एक पत्ती पेड़ के तने से उजड़कर अभी उड़कर आई है, पेड़ खाली हो रहे है
आहिस्ते से, हवाओं में वासंती मस्ती है, ठंडी हवाएं कुनकुनी सी, धूप छतों से होकर खिडकियों
के बारास्ते झांककर गुजर रही है, मेरे
गुलमोहर के पेड़ पर से पत्तियाँ हलके से टूटकर बिखर रही है, पूरी जमीन पर फूलों का
बिखराव यूँ लगता है मानो वसंत के आगमन में प्रकृति एकाकार हो गई हो और अपनी मदमस्त
चाल से चलकर समूचे परिवेश को प्रसन्नचित्त होकर बहुत कुछ बांटना चाहती हो. चारो और
पेड़ों पर शोख और चंचल फूल इठला रहें है और झूमते हुए एक दूसरे के कानों में एक गान
गुनगुना रहे है मानो महाकवि निराला ने जो लिखा वो सब आज ही गा लेना चाहते हो और
गाये भी क्यों नहीं हिंदी के बड़े कवि महाप्राण निराला का जन्मदिन भी इसी माह पड़ता
है - वसन्त पंचमी को जिन्होंने लिखा था – “अभी न होगा मेरा अंत / अभी- अभी
ही तो आया है / मेरे वन में मृदुल वसंत / अभी न होगा मेरा अंत “
फरवरी वर्ष का सबसे छोटा माह है मात्र 28 दिनों का सिवाय लीप वर्ष को
छोड़कर, हर चार साल में एक लीप वर्ष आता है जो 29 दिन का होता है, यह गणित समझना और
हल करना मजेदार भी है कि लीप वर्ष कब आयेगा. फेब्रुअम नामक लेटिन भाषा के
शब्द से बना यह माह रोमन कैलेंडर में जनवरी के साथ आखिरी माह में शामिल था, चार सौ
पचास बीसी में इसे दूसरे माह में शामिल किया गया. फेब्रुअम का अर्थ होता है शुद्धिकरण,
कितना सुखद संयोग है कि हम वसंत माह में माँ सरस्वती का पूजन करते है अपने लिए
बुद्धि और ज्ञान की प्रार्थना करते है - जब तन मन शुद्ध हो तभी हम विद्या और विवेक
की बात कर सकते है, दुनिया में ज्ञान प्राप्त करने के लिए आत्मा की शुद्धि के साथ
तन मन की शुद्धि भी जरुरी है और इसलिए हम वसन्त पंचमी जैसा पावन त्यौहार हमारी
महान संस्कृति में है हम इसे पुरे भारत वर्ष में श्रद्धा से मनाते है – पीले केसरिया
परिधान में पूजा करके और पीले केसरिया मीठे चावल खाकर वसंत का आगाज़
करते है.
इस माह में एक और बड़ा दिन आता है जिसे आजकल सारी दुनिया प्रेम का
प्रतीक मानकर पागल हुई जाती है, संत वेलेंटाईन के नाम पर दुनियाभर में चौदह फरवरी
को प्रेम दिवस मनाया जाता है जिसका इंतज़ार धड़कते हुए दुनिया भर के दिल सालभर करते
है, इस दिन के लिए वे अपने प्रेमी को प्यार में पगी भावनाएं और सन्देश पहुंचाते
है, प्रेम की शाश्वतता से कोई इनकार नहीं किया जा सकता, पर इधर ग्लोबल बाजार ने जब
से इस प्रेम को व्यवसाय में बदल दिया है उससे प्रेम के स्वरुप और प्रदर्शन पर पहरे
भी लगें है और प्रेम को लेकर समाज उद्धेलित भी हुआ है. परन्तु जब जब फरवरी आने की
पदचाप सुनाई देने लगती है किशोरों से लेकर युवा और हर दिल धड़कने लगते हैं जो सालभर
मनुहार करते रहते है और अघाते नहीं कि इस दिन समर्पण और त्याग में कही कोई कमी न
रह जाएँ.
पौष माह की समाप्ति के साथ माघ माह की शुरुवात यानी फसलों के पकने की
भी शुरुवात है जब गेहूं की बालियाँ और चने के दाने अपने कैशौर्य से निकलकर खुली हवा
और धूप में सांस लेने लगते है, गेहूं की झूमती बालियाँ देखकर किसान खुश है और उसने
अपनी आशाओं और महत्वकांक्षाओं का एक वितान रचना शुरू कर दिया है, अपने श्रम को
सार्थक होता देख वह निश्चित ही खुश भी होता है साथ ही चिंताओं की सलवटें उसके कपाल
पर भी उभरने लगती है – नींद में भी वह हिसाब में व्यस्त है - कितना लेना देना करना
है और फिर ग्रीष्म के लिए जब खेत खाली होंगे तो उस समय घर के चूल्हे की आग में
क्या समिधा डालना होगी कि अपने साथ घर भर की भी क्षुधा बुझ सकें, वह सोचता बहुत है
पर ज्यादा तनाव नहीं रखकर उद्दाम आशा और उत्साह से अपनी फसलों को प्यार से निहारता
है - एक बेफिक्री उसकी आँखों में है और आसमान ताकता है.
बच्चों, किशोरों और युवाओं को जहां फरवरी प्यार की सौगात देता है वही
जीवन की पाठशाला के साथ वास्तविक सीखने सीखाने के क्रम की आपाधापी में वह परीक्षा
देने को अपने को तैयार करता है इस संकल्प के साथ की वह जल्दी ही जीवन के रणक्षेत्र
में उतरकर अपनी काबिलियत सिद्ध करेंगे. यह माह प्रसिद्द वैज्ञानिक सीवी रमण के
जन्मदिन का भी माह है जो 28 फरवरी को प्रतिवर्ष मनाया जाता है विज्ञान दिवस
के रूप में , सीवी रमण वही व्यक्ति थे जिन्होंने कहा था और तर्कसंगत ढंग से समझाया
था कि आसमान नीला नहीं होता इस प्रभाव को रमण प्रभाव के रूप में हम जानते
है, विज्ञान दिवस हमें संविधान में निहित वैज्ञानिक मानसकिता के फैलाव और प्रचार
प्रसार की याद दिलाता है जो आज के इस समय में महत्वपूर्ण भी है, दुर्भाग्य से हम
इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक की समाप्ति पर है बावजूद इसके हम अभी भी अंधविश्वास और
कुरीतियों में फंसे हुए है, एक सौ अड़तीस करोड़ की आबादी वाले देश में जहां अब
शिक्षा और साक्षरता का प्रतिशत काफी बढ़ा है - वहाँ वैज्ञानिक नजरिया ना रखकर हम
गलत परम्पराओं और कुरीतियों के साथ अंधविश्वासों को मानेंगे तो कैसे एक साथ विकास
की धारा में शामिल होंगे इसलिए फ़रवरी हमें वैज्ञानिक नजरिया दिनोंदिन विकसित करने
की पुनीत याद दिलाता है.
और अंत में एक बार पुनः निराला को याद करते हुए -
मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण
इसमें कहाँ मृत्यु ?
है जीवन ही जीवन
अभी पडा है आगे सारा यौवन
स्वर्ण – किरण कल्लोलों पर बहता रे
बालक मन
मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बंधू, दिगंत; अभी न होगा मेरा अंत
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