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NDTV, Face Book Post and State Representative. 24 Jan 2019

22 Jan 2019 

एनडीटीवी की दिक्कत यह है कि उनका राज्य प्रतिनिधि ख़ाकी चढ्ढी पहनकर बैठा है और बात वामी क्रांति की करता है
यह समझ नही कि किसानों के नाम और कर्ज की राशि पंचायत से भेजी जाती है जहां अपढ़, कुपढ़ और महिलाओं के एस पी साब बैठे है - इन्हें ना लिखने की समझ है ना गणित की, रहा सवाल सचिवों का तो वे अजीब मूर्ख किस्म के है जिन्हें लिखना पढ़ना तो दूर सिवाय सेटिंग के कुछ नही आता
मीडिया के अन्य लोगों की तरह गिरगिट लोग एनडीटीवी में भी है जो चैनल पर लाइव के समय क्रांतिकारी होते है और निजी जीवन मे अवसरवादी या संघी , इसमें कुछ गलत नही पर दोनो तरफ से रोटी खाना तुम्हारी औकात और हवस का खुला प्रदर्शन है , यह कोई नया नही है एक घटिया चैनल के पूर्व प्रतिनिधि को भी जनता जानती है , स्नातक भी हो नही पाया जीवन मे जो किस कदर चापलूस था शिवराज का और अपनी अल्प आयु में अकूत दौलत का स्वामी बन बैठा, जब भांडा फूटा तो हकाला गया फिर यहां वहां घूम घामकर अब दो कौड़ी के चैनल में मर्दानगी बघार रहा है जिसे कोई नही देखता
मीडिया के साथ लगातार समझ बनाकर गिरगिटों को बेनकाब करने की भी सख्त जरूरत है जो सरकारों को ससुराल समझकर दुहते रहते है बावजूद इसके कि इनके ससुराल यही कही आसपास आबाद है
ख़ैर

बहुत ही भ्रामक और गलत ऑब्जरवेशन है खासकर ndtv के राज्य प्रतिनिधि के लिए, उनका निजी रुप से नाम और काम दोनो अच्छे से जानता हूँ इसलिए दावे से कह सकता हूँ बाकी अपना अपना अनुभव है Apurva Bhardwaj Delhi


