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Showing posts from June, 2017

नर्मदा यात्रा , पौधारोपण और राज्य के मूल कर्तव्य - नागरिकों के संदर्भ में

नर्मदा यात्रा , पौधारोपण और राज्य के मूल कर्तव्य - नागरिकों के संदर्भ में  मप्र में पिछले 15 वर्षों में नाटक, लुभावने नारे, घोषणाओं और मूर्खताओं के अलावा कुछ नही हुआ। व्यापमं, रेत खनन से लेकर फर्जी एनकाउंटर, किसान आत्महत्या के कारण हजार से ज्यादा लोग जान गंवा चुके है।  राज्य क्या कर रहा है - सिंहस्थ में 3000 करोड़ रूपये बर्बाद, घर पर पंचायतें बुलाकर घोषणाएँ, सिर्फ और सिर्फ नाटक। पिछले साल से एक बड़ा मेलोड्रामा नर्मदा के नाम पर चल रहा है जिसमे राज्य का खजाना खाली कर दिया गया है। पहले पांच माह नर्मदा यात्रा चली और प्रशासन ठप्प रहा, और अब 2 जुलाई को पौधारोपण के नाम पर एक माह से राज्य में सारे काम ठप्प पड़े है।  कई अधिकारियों से बात की तो वे कह रहे है कि कुछ काम नही कर पा रहें , सारा समय इस नौटँकी में जा रहा है। मतलब मूर्खता यह है कि विश्व रिकॉर्ड बनाने के लिए महिला कर्मचारियों को जो चपरासी, लिपिक, शिक्षक, डाक्टर या प्राध्यापक है का पौधें कैसे लगाएं इसकी ट्रेनिंग पर खर्च, फिर इन्हें दूरदराज के गांव में 1जुलाई की रात पहुंचना है और रात वही रुककर अगले दिन सुबह से अनुश्रवण का काम

Rest in Peace Sameer Sheikh 27 June 2017 - End of a Joyful Life at an early age.....

Sameer Shaikh  ये क्या हो गया बच्चे, अभी पता चला कि आज तुमने यह देह त्याग दी हार्ट अटैक के कारण। मेरे लिए यह बहुत दुखद और वेदना के क्षण है। कल तुम्हे ईद मुबारक कहा था, तुमने घर बुलाया था और मैने भी कहा था कि जल्दी ही आता हूँ । तुमने मजाक किया था कि आ जाओ लिपिड प्रोफ़ाइल भी टेस्ट कर दूँगा। उस दिन यानी 25 जून को तुम्हारे जन्मदिन पर भी कितनी देर तक हम बातें कर रहे थे, तुम मुझे कह रहे थे कि अब मैं भी बूढा हो रहा हूँ आपकी तरह - तो मैने कहा था बूढा होगा तेरा बाप और खूब जोर से हंस दि ए थे हम दोनों !!! यदि ऐसा पता होता तो कल मैं मिलने ही आ जाता, किसी को नही पता था कि आज सुबह 930 बजे तुम हम सबको यूँ अकेला छोड़कर जन्नत में चले जाओगे बिलखता सा छोड़कर समीर !!! समीर मेरा बहुत पुराना छात्र था, सन 1987 से 89 तक देवास के एक विद्यालय में। पिताजी की प्रसिद्ध दुकान थी - टेलरिंग की, सिलेक्शन टेलर्स। बाद में समीर ने एक डॉक्टर लड़की से प्रेम विवाह किया था। पत्नी इंदौर की जानी मानी पैथोलोजिस्ट है। समीर बहुत ही हंसमुख , ज़िंदादिल और मस्त मौला था। वर्जिश और व्यायाम के शौकीन इस बंदे को आप हमेश

