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Bhopal Vishwa Rang, Vikram University and Unwritten Stories, Khari Khari - Posts from 13 to 15 Nov 2022

भोपाल में साहित्य का अन्तरराष्ट्रीय समारोह हो रहा है जिसमे आयोज़क दावा कर रहे है कि 35 देश, 1000 कलाकार, 1 लाख भागीदार, 3 लाख सब्सक्राइबर, 18 मिलियन दर्शक इसमें हिस्सेदारी करेंगे - कमाल का आँकड़ा है पर इसे क्रॉस चेक और वेरिफाई कैसे करेंगे और कौन करेगा प्रामाणिकता इन तथ्यों की, यह दावा है कि यह विश्व का पहला रेकॉर्ड तोड़ कार्यक्रम है - आख़िर अब साहित्य या कबीर के भजनों को रेकॉर्ड बनाने की ज़रूरत क्यों है यह भी मेरा मूल सवाल है
अभी इसका आमंत्रण मिला - जिसमे ढेरों जानकारियां सत्रवार है और नाम पढ़कर आश्चर्य इसलिये हुआ कि कई आलू - बैंगन और बेसन इसमें शामिल है हिंदी के और मजेदार यह कि इसमें 90 % वे शामिल है - जो इस तरह के चमकीले भड़कीले आयोजनों और साहित्य में रुपयों की दखल अंदाज़ी का विरोध करते है, पूंजी का विरोध करते है
तमाम रिटायर्ड लोग, विवि में हिंदी विभागों के मक्कार प्राध्यापकगण, मास्टर और वे सब आलू - बैंगन जिन्हें पूंजीवाद से नफरत ही नही बल्कि उनकी रोजी रोटी चलती है पूंजी को कोसकर और इसके बिना सुबह पेट साफ़ नही होता, पर वे सब इसमें पूरी बेशर्मी से शरीक हो रहें है - कमाल यह नही, कमाल यह है कि ये लोग वामपंथ की रोटी चबाकर कह रहे "बाप बड़ा ना भैया - सबसे बड़ा रुपैया"
कुछ देवास, इंदौर, जबलपुर या भोपाल के स्थाई बन्धुआ नही दिख रहे जो हर आयोजन में मुंह मारने चले जाते है घास चरने - हो सकता है - इनके इष्टों को घास नही डाली, इसलिये ना जा रहें या बुलाया नही पर भोपाल के दो - तीन बापड़े दारू की बोतल लेकर होटलों के कमरे - कमरे तो जाएंगे ही चरण रज लेने और अपना पेट्रोल भी फूकेंगे ही क्योंकि दिल्ली के चुके हुए चौहानों, लौंडे - लपाडों और विवि के प्राध्यापकों के दम से इनके चूल्हे जो जलते है , एक का नाम तो ग्यारंटी से बता सकता हूँ और फोटो भी चैंपेगा देखना क्योंकि "शर्म मगर आती नही"
रुपया हो तो आप साहित्य क्या - विचारधारा को जेब मे रखकर बड़ा "ब्रोथल खोल सकते है और दुनिया की बेहतरीन whores , prostitutes को नचवा सकते है, pimps से दुनिया भरी पड़ी है ", सुबह ही जयपुर के कृष्ण कल्पित जी ने लिखा था कि अधिकांश आधुनिक लिट् फेस्ट वेश्यालय हो गए है
जो दे उसका भला कर प्रभु - तमाम शर्माओं , वर्माओं, शुक्लाओं, तिवारियो, पांडे, दुबे, चौबे, छब्बे, वाजपेईयों, जैनियों, जायसवालों, ओसवालों और लालाओं का भला हो - माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहें और कुबेर की मुस्कान इन पर बारम्बार वारी - वारी होती रहें
मेरा भी बड़ा मन है कि बिल गेट्स या मिरिंडा आंटी या एलन मस्क या अम्बानी, अडाणी मरते समय मेरे नाम पाँच - छह करोड़ छोड़ जाये तो तमाम कामरेड्स को जन्नत की सैर करवाऊँ, डिंडौरी मण्डला या खूँटी के आदिवासी इलाकों में घुमाऊँ और लीला या हयात में माँ सरस्वती के पूजन कर साहित्यिइक सेवा में शेष जीवन बीता दूँ - कोई प्रपंच करो यारों
"पलट देते हैं हम मौजे-हवादिस अपनी जुर्रत से
कि हमने आँधियों में भी चिराग अक्सर जलाये"
[ जिसे सन्दर्भ का ज्ञान और समझ ना हो वे बकवास ना करें ]
***
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन मध्यप्रदेश का सबसे घटिया विश्वविद्यालय है, कबसे लॉ की परीक्षाएँ हो गई है परंतु परिणाम अभी तक घोषित नही किये है
जबलपुर से लाकर एक प्राध्यापक को कुलपति बनाकर बैठा दिया था कि कुछ सुधार होगा पर वो भी यहाँ आकर मालवे के टेपों में टेपा ही साबित हुआ
मक्कारों की फौज भरी पड़ी है - उच्व शिक्षा का जितना कबाड़ा भारत में हुआ है उतना कही नही और फिर कहते है विश्व स्तर पर हम रैंक में कही नही, देश भर के विवि हरामखोरी और नालायकी के अड्डे बन गए है, घटिया राजनीति और कु-व्यवस्था के शिकार बने सफेद हाथी है ये सब, बेहद लापरवाह और विशुध्द मक्कार
इधर मप्र शासन उच्च शिक्षा विभाग ने दो बार प्रवेश की तारीख बढ़ा दी पर विवि के कानों पर जूं नही रेंग रही
बेहद शर्मनाक और हास्यास्पद है और मज़ेदार यह कि कोई जवाब देने वाला जिम्मेदार नही पूरे विवि
क्या डायलॉग था शोले का - "गब्बर ने ...."
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कार्तिक का घटता चाँद जब डेढ़ इंच के आकार तक पहुँचता है तो धरती, आसमान के साथ मन में भी उथल पुथल होने लगती है, एक अधूरी कहानी है - जो अभी तक मुकम्मल होने की बाट जोह रही है
दुआ करें कि वो मक़ाम तक पहुँचे
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डेढ़ इंच का चाँद
असँख्य सुबहों का सूरज
रुपया औरत का दूसरा मर्द
रामनारायण बाजा बजाता
यूँ मरती है मृत्यु
भीड़ में अलग सा पागल
ये कहानियाँ है जो पन्नों में अभी तक आधी अधूरी पड़ी है, इसके अलावा आत्मकथ्य और तीन लम्बी कविताएँ, फिल्मों पर एक क़िताब जिसके काफी आलेख लिखे और छापे जा चुके है यहाँ - वहाँ, मित्र गौरीनाथ को वादा किया था गतवर्ष 30 नवम्बर का, एक साल बीत गया, पर शरीर में थकान है और लिखने में आलस, सोचता हूँ क्या होगा सब पूरा करके भी, बस कहानी लिखने की मशीन बनने से बचना चाहता हूँ, चंद्रकांत देवताले कहते थे - "संदीप, कविता कहानी लिखना मतलब आजकल पापड़ बड़ी उद्योग हो गया है, इससे बचना चाहिये"
आयेंगे अच्छे दिन भी
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