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Posts from 9 to 12 November 2022

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन मध्यप्रदेश का सबसे घटिया विश्वविद्यालय है, कबसे लॉ की परीक्षाएँ हो गई है परंतु परिणाम अभी तक घोषित नही किये है
जबलपुर से लाकर एक प्राध्यापक को कुलपति बनाकर बैठा दिया था कि कुछ सुधार होगा पर वो भी यहाँ आकर मालवे के टेपों में टेपा ही साबित हुआ
मक्कारों की फौज भरी पड़ी है - उच्व शिक्षा का जितना कबाड़ा भारत में हुआ है उतना कही नही और फिर कहते है विश्व स्तर पर हम रैंक में कही नही, देश भर के विवि हरामखोरी और नालायकी के अड्डे बन गए है, घटिया राजनीति और कु-व्यवस्था के शिकार बने सफेद हाथी है ये सब, बेहद लापरवाह और विशुध्द मक्कार
इधर मप्र शासन उच्च शिक्षा विभाग ने दो बार प्रवेश की तारीख बढ़ा दी पर विवि के कानों पर जूं नही रेंग रही
बेहद शर्मनाक और हास्यास्पद है और मज़ेदार यह कि कोई जवाब देने वाला जिम्मेदार नही पूरे विवि
क्या डायलॉग था शोले का - "गब्बर ने ...."
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कार्तिक का घटता चाँद जब डेढ़ इंच के आकार तक पहुँचता है तो धरती, आसमान के साथ मन में भी उथल पुथल होने लगती है, एक अधूरी कहानी है - जो अभी तक मुकम्मल होने की बाट जोह रही है
दुआ करें कि वो मक़ाम तक पहुँचे
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डेढ़ इंच का चाँद
असँख्य सुबहों का सूरज
रुपया औरत का दूसरा मर्द
रामनारायण बाजा बजाता
यूँ मरती है मृत्यु
भीड़ में अलग सा पागल
ये कहानियाँ है जो पन्नों में अभी तक आधी अधूरी पड़ी है, इसके अलावा आत्मकथ्य और तीन लम्बी कविताएँ, फिल्मों पर एक क़िताब जिसके काफी आलेख लिखे और छापे जा चुके है यहाँ - वहाँ, मित्र गौरीनाथ को वादा किया था गतवर्ष 30 नवम्बर का, एक साल बीत गया, पर शरीर में थकान है और लिखने में आलस, सोचता हूँ क्या होगा सब पूरा करके भी, बस कहानी लिखने की मशीन बनने से बचना चाहता हूँ, चंद्रकांत देवताले कहते थे - "संदीप, कविता कहानी लिखना मतलब आजकल पापड़ बड़ी उद्योग हो गया है, इससे बचना चाहिये"
आयेंगे अच्छे दिन भी
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अलविदा सिद्धार्थ सूर्यवंशी
मप्र में एन एच एम में पिछले वर्ष राकेश मुंशी जी भी जिम में ही हार्ट अटैक से गुज़र गए थे
यह सब कोविड के टीकों का कमाल है एक दिन भांडा फूटेगा जरूर