Eid 2017

फैज़ साहब को याद करते हुए उन्ही की ये दुआएं कुबूल हो........... आईए हाथ उठायें हम भी हम जिन्हें रस्म-ए-दुआ याद नहीं हम जिन्हें सोज़-ए-मोहब्बत के सिवा कोई बुत, कोई खुदा याद नहीं आईए अर्ज़ गुज़रें कि निगार-ए-हस्ती ज़हर-ए-इमरोज़ में शीरीनी-ए-फ़र्दां भर दे वो जिन्हें तबे गरांबारी-ए-अय्याम नहीं उनकी पलकों पे शब-ओ-रोज़ को हल्का कर दे जिनकी आंखों को रुख-ए-सुबह का यारा भी नहीं उनकी रातों में कोई शमा मुनव्वर कर दे जिनके कदमों को किसी राह का सहारा भी नहीं उनकी नज़रों पे कोई राह उजागर कर दे जिनका दीन पैरवे-ए-कज़्बो-रिया है उनको हिम्मत-ए-कुफ़्र मिले, जुर्रत-ए-तहकीक मिले जिनके सर मुन्ताज़िर-ए-तेग-ए-जफ़ा हैं उनको दस्त-ए-कातिल को झटक देने की तौफ़ीक मिले इश्क का सर्र-ए-निहां जान-तपां है जिस से आज इकरार करें और तपिश मिट जाये हर्फ़-ए-हक दिल में खटकता है जो कांटे की तरह आज इज़हार करें ओर खलिश मिट जाये ---- फैज़ अहमद फैज़

रेलवे और ट्वीटर सरकार, निठल्लों की चांदी और यात्रियों की मुसीबत

कल रात लोकमान्य तिलक टर्मिनल, मुम्बई से हम 5 साथी ट्रेन 11015 में बैठे। ट्रेन में इतनी भीड़ थी कि लग ही नही रहा था कि रेलवे को ईद की कोई खबर होगी। क्या त्योहारों पर अतिरिक्त ट्रेन चलाने का या बोगियां लगाने का कोई रिवाज़ नही है। देश के नागरिक परेशान होते जा रहे है। टी टी ने मुम्बई से गौंडा, गाजीपुर, गोरखपुर तक के टिकिट के अलावा  ₹ 1000 तक वसूले और बच्चोँ के भी ले लिए जबकि ना सीट थी ना जगह । यह कैसा सलूक है लोगों को परेशान करने का। भाई Md Khursheed Akbar भी उसी समय दूसरी ट्रेन से घर जा रहे थे उन्होंने भी बताया कि उनकी ट्रेन में यही हाल है। ये भेदभाव करते है आप देश वासियों के साथ। रात तो मैं लोगों पर गुस्सा था पर असली जड़ रेलवे है जो निहायत लालची, भ्रष्ट और आदमखोर हो गया है। ट्रेन में जैसे तैसे घुसे और देखा कि फ्लाईंग स्क्वाड वाले सबकी रसीद बना रहे है। बाद में पाया कि बाथरूम में पानी नही है, टी टी को बोला तो बोला मैं कुछ नही कर सकता। मैने, सचिन जैन और राकेश मालवीय ने सुरेश प्रभु को ट्वीट करना शुरू किया। कुल 20 से ज्यादा ट्वीट किए पर मक्कार अधिकारियों को फर्क नही पड़ा। परंतु कोई जवा

