मुझे पूर्ण विराम पसंद नहीं, पूरा खिला हुआ फूल पसंद नहीं, संपूर्णता पसंद नहीं, मुझे पूरा चाँद पसंद नहीं - आधा अधूरा सब कुछ अच्छा लगता है, आधे अधूरे कच्चे पक्के लोग, आधी अधूरी समझ वाले लोग, आधी बनी हुई आकृतियां, आधे अधूरे शिल्प, आधे अधूरे ख्वाब और आधी अधूरी रह गई अतृप्त इच्छाएं पसंद है, अंतिम अरण्य में निर्मल कहते है ना "जीवन में कुछ इच्छाएं अधूरी रह जाए तो जीने की आस बनी रहती है" सरल सा कारण है कि जब कोई चीज अधूरी रह जाती है तो उसमें पूर्णता की गुंजाइश रहती है, पूर्णत्तर होकर क्या पा लेंगे, संपूर्णता अपने आप में एक दकियानूसी सोच, अपरिपक्वता और अपुष्ट विचारों की धारणा है और यह "परफेक्शन" की जिद में जीने वाले बेहद "लूनेटिक" यानी एक प्रकार के मानसिक रोगी है अधूरापन एक सनक को जन्म देता है कि अभी रास्ते और मंजिलें और भी है, प्रयोग - नवाचार और जीतने की कोशीशे और भी है, और यह सब बहुत सरलता और सहजता से हासिल किया जा सकता है, पर यदि किसी वाक्य पर पूर्ण विराम लगा दिया जाए तो सारी संभावनाएं ही हम खो देते है सीखना और सतत सीखते रहना अधूरेपन और अपूर्णता की अदम्य इच्छा से...
सीधी सी बात है नरेंद्र मोदी सरकार, अमित शाह ने ईवीएम के जरिए सन 2011 से फर्जीवाड़ा करके चुनाव जीते हैं और ये सब महाभ्रष्ट और काइयां है, हर मोर्चे पर असफल इस मोदी सरकार ने विदेश नीति तो बर्बाद की ही, बल्कि देश को भी भुखमरी के कगार पर ला दिया, नौटबंदी के गोरख धंधे से शुरू हुआ यह खेल अब SIR तक आ पहुंचा है अब समय आ गया है नरेंद्र मोदी सरकार अपने धूर्त और बदमाश मंत्रियों सहित इस्तीफा दें, वोट चोर तो है ही, पर ये देश के साथ देशवासियों को बेवकूफ बनाकर कार्पोरेट्स को फायदा पहुंचा रहे है, हिंदू राष्ट्र के नाम पर ये खुले आम अपनी ही जनता को धोखा दे रहे है अब असली आजादी के आंदोलन की जरूरत है, मोदी और इसके पूरे मंत्रिमंडल से, चुनाव आयोग से, अदाणी और अंबानी जैसे बदमाश शोषकों से आजादी यदि राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट कुछ नहीं कहता स्वत: संज्ञान लेकर तो इनकी भी महत्ता कुछ नहीं है मतलब, और इस पाप में ये भी शामिल है अगर इस चुनाव आयोग और सरकार में थोड़ी भी शर्म है तो राहुल के सबूतों को तार्किक ढंग से काटकर दिखाए और असली बात जनता के सामने रखें, वरना इस्तीफा दे ज्ञानेश कुमार डूब मर कमीने चुल्लू भर पानी में...