बहुधा हर काबिल आदमी अपनी काबिलियत से डरता है और उसको यह भान होता है कि उसकी सार्वभौमिक उपस्थिति किसी भी उपलब्धि, बात या किसी बड़े कार्यक्रम को बर्बाद कर देगी, वह हर बार, हर जगह और हरेक बात से पहले अपने - आप पर शक करता है और हर उस जगह से अपने - आपको खारिज करना चाहता है, जिससे औसत दर्जे के या बुद्धि के या सिर्फ कागज़ी काम करने वाले लोग सफलता के नए कीर्तिमान गढ़ सकें और सफलता के अपने काल्पनिक एवं अभेद्य किले बनाकर एक भ्रम में जी सकें और शेष जीवन मुगालतों में रह सकें शायद औरों को मौका देना या हौंसला अफजाई करना भी एक तरह की काबिलियत है - जो बहुत तपस्या या श्रम से आती है, इसके लिए बुद्धि नहीं - मेधा और दीर्घकालीन अनुभव की जरूरत होती है #मन_को_चिठ्ठी *** These days, I see many non law - individuals, CSOs (Civil Society Organizations), and NGOs working on the Constitution. They are organizing fellowships, street plays, rallies, yatras, discussions, awards, songs, booklets, leaflets, brochures, posters, and books. I highly appreciate this massive effort, as well as the writing and publication...
The World I See Everyday & What I Think About It...