इधर कुछ दिनों से तबियत कुछ ज्यादा ही ख़राब रहने लगी है यह शायद शक्कर का प्रपात है या रक्त चाप का असर कि सफर में अब वो रवानगी नहीं रही.... सब कुछ छुट गया है लिखना पढना तो ख़तम हो रहा है अब प्रकाशकांत से तो मिलने भी डर लगता है क्योकि देवास जाओ तो दन्त पड़ती ही है बहादुर तो चलो लिख लेता है कल ही फोन आया था कि कविता संग्रह की तैय्यारी है जैसे बीबी को डेलिवेरी होने वाली है...... मेरा क्यों छुट गया ये सब यह समझ से परे तो नहीं अलबत्ता यह सच है की मैंने दोनों बेटो को जब से समय देना शुरू किया है तब से मैं भावुक हो गया हूँ और फिर तो मेरा सारा समय सिर्फ और सिर्फ बेटो में ही जा रहा है। इस सारे चक्कर में मैंने अपनी तबियत इतनी ख़राब कर ली है की शराब और अपनी आदतें बस अब तो शायद मौत ही एक सहारा दिखता है....... पर शराब तो अपूर्व ने छुड़ा दी थी जब से वो गया है तो पी नहीं पर आदतें ........ इनका क्या करू।??? ज़िन्दगी ने इतने गम दिए की सब मौसम नम दिए, ये गीत तो शायद अब किस्मत ही बन गया है.......... कितन लिखना छठा हूँ महेश्वर पर , रावलजी की स्मृति में होने वाले कार्यक्रम पर ए दीन होने वाली यात्राओ पर...
The World I See Everyday & What I Think About It...