साहित्य के मेले और दुर्गति के ठिकाने ▪ अफसोस कि प्रगतिशीलता और लेखन भी समानांतर हो गया है - इससे ज़्यादा साहित्य की दुर्गति क्या होगी। ▪ कोई अर्थ नही लिखने, पढ़ने और दुनिया को ज्ञान बांटने का, साहित्यकार - लेखक को अपने अंतर्मन में झांकने की जरूरत है - सेटिंग, जुगाड़ और पुरस्कारों की महिमा में वेश्याओं की तरह अपने आपको बेच देने के बजाय। ▪ कितने - कितने गुटों और खेमों में बंटे ये टुच्चे भर लोग अपने घर, परिवार और औलादों को सुधार नही पाएं, खुद पतित रहें और समाज में अपने गुण दोषों की वजह से बिरले बने रहें, कुछ को छोड़कर अधिकांश बर्बाद भी हुए और बर्बाद भी किया - विध्वंसक होकर, फिर किस बात की विचारधारा और प्रतिबद्धता। ▪ लिटरेचर फेस्टिवल के नाम पर विशुद्ध गुटबाजी, गुंडागर्दी, कार्पोरेट्स के दलाल, संक्रमित विचारधारा के कीड़े मकौड़े, नेताओं और हस्तियों को साधने का काम करते ये कलम के परजीवी क्या कर रहें है वहां भड़ैती और बकर के सिवा, एक अंधी दौड़ में शामिल हर गांव -कस्बे के लोग अब फेस्टिवल कर इतिहास में अमर होना चाहते है, हर टटपुँजिया लेखक इसमें शामिल होकर शहीद होना चाहता है जबकि झेलने ...
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