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Showing posts from January, 2019

साहित्य के मेले और दुर्गति के ठिकाने 29 Jan 2019

साहित्य के मेले और दुर्गति के ठिकाने ▪ अफसोस कि प्रगतिशीलता और लेखन भी समानांतर हो गया है - इससे ज़्यादा साहित्य की दुर्गति क्या होगी। ▪ कोई अर्थ नही लिखने, पढ़ने और दुनिया को ज्ञान बांटने का, साहित्यकार - लेखक को अपने अंतर्मन में झांकने की जरूरत है - सेटिंग, जुगाड़ और पुरस्कारों की महिमा में वेश्याओं की तरह अपने आपको बेच देने के बजाय। ▪ कितने - कितने गुटों और खेमों में बंटे ये टुच्चे भर लोग अपने घर, परिवार और औलादों को सुधार नही पाएं, खुद पतित रहें और समाज में अपने गुण दोषों की वजह से बिरले बने रहें, कुछ को छोड़कर अधिकांश बर्बाद भी हुए और बर्बाद भी किया - विध्वंसक होकर, फिर किस बात की विचारधारा और प्रतिबद्धता। ▪ लिटरेचर फेस्टिवल के नाम पर विशुद्ध गुटबाजी, गुंडागर्दी, कार्पोरेट्स के दलाल, संक्रमित विचारधारा के कीड़े मकौड़े, नेताओं और हस्तियों को साधने का काम करते ये कलम के परजीवी क्या कर रहें है वहां भड़ैती और बकर के सिवा, एक अंधी दौड़ में शामिल हर गांव -कस्बे के लोग अब फेस्टिवल कर इतिहास में अमर होना चाहते है, हर टटपुँजिया लेखक इसमें शामिल होकर शहीद होना चाहता है जबकि झेलने

Basics of Life 27 Jan 2019 and Few Points on Manikarnika

परेशान हो - जीवन, प्रतिस्पर्धा, असफल होने और तनावों - अवसादों से, जेब मे रुपया नही है, घर दोस्तों से निराश हो, प्रेम में असफल और अपनी पीड़ा भी नही कह पा रहे तो सुनो - ◆घर से निकलो ◆अनजान लोगों से मिलो ◆उनके संघर्ष को समझों ◆पैदल चलो शहर में ◆अंधेरे दबे कोनों में जाओ ◆मदमस्त हो जाओ   ◆वर्जनाएं तोड़ो   ◆उन्मुक्त हो जाओ   ◆मन के कोनो को जीने दो ◆अपनी गलीज़ बौद्धिकता खुद पर मत थोपो ◆जीवन को जीवन रहने दो ◆यह कोई पुरस्कार की दौड़ नही ◆यह खुद को समझने की पहल है ◆किसी को क्यों देखें हम ◆हम किसी के लिए नही बनें हैं मेरा जीवन है और इस पर सिर्फ मेरा अधिकार है ***** 21 वी सदी के दूसरे दशक की घटिया फ़िल्म - मणिकर्णिका ◆◆◆ इतने अच्छे भव्य दृश्य, सिनेमेटोग्राफी और पर्याप्त से ज़्यादा रुपया खर्च करने के बाद भी कमजोर कंगना के बजाय सोनाक्षी या दीपिका पादुकोण या अभिषेक की घरवाली को ले लेते तो भला होता दर्शकों का फिल्मी दुनिया से इतिहास की उम्मीद करना नितांत मूर्खता है इसलिए कोई टिप्पणी नही डायलॉग लिखने वाला किसी चलताऊ किस्म का कहानीकार होगा जो से

NDTV, Face Book Post and State Representative. 24 Jan 2019

22 Jan 2019  एनडीटीवी की दिक्कत यह है कि उनका राज्य प्रतिनिधि ख़ाकी चढ्ढी पहनकर बैठा है और बात वामी क्रांति की करता है यह समझ नही कि किसानों के नाम और कर्ज की राशि पंचायत से भेजी जाती है जहां अपढ़, कुपढ़ और महिलाओं के एस पी साब बैठे है - इन्हें ना लिखने की समझ है ना गणित की, रहा सवाल सचिवों का तो वे अजीब मूर्ख किस्म के है जिन्हें लिखना पढ़ना तो दूर सिवाय सेटिंग के कुछ नही आता मीडिया के अन्य लोगों की तरह गिरगिट लोग एनडीटीवी में भी है जो चैनल पर लाइव के समय क्रांतिकारी होते है और निजी जीवन मे अवसरवादी या संघी , इसमें कुछ गलत नही पर दोनो तरफ से रोटी खाना तुम्हारी औकात और हवस का खुला प्रदर्शन है , यह कोई नया नही है एक घटिया चैनल के पूर्व प्रतिनिधि को भी जनता जानती है , स्नातक भी हो नही पाया जीवन मे जो किस कदर चापलूस था शिवराज का और अपनी अल्प आयु में अकूत दौलत का स्वामी बन बैठा, जब भांडा फूटा तो हकाला गया फिर यहां वहां घूम घामकर अब दो कौड़ी के चैनल में मर्दानगी बघार रहा है जिसे कोई नही देखता मीडिया के साथ लगातार समझ बनाकर गिरगिटों को बेनकाब करने की भी सख्त जरूरत है जो सरकारों को ससुराल

