Skip to main content

Posts

Showing posts from October, 2013

My Blog in Amar Ujala 26 Oct 2013

http://blog.amarujala.com/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%89%E0%A4%97-%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%95/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A6-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%B9/

Jansandesh my Blog 27 Oct 2013

चापलूस गणराज्य की स्थापना करें

आईये चापलूसी करें और सब पा लें जो हम इस जीवन में अपने कर्मों के सहारे नहीं पा सकते, चाहे संपत्ति हो, प्रमोशन हो, लाईक हो, कमेन्ट या अपने आलेख किसी अखबार, जर्नल या पत्रिका में.  चापलूसी में बड़े गुण है राजनीती से लेकर फेस बुक तक में यह देखने को मिल जाएगा. आईये चापलूसों को सम्मानित करें, उनका नागरिक सम्मान करें, उन्हें ससम्मान लोकसभा, विधानभाओं, स्थानीय शासन की संस्थाओं में भेजें और इन चापलूसों द्व ारा की जा रही चापलूसी प्रक्रियाओं को दस्तावेजित करके देश की धरोहर में संगृहीत करें. कहाँ जा रहे है श्रीमान जी, आईये इन चापलूसों का एक नागर समाज बनाएं जो हर बात में हाँ में हाँ मिला दें और सब करने का दम भरते है, भले ही ना इन्हें हिन्दी आती हो या अंगरेजी, ना काम आता हो या ना समझ हो , ना काम करने का शउर, ना कुछ याद रहें ना कुछ करने का जज्बा हो, पर हाँ में हाँ मिलाना जरुर आता हो बस, ऐसे ही चापलूसों के आदमकद बुत बनाकर चौराहों पर स्थापित करें और इनके बनाए उसूलों पर सीमेंट कांक्रीट की पक्की सड़क बना दें, ना समझ है ना याददाश्त पर इनकी हाँ पर पूरा संसार समर्पित. अपने आपको घोड़ा मानकर जो गधे टट्टू भी न

दुनिया के घोड़ों होशियार

उसे मालूम नहीं कि काबुल में घोडें नहीं होते, वह चालाक है, सारे गधों को इकठ्ठा करके जोत दिया और अब खुद घोड़ा बना बैठा है अगर सच में घोड़े श्रेष्ठ होते तो जंगल छोड़कर नहीं आते या दुनियाभर में लोग घोड़ों के अभ्यारण्य बना रहे होते, गधों को कोई मुगालते नहीं- वे जंगल में भी खुश है और आपकी हम्माली करते हुए भी या पहाड़ पर टट्टू के रूप में चढते हुए भी या केदारनाथ के स्खलन में दबकर मरते हुए भी. सवाल यह है कि आखिर में बचेगा कौन??? तो सुन लो घोड़ों, डार्विन चचा कह गए कि Survival of the Fittest. घोड़े सिर्फ टाँगे में जोते जा सकते है या रेस में दौडाए जा सकते है, तीसरे विकल्प के रूप में वे किसी बारात में सिर्फ चन्द घंटों के दुल्हे को ढोने का काम ही कर सकते है बाकी किसी काम के नहीं, गधे इस मामले में बड़े बेशर्मी से सब वे काम कर सकते है जो कोई नहीं कर सकता.............दुनिया के घोड़ों होशियार........ घोड़ों को अपनी श्रेष्ठ नस्ल का जितना मुगालता या गुमान होता है उतना किसी को नहीं, परन्तु वे गधों से तुलना करते समय भूल जाते है कि दुलत्ती गधों की जोरदार होती है और अगर सरेआम पड़ गयी तो कही के नहीं रह

"शाहिद को देखा जाना बेहद जरुरी है"

"शाहिद" (हंसल मेहता द्वारा निर्देशित) सिर्फ एक फिल्म नहीं वरन हमारे सात दशकों की वो कहानी है जो आज भी टीस बनकर नासूर के रूप में मौजूद है, शर्मनाक यह है कि इसे एक फिल्म के रूप में बनाकर परोसना पड़ रहा है औ र हाल में सिर्फ चन्द लोग बातें करते हुए देख रहे है इस फिल्म को. असल में जो केके मेनन इस फिल्म में जेल की सीखंचों के भीतर रहते हुए कहते है ना कि "उसे मालूम नहीं कि काबुल में घोडें नहीं होते, वह चालाक है, उसने सारे गधों को इकठ्ठा करके खुद घोड़ा बना बैठा है' यह सिर्फ एक डायलाग नहीं वरन हमारे लोकतंत्र पर एक करारा तमाचा भी है, क्योकि ऐसे चालाक लोग हमारे आसपास मौजूद है जो सिर्फ अपने मकसद के लिए और बाजारीकरण के इस कमाऊ दौर में बुद्धिमानों को भी गधा समझ कर इस्तेमाल कर रहे है, और अकूत संपत्ति बना रहे है और अपनी राजनैतिक ताकत भी. यह फिल्म जिस मुम्बई के दंगों के साथ शुरू होकर स्व शाहिद आजमी के सम्पूर्ण कार्यों को दर्शाती है वह प्रशंसनीय है शाहिद के जेल के अनुभवों को बार बार अंत तक कोर्ट में तक सरेआम जलील किया जाता है यह दिखाता है कि गंगा- जमानी तहजीब वाले इस देश में कैस

