चिड़िया नहीं जानती है भय, ईर्ष्या, तनाव , भूख, और संघर्ष नहीं जानती समझती है शोषण के पहिये और भेदभाव के जाल को चिड़िया को फिर भी चालाक होना पड़ता है उतना जितना ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी है चिड़िया फुदक रही है यहाँ - वहाँ, ऊपर -नीचे , अन्दर -बाहर एक दिन जान जायेगी की चालाकी ही उसे आखिर शाश्वत बनायेगी और जद्दोजहद में वो जीतकर भी बजी हार जायेगी एक दिन........
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