तादेउष रोज़ेविच और माँ की बात

तादेउष रोज़ेविच ------------------ हमारी मां की आंखें जो हमारे दिल और दिमाग़ को चीरकर भीतर तक घुस आती हैं, वही आंखें दरअसल हमारा ज़मीर हैं. वही हमें प्‍यार करती हैं, वही हमारे सही ग़लत का आकलन करती हैं. जब बच्‍चा पहला डग भरता है, तो मां की आंखें उसे देखती हैं. वही आंखें उसे देखती हैं, जब वह सबकुछ छोड़कर दूर जा रहा होता है. काश, मेरी आवाज़ उन सब मांओं तक पहुंचे, जो अपने बच्‍चों को सड़क किनारे कूड़े के ढेर के पास लावारिस छोड़ जाती हैं या काश, मेरी आवाज़ उन बच्‍चों तक पहुंच जाए, जो अपने मां-बाप को वृद्धाश्रमों और अस्‍पतालों में भूल आते हैं. मुझे याद है, मेरी मां ने मुझसे सिर्फ़ एक बार कहा था, सिर्फ़ एक बार, तब मेरी उम्र पांच साल थी. मां ने कहा था- "तुम बहुत शरारती हो, देखना, मैं तुम्‍हें छोड़कर चली जाऊंगी, चली जाऊंगी और फिर कभी लौटकर नहीं आऊंगी." मुझे याद है कि मेरे दिल से खून बहने लगा था. हां, ऐसा ही कहना चाहिए, दिल से ख़ून. मैंने ख़ुद को खालीपन और अंधेरे में पाया था. मां ने तो सिर्फ़ एक बार कहा था, मैं सारी उम्र इस बात से डरा रहा कि मां चली जाएगी. और एक

पिता के बारे में ओरहान पामुक

पिता के बारे में ओरहन पमुक ---- उस रात मैं देर से घर पहुंचा था। पता चला, पिताजी की मृत्यु हो गई है। क़रीब दो बजे रात मैं उनके कमरे में गया, ताकि उन्हें आख़िरी बार देख सकूं। सुबह से फोन आ रहे थे, लोग आ रहे थे, मैं अंत्येष्टि की तैयारियों में लगा हुआ था। लोगों की बातें सुनते हुए, पिताजी के कुछ पुराने हिसाब चुकता करते हुए, मृत्यु के काग़ज़ात पर हस्ताक्षर करते हुए बार-बार मेरे भीतर यही ख़याल आ रहा था, हर क़िस्म की मौत में, मरने वाले से ज़्यादा महत्वपूर्ण रस्में हो जाती हैं। एक दिन मैं किसी को बता रहा था, मेरे पिताजी ने मुझे कभी डांटा नहीं, कभी ज़ोर से नहीं बोला, मुझे कभी नहीं मारा। उस समय मुझे उनकी दयालुता के कितने क़िस्से याद आए। जब मैं छोटा था, जो भी चित्र बनाता था, मेरे पिताजी कितनी प्रशंसा के भाव में भरकर उन्हें देखते थे। जब मैं उनकी राय पूछता था, तब वे मेरे लिखे हर वाक्य को इस तरह पढ़ते, जैसे मैंने मास्टरपीस लिख दिया हो। मेरे बेस्वाद और नीरस चुटकुलों पर वह ठहाके लगाकर हंसते थे। अगर बचपन में उन्होंने मेरे भीतर वह विश्वास न भरा होता, मैं कभी लेखक नहीं बन पाता। हम दोनों भाइयों मे

Ravi Sinha's Lecture in Bhopal and Andre Kartesh - A Great photographer

Ravi Sinha's lecture in Bhopal  कल न्यू सोशल इनिशिएटीव्स की एक गोष्ठी , जो भोपाल के आईकफ आश्रम में आयोजित थी, में रवि सिन्हा ने "लोक जीवन और लोकतन्त्र" विषय पर एक अच्छा व्याख्यान दिया। सबसे अच्छा लगा कि वामियों को अपने ब्लैक स्पॉट दिखाए और गरियाया भी। उन्होंने प्रस्थापना रखते हुए कहा कि लोकतन्त्र को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से खतरा है और यह खतरा लोक जीवन से आता है। यह एक तरह से आत्म चिंतन था जिस पर 36 धड़ों में बंटे कम्युनिस्टों को सोचना चाहिए। मजेदार यह है कि चन्द अंग्रेज और मुगलों ने यही के लोगों को अपने  साथ जोड़कर यही की संस्कृति को ओढ़कर यही के लोगों पर कब्जा कर लिया। रवि ने कहा कि यदि जनता के बीच कुछ मुद्दों को आज ले जाए तो इन मुद्दों को सांविधानिक स्वीकृति मिल जायेगी जैसे जाति प्रथा, सामन्तवाद, बाल विवाह, सती प्रथा या विधवा विवाह को रोका भी जा सकता है। जनता मूर्ख नही है धर्मांध है और इसी जनता ने ट्रेड यूनियन या अपने हकों की लड़ाई में वामपंथ को साथ दिया था पर सत्ता कभी नही दी। इसलिए दक्षिण का जो उभार है और हम 31 % की भूल मानकर उम्मीद करते है वह हमारी मूर्खता है।

