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Showing posts from May, 2025

Khari Khari, Man Ko Chithti and Drisht Kavi Posts from 12 to 29 May 2025

अक्सर हमें जिंदगी में रोज कोई ना कोई मांगने वाले मिलते रहते हैं, कभी कोई दरवेश आ जाता है, कभी किसी वार के नाम पर, भगवान के नाम पर मांगने वाले, कभी शनि भगवान के नाम पर और कभी किसी और के नाम पर ; दिन भर कोई अल्लाह के नाम पर, कभी श्री साईं के नाम पर, कभी राम या कृष्ण के नाम पर कभी हम खुद उत्साहित होकर देने चले जाते है - अपने अपराध बोध में कि शायद नगदी या शिदा [गेहूं, दाल , चावल और गुड शक्कर आदि जैसा सूखा अन्न ] देने से पाप मुक्त हो जाएंगे, कभी हम अपने या अपने पुरखों के नाम पर भोजन करवा देते है - गरीबों, भिखारियों, विकलांगों को या अंधे लोगों को, कभी मंदिर में दान कर आते है या जुम्मे के दिन हीबा कर देते है - यह सोचकर कि हम यह सब करके मुक्त हो जाएंगे कभी आपने सोचा कि आप जो दान-धर्म में दे रहे है, वह आपका है ही नहीं - जिसे आप धन कहते है वह नोट या करेंसी सरकार की है, आपके पास आपकी संपत्ति के रूप में वह तब तक है - जब तक आपने उसे धरकर रखा है - तभी उस पर लिखा है कि "धारक को पांच सौ रुपए देने की गारंटी" कोई तीसरा आदमी दे रहा है, जो धान्य आप दान कर रहें है शिदा के रूप में वह प्रकृति का है...

Khari Khari, Man Ko Chiththi and Drisht Kavi - Posts from 6 to 12 May 2025

बहुत दूर से किसी ने बहुत सुंदर तोहफा भेजा था, कोई उस शहर से यहां आ रहा था तो उसे किसी ने रोककर पूछा था कि "गर वहां जा रहे हो तो यह छोटा सा पैकेट उन्हें दे देना और मै ले आया" मैंने उनके सामने तो नहीं खोला, पर बाद में जब वह कश्मीर के पास अपने घर बांदीपुर लौट गया तो एक दिन दफ़्तर से आने पर हिम्मत करके पैकेट खोला - जब खोलकर देखा तो थोड़े से यानी लगभग दो मुट्ठी चिलगोज़े बहुत नफ़ासत से बांधकर रखे थे और साथ में एक पेपर नेपकिन पर लिखा था - "उस लेखक के लिए जिसने "सतना को भूले नहीं तुम" जैसी अप्रतिम कहानी लिखी है" भीग गया था मैं उस दिन पढ़कर, देर तक बिन्नी को याद करता था, सतना फिर याद आया, आज भी एक दिन ऐसा नहीं जाता कि सतना का पन्नीलाल चौक याद ना आता हो ; बहरहाल, बहुत दिनों तक कुछ नहीं किया, ना चिलगोज़े खाए - ना छुए, किसी स्वर्णाभूषण की तरह से सहेजकर रखे रहा एक अलमारी में, और एक दिन फिर कोई और दोस्त यानी फ्रांस से एक युवा शोधार्थी मेरे पास दो माह के लिए आया था 'फ्रांसुआ जैकार्ते ', तो उसके साथ रेत घाट गया शाम को और फिर वहीं बैठकर देर तक हम दोनों धीरे - धीरे खात...