पिछले सालों में जो किताबें खरीदकर लाये थे - कितनी पढ़ी, नोट्स लिए, कुछ लिखा, कव्हर चढ़ाएं, लेखक को पोस्टकार्ड लिखा या फोन किया, किसी आयोजन में चर्चा की, किसी एक और को पढ़वाई, उन पर किये खर्च का बखान नही किया, सम्हालकर रखी ?
जो लोग फोटू डाल रहें है - जरा आत्म मंथन भी कर लें और इस साल के लिए क्या लेना है इसके लिए सालभर कितनी पत्रिकाएं पढ़ी - समीक्षा वाला कालम, वेब पेजेस पर चर्चा, ब्लॉग्स, और किसी अन्य जगह ?
चिकने चुपड़े चेहरे देखकर, यारी दोस्ती , दूरदर्शन - आकाशवाणी के एंकर्स की वायवीय दोस्तियां, मीडिया के घाघ पत्रकारों का कचरा तो नही उठा ला रहे फिर से
चहकती - फुदकती , मेकअप से लदी महिलाओं के दस से सत्तर साला हिसाब किताब का कूड़ा तो नही ला रहें, वाट्सएप्प पर बेशर्मी से ( मेरी तरह ) किताबों के भौंडे प्रदर्शन पर अपना मन बनाकर तो नही ख़रीद रहें, किसी मास्टर, प्रोफेसर से किसी विवि से व्याख्यान, पी एच डी मिलने की उम्मीद में उसका 800 पेज का कूड़ा ले आये, किसी ब्यूरोक्रेट की भड़ास और धर्म आध्यात्म के पोथे तो नही खरीदे जो उसने तत्कालीन सरकारों को खुश रखने के लिए लिखें थे और अनुदान में थोक से छपवा लिए, दिल्ली वालों से सम्बन्ध बनाने के लिए उनके स्टॉल से बोझ तो नही ला रहें - याद रखिये वो आपकी जेब से रुपया निकालकर पानी तक पी जाएंगे प्रगति मैदान का और आपको पलटकर फोन नही करेंगे जियो नम्बर से
किसी प्रकाशक की कचरा किताबें तो नही ली जो एक माह में 50 शीर्षक छापता है या साल भर गरीबी का रोना रोकर सरकारी खरीद में सब खपा देता है - इन घाघ और मक्कार लोगों के चक्कर में मत फंसना ए ग्राहक - ये अम्बानी के साहित्यिक संस्करण है ये युवा छोरे छपाटो को दो चार हजार का आलच देकर फर्जी समीक्षाएं लिखवाकर प्रचार तंत्र खड़ा करते है और भ्रम फैलाते है , ये सिक्किम से लेकर गुजरात और काश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के कचरा अफसाने छाप देंगे और खुद या लेखक के माध्यम से आपको चार - पांच सौ का फटका लगा देंगें, वो भी इसे लोगों को जो कन्याकुमारी का क नहीं जानते वो नार्थ ईस्ट की राजनीति या काश्मीरी पंडितों की व्यथा क्या जानें............
किसी एनजीओ के भाई बहनों के बीच भी मत फंसना ये नए पिस्सू है जो अब फील्ड छोड़कर प्रकाशन के बन्द कमरों में क्रांति की अगुआई में संलग्न है
यह सब खरीदने से बेहतर है घूमिये फिरिए, दिल्ली में मौसम बड़ा मजेदार है, कुछ खरीददारी करिये और खाईये पीजिये सेहत बनाईये, लाल किला देखिये पुस्तक मेले में बस मजे लीजिये काहे बोझ उठाकर आएंगे, लेना ही है तो ऑन लाईन आर्डर करिए
सोचिए - रुपया है आपका, दिमाग है आपका और कचरा प्रकाशक का और कुंठित विचार लेखकों के
#खरी_खरी
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गज़ब का देश है
एट्रोसिटी एक्ट पर विरोध नही
सवर्ण आरक्षण पर भी विरोध नही
जनता भी बेवकूफ, जनप्रतिनिधि झुनझुना, प्रशासन विशुद्ध मूर्ख, कानूनविद धंधेबाज, न्यायालय अंधे और मोची मीडिया सॉरी दलाल मीडिया
चुनावों का उत्सव फिर आ रहा है, सर्दी में आपकी दारू और कम्बल काम आएं माईबाप अब गर्मी के लिए सफेद चादरें और बीयर का जुगाड़ कर दो
138 करोड़ मूर्खों के देश में राहुल ,मोदी, मायावती, पासवान, आठवले, अखिलेश , ममता, प्रकाश करात या नमूने ही जी सकते है
राष्ट्रीय शर्म अब भी बाकी है
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