MP Farmer's Strike -Violence and Govt

कल का सारा दिन मालवा में किसान आंदोलन बेहद आहत करने वाला और उग्र रहा। मप्र के मुख्य मंत्री के प्रबन्धन और प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल थे और आंकड़े, तस्वीरें थी। और यह सब पूछना क्या गलत है सुशासन का क्या अर्थ है, आईये देखिये देवास में नगर निगम ने शहर को खोद कर कैसे बंटाधार कर दिया है, यदि नागरिक अपनी पीड़ा नही रखेंगे तो गवर्नेंस का क्या मतलब है, यही कर रही भाजपा 15 सालों से। मुझे किसी पार्टी से लगाव या दुश्मनी नहीं ना किसी नेता से प्रेम या दुश्मनी, पर एक - टैक्स देता हूँ ,दो-  संविधान ने मुझे जिम्मेदार नागरिक और सम्मान से जीने की छूट दी है, तीन- अभिव्यक्ति की आजादी दी है। आप लोगों के तो घर में ना संविधान होगा ना आपने देखा होगा, पत्राचार से एम जे करके या हॉकर से पत्रकार बन गए होंगे ! आपका आपरेटर ही लिखता होगा " नूज़" , आपकी अकादमिक क्षमता और सेटिंग, लिफाफा संस्कृति से वाकिफ हूँ भली भाँती मैं। दुखद यह था कि कई पत्रकार और जिम्मेदार गम्भीर किस्म के मित्रों ने यहां लोगों को धमकी दी कि यदि शासन प्रशासन के ख़िलाफ़ लिखा तो वे पुलिस में रपट दर्ज करवा देंगे। यहां तक कि मेरे लिखे

यहूदी की लड़की - आगा हश्र कश्मीरी का नाटक 7 जून 2017 को देवास में

यहूदी की लड़की  देवास संगीत और कला के लिए प्रसिद्ध रहा है नाटक का यहां पर कोई व्यवस्थित मंच नहीं और समृद्ध परंपरा भी नहीं है परंतु पिछले कुछ दिनों से यहां नाटकों की सरगर्मी बढ़ी है । हाल ही में नटरंग थिएटर्स के द्वारा "ढाई आखर प्रेम" का नाटक किया गया था और अब किल्लोल कला अकादमी मुम्बई और देवास भारत भवन, भोपाल के सहयोग से 8 दिवसीय शिविर के माध्यम से आगा हश्र कश्मीरी का नाटक "यहूदी की लड़की" प्रस्तुत करने जा रहा है । नाटक की निर्देशिका कनुप्रिया है (स्थानीय नाट्यकर्मी और फ़िल्म कलाकार चेतन पण्डित की धर्म पत्नी) जो खुद एक ख्यात कलाकार और रंगकर्मी है । अपने साथी इम्तियाज के साथ वह नाटक का निर्देशन कर रही हैं । कनुप्रिया ने आज बातचीत के दौरान बताया कि वह पटना की रहने वाली है , संगीत साहित्य उन्हें बचपन में अपने घर से परंपरा में मिला है उनकी मां डॉक्टर उषा किरण खान - साहित्य की जानी मानी हस्ती है , और पुलिस अधिकारी पिता से संस्कार मिलें। उनके सानिध्य में रहकर उन्होंने साहित्य संगीत और अन्य ललित कलाओं की बेसिक शिक्षा ली और बाद में पढ़ने के लिए वे दिल्ली आ