In Custody 24 Jan 2019

◆ सब साज़ खामोश है ◆ मैं चला उस दो ग़ज़ जमीन को जो मस्जिद के साये में मेरी मुन्तज़िर है ...... शशि कपूर ओम पुरी सुषमा सेठ नीना गुप्ता शबाना आजमी "In Custody - मुहाफ़िज़" फ़िल्म देखकर आज का पूरा दिन उदास कर गया भोपाल के एक शाइर के जीवन पर बनी यह फ़िल्म जितनी बार देखी आज उतना खुलती गई और अंत में मेरी झोली में एक सर्द शाम और अभिशप्त रात डालकर विदा हो गई यह फ़िल्म नही जीवन है , इस्माईल मर्चेंट साहब आपकी यह फ़िल्म देखकर माजिद मजीदी साहब की भी बहुत याद आई Beyond the Clouds ऐसी ही एक फ़िल्म थी जो बहुत दिनों तक आत्मा पर बोझ बनी दुबकती रही एक नज़्म आपके लिए दिल ठहर जाएगा दर्द थम जाएगा ग़म ना कर, ग़म ना कर ज़ख्म भर जाएगा दिन निकल आएगा ग़म ना कर, ग़म ना कर अब्र खुल जायेगा रात ढल जाएगी ऋत बदल जाएगी ग़म ना कर, ग़म ना कर ग़म ना कर ***** चश्म-नम जान-ए-शोरीदा काफ़ी नहीं  तोहमत-ए-इश्क़-ए-पोशीदा काफ़ी नहीं  आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो  दस्त-अफ़्शाँ चलो मस्त ओ रक़्साँ चलो  ख़ाक-बर-सर चलो ख़ूँ-ब-दामाँ चलो  राह तकता है सब शहर-ए-जानाँ चलो  हाकिम-ए-शहर भी मजमा-ए-आम भी  तीर-ए-इल्ज़ाम भी सं

फ़रवरी वासंती हवाओं के साथ झूमने का माह है

एक पत्ती पेड़ के तने से उजड़कर अभी उड़कर आई है, पेड़ खाली हो रहे है आहिस्ते से, हवाओं में वासंती मस्ती है, ठंडी हवाएं कुनकुनी सी, धूप छतों से होकर खिडकियों के बारास्ते   झांककर गुजर रही है, मेरे गुलमोहर के पेड़ पर से पत्तियाँ हलके से टूटकर बिखर रही है, पूरी जमीन पर फूलों का बिखराव यूँ लगता है मानो वसंत के आगमन में प्रकृति एकाकार हो गई हो और अपनी मदमस्त चाल से चलकर समूचे परिवेश को प्रसन्नचित्त होकर बहुत कुछ बांटना चाहती हो. चारो और पेड़ों पर शोख और चंचल फूल इठला रहें है और झूमते हुए एक दूसरे के कानों में एक गान गुनगुना रहे है मानो महाकवि निराला ने जो लिखा वो सब आज ही गा लेना चाहते हो और गाये भी क्यों नहीं हिंदी के बड़े कवि महाप्राण निराला का जन्मदिन भी इसी माह पड़ता है - वसन्त पंचमी को जिन्होंने लिखा था – “ अभी न होगा मेरा अंत / अभी- अभी ही तो आया है / मेरे वन में मृदुल वसंत / अभी न होगा मेरा अंत “ फरवरी वर्ष का सबसे छोटा माह है मात्र 28 दिनों का सिवाय लीप वर्ष को छोड़कर, हर चार साल में एक लीप वर्ष आता है जो 29 दिन का होता है, यह गणित समझना और हल करना मजेदार भी है कि लीप वर्ष कब आयेगा. फे