  • Anurag Dwary मुझे नहीं पता इस कदर की घटिया बात का क्या जवाब दूं? यही खबरें पिछली सरकार में आपको क्रांति नज़र आती थीं, अब गुलाम मानसिकता में खाकी! सर बदतमीज़ी करना अपनी आदत नहीं 20 साल में किसी ने अवसरवादी होने का आरोप भी नहीं लगाया... ख़ैर जैसी सोच दुनिया वैसी नज़र आती है! रोटी अपनी मेहनत का खाते हैं, इसलिये दोनों तरफ को लताड़ने की ताक़त रखते हैं... लेकिन दरबारी क्या समझेंगे कि पत्रकार सार्थक विपक्ष होता है! किस सरकार में मंत्री को काम करते देखा है सर, आंकड़े चढ़ाते फाइल में?? वो काम तो अधिकारी-कर्मचारी ही करते हैं, तो आपको लॉजिक से किसी सरकार का कोई दोष है ही नहीं!! बाकी खरी-खरी अपन हमेशा कहते हैं... सर्टिफिकेट बांटते रहिये.
  • Apurva Bharadwaj Sandip भाई यह पोस्ट हटा दीजिये मेरा यह आपसे विनम्र अनुरोध है Anurag भाई को बहुत सालों से जानता हूँ आज सच को सच कहने की ताकत बहुत कम लोगो में बची है अनुराग भाई उन्हीं चंद पत्रकारों में से एक है
  • My Final Reply on 24 Jan 2010, मै भी जनता हूँ और उनका लम्बे समय से प्रशंसक हूँ जब वो पढ़ रहे थे माखनलाल में तब से, मुम्बई, और एनडीटीवी , उनके बीबीसी में जाने पर दुखी भी हुआ था, यह संयोग ही था कि वे गए नहीं.........मेरा इरादा कोई मूल्यांकन नहीं ना ही गरिमा पर प्रश्न करने का है और ना ही विचारधारा पर सवाल उठाने का , दो चार रिपोर्ट देखकर मुझे लगा भी और जब उन्ही के समकालीन माखनलाल वालों से बात हुए तो उन्होंने भी बताया, बहरहाल मै यह पोस्ट आज हटा लूंगा वादा है. मित्रों को दुखिकर लिखने का कोई फ़ायदा नही है. वे तरक्की करें उनका यश बढे यह तमन्ना और प्रार्थनाएं है........यह भी जानता हूँ कि इस तरह की पोस्ट से उनके काम पर कोई असर नही पड़ेगा. Apurva Bharadwaj
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  • प्रिय मित्र ,
    तीन हजार शब्दों का आलेख 2, 3 बार लिखा पर तुम्हारी पत्रिका लायक नही लिख पाया
    अखबारी आलेख हो गया या एनजीओ स्टाइल वाला या निहायत ही बेहूदा किस्म का
    आज से पुनः लिख रहा हूँ एकदम अलग दिमाग से
    मुआफी, समय पर ना दे पाने के लिए पर यह कन्फेशन जरूरी था इस बीच पत्रिका के दोनो उपलब्ध अंक बार - बार पढ़े सचेत होकर अब पुनः कोशिश कर रहा हूँ शायद कुछ सार्थक लिख पाऊं
    समझ यह आ रहा है कि बंधी - बंधाई लीक पर लिखना - छपना बहुत आसान है और महान हो जाना भी पर बहुत सघन, सतर्क और संवेदनशीलता के साथ जूझते हुए लिखना और एकदम संप्रेषणीय हो जाना शत प्रतिशत बहुत ही मुश्किल है
    अपने आपको चुनौती देना और बार बार लेखन को साधते हुए प्रसव पीड़ा से गुजरना बहुत कष्टमयी और श्रमसाध्य है और इस प्रक्रिया में जब तक खुद मरेंगे नही - कोई स्वर्ग नही देख पायेंगे
    जो कहते है शाम तक लिखकर दे दो और जो शलाका लेखिका एवम लेखक दोपहर तक ही भेज देते है पर्फेक्शनिष्ट की तरह उन्हें सौ सौ प्रणाम, अपने आसपास ऐसे लोगों की भीड़ में मैं तुच्छ इंसान किसी काबिल नही
    इस बाड़े से मुझे बेदखल किया जाए वाग्देवों एवं वाग्देवीयों
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  • महाविद्यालयों और विवि में एडहॉक पढ़ाने वाले या भाड़े पर पढ़ाने वाले या दैनिक मजदूरी पर आने वालों से बड़ा मक्कार और निकम्मा कोई नही
    ये लोग ना विषय जानते है ना सवालों के उत्तर देना , अव्वल दर्जे के मूर्ख ये अपने आपको प्राध्यापक कहकर प्राध्यापक शब्द को बदनाम करते है
    ये खाली बस में सीट पर बैठे बकरे बकरियां है जिनका भाड़ा मुफ्त में इंसान के बराबर देना पड़ता है - कॉलेज पढ़ रहा हूँ तो देख रहा हूँ कि कैसे कैसे मूर्ख भर्ती हो गए है सेटिंग से जिन्हें एक शब्द हिंदी में लिखना नही आता और ऊपर से पी एच डी डकार कर बैठे हैं
    खैर , वैसे भी महाविद्यालयों में अध्यापन के नाम पर जितना कूड़ा कचरा है वह स्वच्छ भारत अभियान से ज़्यादा ही होगा इसलिए इन सबको निकाल बाहर करो
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  • कस्बों में अखबारों के दफ्तरों में काम करने वाले कम्प्यूटर ऑपरेटर्स, डाक लाने ले जाने वाले, हाकर्स, संडास में फिनाइल छिड़ककर धोने वाले और झाड़ू पोछा करने वाले चूतिये भी ससुरे अपने आपको पत्रकार समझ कर फेसबुक पर मर्दानगी दिखाते है
    हम भी अलग नही है ना ही शहर हमारा 
    और ये मूर्ख सेटिंग करके परिवार चलाते है नंगे भूखे जिनकी न रीढ़ है न जमीर

    बहुत से गधों से गये गुजरे यहां फेसबुक पर चुतियापा करते रहते है , दो कौड़ी की औकात नही , अपना नाम सही नही लिख सकते और पत्रकार बनकर चोट्टे कॉपी पेस्ट कर महान बनते रहते है
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