मुझे पूर्ण विराम पसंद नहीं, पूरा खिला हुआ फूल पसंद नहीं, संपूर्णता पसंद नहीं, मुझे पूरा चाँद पसंद नहीं - आधा अधूरा सब कुछ अच्छा लगता है, आधे अधूरे कच्चे पक्के लोग, आधी अधूरी समझ वाले लोग, आधी बनी हुई आकृतियां, आधे अधूरे शिल्प, आधे अधूरे ख्वाब और आधी अधूरी रह गई अतृप्त इच्छाएं पसंद है, अंतिम अरण्य में निर्मल कहते है ना "जीवन में कुछ इच्छाएं अधूरी रह जाए तो जीने की आस बनी रहती है" सरल सा कारण है कि जब कोई चीज अधूरी रह जाती है तो उसमें पूर्णता की गुंजाइश रहती है, पूर्णत्तर होकर क्या पा लेंगे, संपूर्णता अपने आप में एक दकियानूसी सोच, अपरिपक्वता और अपुष्ट विचारों की धारणा है और यह "परफेक्शन" की जिद में जीने वाले बेहद "लूनेटिक" यानी एक प्रकार के मानसिक रोगी है अधूरापन एक सनक को जन्म देता है कि अभी रास्ते और मंजिलें और भी है, प्रयोग - नवाचार और जीतने की कोशीशे और भी है, और यह सब बहुत सरलता और सहजता से हासिल किया जा सकता है, पर यदि किसी वाक्य पर पूर्ण विराम लगा दिया जाए तो सारी संभावनाएं ही हम खो देते है सीखना और सतत सीखते रहना अधूरेपन और अपूर्णता की अदम्य इच्छा से...
The World I See Everyday & What I Think About It...