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Book on the Table
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सन 1987 में देवास के एक स्कूल में हमने एक माह का आवासीय कैम्प किया था "समावेश" तब पहली बार मिलें थे उसके बाद 1994 भारत स्काउट गाइड के मैदान पर नई दिल्ली में मुलाकात हुई थी, देश भर के समाजसेवी उपस्थित थे बच्चे, किशोर और युवाओं के साथ और कार्यक्रम का नाम था - "सीखने का आनंद" जिसमें कमला भसीन से लेकर शुभा मुदगल और तमाम देश भर की हस्तियाँ मौजूद थी, कार्यक्रम का उदघाटन किया था स्व अर्जुन सिंह ने जो केंद्र में गृह मंत्री थे, अर्जुन सिंह जी को व्यस्तता में से निकालकर लाने का काम स्व विनोद रैना ने किया था क्योंकि उस समय पंजाब समस्या उफान पर थी और अब 1994 के बाद 2022 में उस दिन 5 नवम्बर को - कार्तिक माह की कुनमुनि सी धूप में दोपहर को, तालों का शहर, एशिया का सबसे खूबसूरत आदिवासी संग्रहालय, वो शहर जहाँ दस साल रहा और पाया कि रिटायर्ड होकर यही बसा जाये पर अपने को तो मरने तक काम करना ही है इसलिये देवों के वास देवास में ही स्थाई बस गया हूँ, पर भोपाल.... आज भी एक नॉस्टेल्जिया है हममें से कइयों के लिये
ख़ैर, इस दोस्त ने लम्बे समय पत्रकारिता की है, ज़मीनी भी और दिल्ली की भी, फिल्में भी बनाने में सुरजीत सरकार को मदद की और अपने शहर के ब्रांडिंग में भी रोल निभाया, दोस्तों के बीच बेहद लोकप्रिय और यारों के यार है ये शख्स
कभी कभी Gopal से जलन होती है कि बालेंद परसाई, सुरजीत, बंशी माहेश्वरी, Mukesh Bhargava से लेकर नरेंद्र जैसे दोस्त है झोली में - जो भौतिक रूप से भले दूर हो पर सबकी जान एक ही है "पिपरिया" और ये सब मनमिलें दोस्त है
नरेंद्र भाई एक लम्बी पीड़ा से अभी उबरे है, और फिर पहियों यानी यात्राओं पर निकल पड़े हैं, उस काले काल को याद नही करना चाहता - अस्पताल की पीड़ाएँ, इंजेक्शन और चलने की असह्य वेदना की दास्तान फेसबुक पर पढ़कर मन उदास हो जाता था, पर जिसने भुगता हो और फिर भी जीवटता से बाहर निकल आयें और दोस्तों को झप्पी दें - वो शख्स कितना सहज और प्यारा होगा कह नही सकता - नरों का इंद्र नरेंद्र ही होगा ना
हर थेरेपी के बाद एक ग़ज़ल लिखने में माहिर और इस बहाने हम सब को आश्वस्ति देता कि अभी संघर्षरत हूँ, लिख रहा हूँ - चिंता ना करें , सब भालो
तो बात हो रही थी उस दोपहर की नमी वाली धूप की, तो अपना ताज़ा ग़ज़ल सँग्रह चुपके से दिया यह कहकर कि बहुत प्रतियां अभी लाया नही हूँ, हम घुलमिलकर बातों के गुनताड़े में कुछ यूं उलझे कि एक तस्वीर भी नही ले पायें, अचानक इमरजेंसी में मुझे भागना पड़ा
पर यह सँग्रह लगन और प्यार से पढ़ा जायेगा और अपने प्रिय ग़ज़लगो को समझा भी जायेगा
नरेंद्र कुमार मौर्य भाई का यह सँग्रह बेचैनियों के बीच रास्ता तलाशती अवाम के संघर्षों का जीवंत दस्तावेज है - यह दावे से कह सकता हूँ क्योकि उन्हें लम्बे समय से पढ़ता आ रहा हूँ, सुकून यह है कि वे प्रदूषण की मारी निगोड़ी दिल्ली को छोड़कर नर्मदा तीरे और भेड़ाघाट की संगमरमरी चट्टानों के बीच आशियाना बना रहे है और जल्दी ही शिफ्ट होंगे - यारों के लिए एक अड्डा और बन रहा है
शुभकामनाएँ और खूब स्नेह नरेंद्र भाई को

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कुछ लोगों को जबरन ट्रोल करने की आदत होती है, मेरी वाल पर मै कुछ भी लिखूं या कुछ भी करूँ ये ज्ञानी वहाँ आकर टैग करेंगे और फिर ट्रोल करेंगे , ध्यान रहें मुझे यहाँ किसी से कोई रिश्ता नहीं निभाना है जबरन ट्रोल करना एक प्रकार की मानसिक प्रताड़ना है और अपराध है, मै सीधे ब्लाक कर दूंगा कोई भी हो फिर वो
आपको कहा किसने कि मेरी वाल पर आकर पोस्ट पढ़ें - ना मै आपकी वाल पर आता हूँ ना कमेन्ट करता हूँ - जबरन पंगा नहीं लेने का
यहाँ कोई रिश्ते निभाने नही बैठा हूँ
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