रूपया बहुत कुछ हो ना हो , पर एक स्त्री के जीवन का दूसरा मर्द होता है... बहुत गंभीर बात जब उसने कही, तो मैंने देखा रो रही थी वो , बावजूद इसके कि हाल ही में उसने पैतालीस लाख का फ़्लैट खरीदा था। उसकी मासिक आय करीब दो लाख थी और इस बड़े से पॉश फ्लैट में वो अकेली रहती थी क्योकि सेपरेशन के बाद वो नितांत अकेली रह गयी थी। भाई भी कभी कभी कह देते कि अपने घर जाओ, पर यह घर उसने खुद अपने लिए बनाया है और "अब मै अपने घर में बहुत सुरक्षित महसूस करती हूँ - अपने आप को चाहे मै यहाँ एकदम अकेली हूँ" उस सडियल सी शादी शुदा जिन्दगी से एक बच्चा भी निकल आता तो आज मै शायद खुश रह लेती , पर अब तो नियति का खेल है और मै इसकी कठपुतली। तुम भी तो अकेले हो, उसने पूछा तो मैंने कहा हाँ, तो ? तुम्हारा घर क्यों नहीं , बना लेते एकाध कमरा ही सही, लोन ले लो, पर एकल स्त्री या पुरुष का अपना खुद का घर होना बेहद जरुरी है, चाहे अखबार बिछा कर सोना पड़े और पानी पीकर पेट भर लो, पर अपना होना चाहिए सब कुछ। सन्न रह गया था मै उसकी बात सुनकर!!! मेरी हिम्मत नहीं थी कि उसके कंधों पर हाथ रखकर उसे कह दूं कि मै हूँ ना रो मत, या ये कह ...
The World I See Everyday & What I Think About It...