कभी कभी थोड़ी सी लापरवाही या आलस जीवन भर का अफसोस बन जाता है, यह सिर्फ़ भुगत कर ही महसूस किया जा सकता है *** असुरों को हराने के लिये अप्सराओं की ज़रूरत होती है और यह बात समझने में बहुत लोग चूक जाते है, बेहतर है कि जितनी जल्दी हो समझ लें ताकि आप राज, समाज, सत्ता और अर्थ को भलीभाँति समझ सकें [ कृपया जेंडर से इसे जोड़कर ना देखें - इस समय अप्सराएँ खुद इस संवेदनशील और गहन उपयोग के लिये स्वयं तत्पर है ] #खरी_खरी *** दिल्ली पुस्तक मेले में हर दिन होने वाले विमोचन का होना शुभ है पर जो आलू बोल रहे है ज्ञान दान कर रहें है किसी भी विधा पर बग़ैर किताब पढ़े और मैला सा अंट-शंट बोल रहे है उसे आप एक बार ठहरकर सुन लें तो कसम से मेले से भाग जायेंगे दूसरा, विमोचन के फोटो देखिये ज़रा - बस 4,5 लोग जिनका केशलोचन हो रहा है वो पोस्ट हो रहा पर विपरीत दिशा में जो निर्वात है या पाठक या श्रोता है - वो नदारद है इसलिये उनके फोटोज़ नही है कुछ धाकड़ प्रकाशक एकदम से बूढ़ा गए है, थक गए है और उनके स्टॉल मरघट सी शांति लिये है और वे किसी हरिश्चंद्र की तरह इन मरघटों की चौकीदारी करते नजर आ रहें है - इनके लेखक ही कन्नी काटकर निकल गए ह...
2 एक ज़माना था जब ग़रीब, वंचित, पिछड़े लोग या महिला, विकलांग, बुजुर्ग और बच्चे निसहाय थे - चुप्पी का साम्राज्य था और दबंगई शिखर पर थी, पर आज ना कोई गरीब है ना असहाय या निहत्था या वंचित लोग एकदम अवसरवादी हो गए है और वे पहचानते है कि आपकी और आपके तथाकथित समाज कार्य की औकात क्या है, वे आपके आगे बीपीएल कार्ड नही होने का रोना रोयेंगे, राशन वाले की शिकायत करेंगे, आंगनवाडी में या स्कूल में भोजन ना मिलने की शिकायत करेंगे, पर सड़क - बिजली - पानी के लिये नेता या पार्टी कार्यकर्ता से ही बात करेंगे, शिक्षा या स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये उनके अपने माईबाप है, मुफ्त वाली चीजे या पेंशन की बात करना हो तो वे अधिकारियों से बात करेंगे - कहीं से लाभ मिलने की बात हो तो वे आपसे बात करेंगे परंतु उनके योगदान या श्रमदान की बात करना हो तो कन्नी काटकर कर निकल जाएंगे, आप सिर फोड़ लो पर वोट कहाँ जायेगा यह वो गरीब ही तय करता है, आपका सारा समाज कार्य भोंगली बनाकर वह आपको ही अर्पित कर देता है लोग अब बहुत ज्यादा सयाने हो गए हैं और आप अभी भी पिछली सदी के समाज कार्य को लेकर गांव में जा रहे हैं, बैठके कर रहे हैं, और उन्हें अपनी...