Posts of 17/18 Jan 2019 Young Poets of Hindi Second Decade

Post of 17 Jan 2019 एक मित्र ने पूछा कि इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में आप किन युवा कवियों को पढ़ रहे है तो तुरंत नाम जो दिमाग़ में आये वो है - अनुज लुगुन सुघोष मिश्र अदनान कफील दरवेश शैलेन्द्र शुक्ल विहाग वैभव कुमार मंगलम   उपासना झा स्मिता सिन्हा   शैलजा पाठक अमित आनंद पांडेय   डॉ देवेश पथ सारिया अम्बर पांडेय अभी बहुत से और नाम है पर जो बिहार से बाहर के है ( मित्र , जो बिहार के पटना से है, का कहना था कि बिहार से तो वो वाकिफ है, हालांकि बिहार से अनुज अंचित, मुकुट, अभिषेक अर्थात  मिथिलेश कुमार राय  भी मेरे पसंदीदा युवा कवि है ) बाकी और लिखता हूँ, आप भी मित्र की मदद कर सकते है Sandip Naik  द्वारा जारी की गई इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में सक्रिय युवा कवियों की सूची और उस पोस्ट पर आई टिप्पणियों को पढ़कर मन में तीव्र वितृष्णा का भाव पैदा हुआ। मेरा विनम्र निवेदन है कि संदीप दादा आप मेरा नाम हटा लें। मैं किसी होड़ में शामिल नहीं हूँ, न रहा कभी। ये तमग़ा उनके लिए ही बचा कर रखा जाए जो उसके लिए 'गलाकाट प्रतिस्पर्धा' में शामिल हैं। अंत में एक छोटी-सी क

Sawai Singh Shekhawat, Opportunists, Ashu's Birth day card, May Election 2019 - Posts of Jan II week 2019

मई_2019 तक शांत रहिये और अपना काम करते रहिये, ये उकसाते रहेंगे क्योकि अब चूक गए है चौहान, न्यूज देखना बंद कर दीजिये , गाना सुनिए , कपिल शर्मा शो देखिये, क्राईम पेट्रोल या सावधान इंडिया और कुछ ना कर सकें तो कविता लिखिए , कहानी लिखिए, यदि आपकी कोई किताब कही से छपी हो योग्यता, सेटिंग, जुगाड़ या रूपये ले देकर तो - उसका प्रचार करिए, आत्म मुग्ध रहिये, पुस्तक मेले में होकर आयें हो तो "याद पिया की आयें .......टाईप वाली तस्वीरें लगाकर लिजिलिजे हो जाईये अपनी माशूकाओं को याद करिए, रिश् तेदारों को गरियाईये , प्यार - मुहब्बत करिए या अपने विश्व विद्यालय के दिनों को याद कर किसी काली गोरी लड़की के बारे में लिखिए और टपकाईये उद्दाम वेग से अश्रुधार - कई राज्यों में पानी गिरा नही है आर्य, शक, मंगोल, हूण से लेकर मुग़ल और अंग्रेजों को कोसिये , सिन्धु से लेकर बेबीलोन की सभ्यता का ज्ञान बाँट दीजिये, अपने मोहल्ले के साले शर्मा, वर्मा, सिन्हा, सोलंकी, मालवीय या पांडे, देशपांडे, कुलकर्णी या जोसेफ, कुरैशी, खान को चाय पर बुलाकर भड़ास पेल दीजिये पर इन लोगों पर कुछ मत बोलिए - भक्तों को इससे ज्यादा आग लगे

World Book Fair 2019 - 9 Jan 2019

पिछले सालों में जो किताबें खरीदकर लाये थे - कितनी पढ़ी, नोट्स लिए, कुछ लिखा, कव्हर चढ़ाएं, लेखक को पोस्टकार्ड लिखा या फोन किया, किसी आयोजन में चर्चा की, किसी एक और को पढ़वाई, उन पर किये खर्च का बखान नही किया, सम्हालकर रखी ? जो लोग फोटू डाल रहें है - जरा आत्म मंथन भी कर लें और इस साल के लिए क्या लेना है इसके लिए सालभर कितनी पत्रिकाएं पढ़ी - समीक्षा वाला कालम, वेब पेजेस पर चर्चा, ब्लॉग्स, और किसी अन्य जगह ? चिकने चुपड़े चेहरे देखकर, यारी दोस्ती , दूरदर्शन - आकाशवाणी के एंकर्स की वायवीय दोस्तियां, मीडिया के घाघ पत्रकारों का कचरा तो नही उठा ला रहे फिर से चहकती - फुदकती , मेकअप से लदी महिलाओं के दस से सत्तर साला हिसाब किताब का कूड़ा तो नही ला रहें, वाट्सएप्प पर बेशर्मी से ( मेरी तरह ) किताबों के भौंडे प्रदर्शन पर अपना मन बनाकर तो नही ख़रीद रहें, किसी मास्टर, प्रोफेसर से किसी विवि से व्याख्यान, पी एच डी मिलने की उम्मीद में उसका 800 पेज का कूड़ा ले आये, किसी ब्यूरोक्रेट की भड़ास और धर्म आध्यात्म के पोथे तो नही खरीदे जो उसने तत्कालीन सरकारों को खुश रखने के लिए लिखें थे और अनुदान में