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Showing posts from 2022

Kuchh Rang Pyar Ke and Drisht Kavi - Posts fromn 25 to 28 Dec 2022

  वर्चुअल दुनिया से असली दुनिया में ••••• इस वर्ष के आखिरी हफ़्ते में आखिरी यात्रा कर रहा हूँ और इस तरह की उबाऊ यात्रा में जब अपना कोई मिल जाता है तो सारी थकान भी दूर हो जाती है और खुशी का तो पूछो ही मत, लम्बी यात्रा कर एक और यात्रा पर पहुँचा तो खबर मिली, बस फिर क्या था - समय कम था, घूमे फिरे, शॉपिंग की, मिठाई ली, बढ़िया खाना खाया और जल्दी मिलने का वादा कर विदा हो गए, ये यहाँ प्रशिक्षण पर है और अपुन रास्ते की धूल फांकेंगे फिर से, पर उम्मीद है फिर दोस्त मिलेंगे किसी अड्डे या ठिये पर - जो मेरी ताकत है ये जनाब है तो पटना के पर दक्षिण भारत में किसी बैंक में राजभाषा अधिकारी है - विजयवाड़ा नामक शहर में, बहुत सहज, नेकदिल है, खूब पढ़ते और लिखते है, युवा विलक्षण आलोचक की श्रेणी में है, देश के चुनिंदा अग्र पंक्ति के साहित्यकार है, और बहुत साफ़ बोलते है - इसलिये मेरे लाड़ले है, लम्बे समय से फेसबुक से जुड़े थे, रोज बात न हो तो चैन नही पड़ता हमें, इनकी शादी में ना जाने पा का अफ़सोस था, आज मिलकर थोड़ा गिल्ट कम हुआ, पर अभी बहु से मिलना बाकी है - सो जनाब ने वादा किया है कि घर लेकर आयेंगे Khushbu Thakur तुम्हे

Khari Khari, Drisht Kavi and other Posts of Dec 22

Professional goals are temporary but personal loss is permanent *** 2014 से अभी तक की उपलब्धि यह है कि 80 करोड़ से ज़्यादा गरीब गुर्गों उर्फ़ वोट बैंक को घर बैठे राशन फ्री में बाँटना पड़ रहा है और 80 करोड़ से ज़्यादा मक्कार और लोभी लालची लोग यह नही समझ रहें कि सब चुनाव की माया है जो इस देश मे रोज़ होते रहते है अभी गुजरात, दिल्ली और हिमाचल में हुए, 2023 में मप्र, राजस्थान में होंगे और 2024 में देश भर में खाओ, खूब खाओ मुफ़्त का, संडास बन ही गए है घरों में, बस इतना याद रखना कि मुखाग्नि देते समय जब औलादें मुंह पर थूकेगी तुम्हारे और पूछेंगी कि जीवन के 7- 8 वर्ष मुफ़्त का राशन खाते रहें और ज़मीर कहाँ बेच दिया था तो - क्या जवाब दोगे हरामखोरो मध्यम वर्ग मेहनत कर टैक्स भरें और माले मुफ्त ये उड़ाये - इससे बड़ी मूर्खता कोई सत्ताधीश कर सकता है, कितनी अक्ल है यह स्पष्ट है रोज़गार ना देकर पाँच किलो की रेवड़ी बाँटना ही असली राम राज्य है मित्रों, किसान करें मेहनत और ये बाँटे मुफ़्त #खरी_खरी *** नफ़रत के बाज़ार में मुहब्बत की दुकान ••••• ◆ देश मोदी नही अम्बानी अडाणी चला रहे है ◆ भाजपा नफ़रत फैला रही है, हम मुहब्बत फैल

Khari Khari, Kuchh Rang Pyar ke, Drisht Kavi and Posts from 16 to 20 November 2022

आज यह अनमोल तोहफ़ा मिला - "लोकगायन में कबीर" - कबीर के 125 दुर्लभ लोकपदों का संग्रह अर्थ सहित- डॉक्टर सुरेश पटेल ____ कबीर को 1987 से व्यवस्थित ढंग से पढ़ना - समझना और गुनना शुरू किया था, अफसोस यह रहा कि मालवा में रहकर भी वाचिक परम्परा में कबीर से बहुत देरी से जुड़ा और अब तक जो समझा वह बहुत कम समझ पाया हूँ, और लगता है कि कबीर को समझने के लिए एक क्या दस जीवन भी कम है, अपने संगीत गुरू स्व पंडित कुमार गन्धर्व जी के भजनों ने एक नया झरोखा खोला और दिमाग़ के कुछ जाले साफ़ किये, भजनों की शास्त्रीयता से लोक शैली में कबीर को समझना आसान था पर कुछ शब्दों की क्लिष्टता और कुछ ठेठ मालवीपन से दिक्कत हुई पर धीरे - धीरे सब साफ होता रहा और इस सबमें बहुत सारे लोगों का हाथ रहा एक लम्बी यात्रा लगभग 35 वर्षों की रही है - पदमश्री प्रहलाद टिपानिया जी, डॉक्टर Suresh Patel जी, नारायणजी देलम्या जी, कालूराम जी बामनिया, मित्र दयाराम सारोलिया से लेकर प्रोफेसर Purushottam Agrawal जी और विदुषी Linda Hess जी जैसे स्कालर्स से बहुत सीखने को मिला, मालवा की असँख्य भजन मंडलियों ने बहुत बारीकी से मुझे मांजा और पक्क