YOU MADE MY DAY AND THIS SHORT TRIP TO DEWAS, NITIN. BHAWR

कल नितिन भवर से मिला बहुत पुराना दोस्त, अनुज और एक सघन पारिवारिक सदस्य, नितिन भारतीय फौज मे बहुत वरिष्ठ अफसर है और आजकल सूडान मे" युएन शान्ति मिशन" मे एक बटालियन को हेड कर रहा है. कल नितिन ने मेरी जानकारी मे वृद्धि की और सूडान और वहाँ के हालातों का जिक्र किया, कैसे वो लोग और हमारे भारतीय जवान वहाँ के आतंरिक कलह मे अपना दायित्व निभा रहे है कैसे वहाँ के आदिवासी और कबीलाई लोगों के आपसी झगडें और दैन िक जीवन मे भारतीय फौज लोगों को राशन बांटने से लेकर उनके स्वास्थय, शिक्षा और इन्फ्रा स्ट्रक्चर बनाने मे मदद कर रही है. निश्चित ही यह सब काम एक पराये मुल्क मे कर पाना बेहद रोमांचित एवं चुनौती भरा है क्योकि नितिन ने बताया कि वहाँ रेगिस्तान है, बहुत बड़ा है दलदल है, पानी नहीं है, बहुत अभावों मे फौज काम करती है अपने परिवार से दूर रहकर, छोटी मोटी सब्जियां तक नहीं उग पाती है, बाकि फसलों का होना तो ख्वाब ही है, कैसे वो मछली पकडने के लिए तीन तरह के समुदायों को समुद्र मे भेजते है एक ही नौका मे ताकि उनमे झगडों के बजाय सामंजस्य बढे और कटुता की जगह प्रेम उत्पन्न हो. बस मछली ही जीवन है और चौपाये

गुरु की करनी गुरु जानेगा............कलापिनी को "गुरु" के पद पर होने की बधाई.

देवास मेरे लिए सिर्फ इसलिए एक शहर नहीं है कि मै यहाँ का हूँ बल्कि इसलिए कि इस शहर मे रहकर बाबा (पंडित कुमार गन्धर्व) ताई वसुंधरा कोमकली, नईम जी, प्रभाष जोशी, डा प्रकाशकान्त, जीवन सिंह ठाकुर, ओम वर्मा, ब्रजेश कानूनगो, डा सुनील चतुर्वेदी, मोह न वर्मा, दिनेश पटेल, अफजल, बी आर बोदडे, निर्मला बोदडे, प्रभु जोशी, प्रिया-प्रताप पवार, बहादुर पटेल, सत्यनारायण पटेल, देव निरंजन, मनीष वैद्य, भुवन कोमकली, देव कृष्ण व्यास, शशिकांत यादव, राजकुमार चन्दन, मनोज पवार, राजेश जोशी, हरीश पैठनकर, गजानन पुराणिक, प्रहलाद टिपानिया, कैलाश सोनी, अम्बुज सोनी, मनीष भटनागर, डा शारदा प्रसाद मिश्रा, और ना जाने कितने ऐसे लोग है जो कला की दुनिया के शिखर पुरुष रहे है और है, और आज भी सक्रिय है. यह शहर मुझमे दौडता है आज लखनऊ मे हूँ पर हर पल यही लगा रहता हूँ जो कुछ भी सोचता और करता हूँ इस शहर के संस्कार और मूल्य मुझे हर बार नया कुछ सीखाते रहते है. ई एम फास्टर और भोजराज पवार से मैंने अंग्रेजी का साहित्य सीखा और कुमार जी ने राहुल बारपुते, बाबा डिके और विष्णु चिंचालकर से मिलवाया. कल शाम को मैंने कहा भी कि अगर ये चार-पांच लोग म