काश कबीर थोड़े से व्यवसाई हो जाते और कम से कम अपने कॉपी राइट्स को लेकर ही सचेत होते आज के कबीर बेचकों से बस थोड़े कम *** हर बीमारी का इलाज दवाई नहीं, हर दर्द का इलाज नहीं होता, हर प्रश्न का कोई उत्तर नहीं होता, हर उत्तर संपूर्ण नहीं है, हर अंधेरे के बाद उजाले की लड़ नहीं होती, हर घुप्प अंधेरी सुरंग के बाहर रोशनी का रास्ता नहीं होता, हर बंद गली के आगे सुराग नहीं होता, हर सत्य मुकम्मल नहीं होता, हर झूठ भी झूठ नहीं होता, हर नैतिकता में सीख नहीं होती, हर मूल्य का कोई फेस वैल्यू नहीं होता, हर बार गिरने पर खड़ा नहीं हुआ जा सकता, और हर सत्यवादी और ईमानदार आदमी के भीतर असंख्य बेईमानी के कीड़े कुलबुलाते है - जो उसे मुखौटे और आवरण के भीतर जीने को मजबूर करते हैं दुर्भाग्य से हम इन्हीं नैराश्य, दारुण परिस्थितियों, द्वंदों, विपदाओं और आसन्न संकटों से घिरे है कि हमारे आसपास मनुष्य नहीं - बल्कि मुखौटे, आवरण, यंत्र चलित मशीनें है जो किसी प्रोग्राम्ड रोबोट की भांति हमारे संग साथ जीती - जागती है, और मनुष्य होने का स्वांग करती है बचकर रहना ही अपने होने और अपनी गरिमा बचाए रखने की रणनीति हम सीख लें इस जीवन...
The World I See Everyday & What I Think About It...