Bhopal Vishwa Rang, Vikram University and Unwritten Stories, Khari Khari - Posts from 13 to 15 Nov 2022

भोपाल में साहित्य का अन्तरराष्ट्रीय समारोह हो रहा है जिसमे आयोज़क दावा कर रहे है कि 35 देश, 1000 कलाकार, 1 लाख भागीदार, 3 लाख सब्सक्राइबर, 18 मिलियन दर्शक इसमें हिस्सेदारी करेंगे - कमाल का आँकड़ा है पर इसे क्रॉस चेक और वेरिफाई कैसे करेंगे और कौन करेगा प्रामाणिकता इन तथ्यों की, यह दावा है कि यह विश्व का पहला रेकॉर्ड तोड़ कार्यक्रम है - आख़िर अब साहित्य या कबीर के भजनों को रेकॉर्ड बनाने की ज़रूरत क्यों है यह भी मेरा मूल सवाल है अभी इसका आमंत्रण मिला - जिसमे ढेरों जानकारियां सत्रवार है और नाम पढ़कर आश्चर्य इसलिये हुआ कि कई आलू - बैंगन और बेसन इसमें शामिल है हिंदी के और मजेदार यह कि इसमें 90 % वे शामिल है - जो इस तरह के चमकीले भड़कीले आयोजनों और साहित्य में रुपयों की दखल अंदाज़ी का विरोध करते है, पूंजी का विरोध करते है तमाम रिटायर्ड लोग, विवि में हिंदी विभागों के मक्कार प्राध्यापकगण, मास्टर और वे सब आलू - बैंगन जिन्हें पूंजीवाद से नफरत ही नही बल्कि उनकी रोजी रोटी चलती है पूंजी को कोसकर और इसके बिना सुबह पेट साफ़ नही होता, पर वे सब इसमें पूरी बेशर्मी से शरीक हो रहें है - कमाल यह नही, कमाल यह है क

Posts from 9 to 12 November 2022

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन मध्यप्रदेश का सबसे घटिया विश्वविद्यालय है, कबसे लॉ की परीक्षाएँ हो गई है परंतु परिणाम अभी तक घोषित नही किये है जबलपुर से लाकर एक प्राध्यापक को कुलपति बनाकर बैठा दिया था कि कुछ सुधार होगा पर वो भी यहाँ आकर मालवे के टेपों में टेपा ही साबित हुआ मक्कारों की फौज भरी पड़ी है - उच्व शिक्षा का जितना कबाड़ा भारत में हुआ है उतना कही नही और फिर कहते है विश्व स्तर पर हम रैंक में कही नही, देश भर के विवि हरामखोरी और नालायकी के अड्डे बन गए है, घटिया राजनीति और कु-व्यवस्था के शिकार बने सफेद हाथी है ये सब, बेहद लापरवाह और विशुध्द मक्कार इधर मप्र शासन उच्च शिक्षा विभाग ने दो बार प्रवेश की तारीख बढ़ा दी पर विवि के कानों पर जूं नही रेंग रही बेहद शर्मनाक और हास्यास्पद है और मज़ेदार यह कि कोई जवाब देने वाला जिम्मेदार नही पूरे विवि क्या डायलॉग था शोले का - "गब्बर ने ...." *** कार्तिक का घटता चाँद जब डेढ़ इंच के आकार तक पहुँचता है तो धरती, आसमान के साथ मन में भी उथल पुथल होने लगती है, एक अधूरी कहानी है - जो अभी तक मुकम्मल होने की बाट जोह रही है दुआ करें कि वो मक़ाम तक पहुँचे _

ग्रहण का दान - Post of 9 November 2022

मेरे यहॉं सफाई कर्मी आती है वो पढ़ी - लिखी है, उसे काम करने में बहुधा शर्म भी आती है, निगम में स्थाई कर्मचारी है, पाँच अंकों में तनख्वाह है पर अभी भी मांगने की प्रवृत्ति गई नही है खून से आज ग्रहण का शीदा लेने आई थी, पहले भी बात हो चुकी थी कि जब नगर निगम से तनख्वाह मिलती है तो ये बचा हुआ खाना क्यों मांगने आती हो, और क्या सच में घर जाकर खाती भी हो तो बोली - "सास ने जागीरदारी दे रखी है इस कॉलोनी की, इसलिये हमारा हक्क है, रुपये भी लेंगे और राशन भी और रात का बचा अन्न भी, दीवाली ईद पर इनाम भी - इसे कैसे छोड़ दें" ---- सिर्फ़ पढ़ा - लिखा होने से इंसान मूर्खता छोड़ देगा यह कल्पना ही बेकार है, रुपया लेना ठीक है कभी - कभी, पर रात का बचा खाना ले जाकर घर के बच्चों और बाकी को खिलाना कहाँ की बुद्धिमता है वो भी आज के समय में, फिर नगर निगम में स्थाई कर्मचारी है, पाँच अंकों में तनख्वाह भी लेते है - पर जो जागीरदारी का भूत है, ठसक है - वह 25 वीं सदी भी जायेगी यकीन नही होता - खत्म नही होगा और यह नई पीढ़ी पर थोपना क्या जायज़ है मैंने कई कर्मचारी देखें है जो शहरों - कस्बों में बढ़िया नौकरी कर रहें , वे अ