सच है की मैंने दोनों बेटो को जब से समय देना शुरू किया है तब से मैं भावुक हो गया हूँ और फिर तो मेरा सारा समय सिर्फ और सिर्फ बेटो में ही जा रहा है। इस सारे चक्कर में मैंने अपनी तबियत इतनी ख़राब कर ली है की शराब और अपनी आदतें बस अब तो शायद मौत ही एक सहारा दिखता है....... पर शराब तो अपूर्व ने छुड़ा दी थी जब से वो गया है तो पी नहीं पर आदतें ........ इनका क्या करू।??? ज़िन्दगी ने इतने गम दिए की सब मौसम नम दिए, ये गीत तो शायद अब किस्मत ही बन गया है.......... कितन लिखना छठा हूँ महेश्वर पर , रावलजी की स्मृति में होने वाले कार्यक्रम पर ए दीन होने वाली यात्राओ पर...

खजुराहो मेरी दृष्टि से.........

हाल ही में मैं खजुराहो गया था वहां कुछ खुबसूरत तस्वीरे उतारी अपने कैमरे से तो पाया कि ये वही खजुराहो है जिसे मैं पचासों बार देख चूका हूँ...... खैर.... आप भी लुत्फ़ लीजिये इन सुन्दर तस्वीरों का.....

Arundahti roy's Article in Hindi on Burning issue.

दंतेवाड़ा को समझाने के कई तरीके हो सकते हैं। यह एक विरोधाभास है। भारत के हृदय में बसा हुआ राज्यों की सीमा पर एक शहर। यही युद्ध का केंद्र है। आज यह सिर के बल खड़ा है। भीतर से यह पूरी तरह उघड़ा पड़ा है। दंतेवाड़ा में पुलिस सादे कपड़े पहनती है और बागी पहनते हैं वर्दी। जेल अधीक्षक जेल में है, और कैदी आजाद (दो साल पहले शहर की पुरानी जेल से करीब 300 कैदी भाग निकले थे)। जिन महिलाओं का बलात्कार हुआ है, वे पुलिस हिरासत में हैं। बलात्कारी बाजार में खड़े भाषण दे रहे हैं। इंद्रावती नदी के किनारे का इलाका माओवादियों द्वारा नियंत्रित है। पुलिस इस इलाके को ‘पाकिस्तान’ कहती है। यहां गांव खाली हैं, लेकिन जंगल लोगों से अटे पड़े हैं। जिन बच्चों को स्कूलों में होना चाहिए था, वे जंगलों में भागे फिर रहे हैं। जंगल के खूबसूरत गांवों में कंक्रीट की बनी स्कूली इमारतें या तो उड़ा दी गयी हैं और उनका मलबा बचा हुआ है, या फिर इनमें पुलिस वाले भरे हुए हैं। इस जंगल में जो युद्ध करवट ले रहा है, भारत सरकार को उस पर गर्व भी है और कुछ संकोच भी। ऑपरेशन ग्रीनहंट भारत के गृहमंत्री (और इस युद्ध के सीईओ) पी चिदंबरम के लिए अगर ...
भाषा भी होती है सर्वहारा, दलित और सवर्ण 22 March, 2010 16:23;00 आशीष कुमार 'अंशु' Font size: Decrease font Enlarge font 41 image भारत भाषा संगम में नारायणभाई देसाई और महाश्वेता देवी बड़ोदरा में भाषा अनुसंधान एवं प्रकाशन संस्था ने एक बेहतरिन आयोजन किया। जिसमें भाषा और बोली के सवाल पर देश भर के विद्वान और सामाजिक कार्यकर्ता इकट्ठे हुए। भाषा के सवाल पर इतने बड़े पैमाने पर विद्वानों के जुटान का शायद यह एक अभूतपूर्व कार्यक्रम था। प्रोफेसर गणेशी देवी के संयोजन में हुए इस कार्यक्रम को बड़ोदरा की स्थानीय मीडिया में तो अच्छी कवरेज मिली लेकिन नहीं कह सकता उसके बाहर वह खबर बनी या नहीं। ‘क्या हुआ अगर एक भाषा खत्म हो गई वह अपने झूठ और सच के साथ दफन हो गई, शब्द नहीं रहे, दुनिया बढ़ती रही बोआ की दुनिया की खातिर, कहीं कोई नहीं रोया।’ बाबुई और अर्जून जाना की यह कविता उस 85 वर्षिय अंदमानी महिला बोआ को समर्पित है जो अंदमान में बोली जाने वाली दस भाषाओं में से एक बो भाषा की अन्तिम जानकार थीं। इसी वर्ष 26 जनवरी को उनकी मृत्यु के साथ मानव सभ्यता की 65000 साल पुरानी संस्कृति का ज्ञान भी चला गया। भाषा वैज्...
वो लोग बहुत ख़ुशक़िस्मत थे जो इश्क़ को काम समझते थे या काम से आशिक़ी करते थे हम जीते जी मसरूफ़ रहे कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया काम इश्क़ के आड़े आता रहा और इश्क़ से काम उलझता रहा फिर आख़िर तंग आकर हम ने दोनों को अधूरा छोड़ दिया. फ़ैज़
किसी और समय, पुरूष या स्त्री, या राहगीर बनके/ फ़िर लौट आऊंगा मैं/ जब मैं जीवित न रहा/ यहाँ गौर से देखना मुझे, यहाँ ही देखना/ बिखरे हुए पत्थरों और फैले हुए समुन्दर के बीच/ झाग में से तेजी से गुजरती रौशनी में/ देखना, यहीं प्यार से देखना मुझे/ क्योंकि यहीं चुपचाप लौट आऊंगा मैं/ निःशब्द, बेजुबान पर पाक पवित्र/ यही भंवर में घुमते पानी/ के न टूट सकने वाले दिल में होऊंगा मैं/ यहीं मैं तलाशूंगा तुम्हें और फ़िर गुम हो जाऊंगा/ यहीं शायद मैं एक पत्थर होऊं/ या रहस्यमयी खामोशी में छुपा होऊंगा मैं. -पाब्लो नेरुदा

Apoorva in Dewas in the Month of Feb and Mar 2010

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