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Showing posts from February, 2022

Pankaj Chaturvedi's Post and My Experience with Nirmal Verma - Post of 22 Feb 2022

दिन बना दिया आपने आलोक धन्वा जी से बात करके पंकज भाई उन दिनों पचमढ़ी में राज्यपाल निवास के पास DIET में एक प्रशिक्षण था शिक्षकों का, मैं भी वही रुका था दस बारह दिन, हम लोग SCERT के लिए प्रदेश के आठवी तक के बच्चों के लिए भाषा गणित और सामाजिक अध्ययन पर किताबें लिख रहे थे सन 1995 -96 का समय होगा एक दिन शाम को घूमने निकले तो देखा कि निर्मल जी पास के किसी मैदान में लेटे है और कोई किताब पढ़ रहे है, मैंने जाकर नमस्ते की और परिचय दिया अपना और उनका हाल पूछा तो कुछ नही बोलें और मुस्कुरा दिए, पश्चिम पर कुछ निबंध लिख रहे थे जिसकी बाद में किताब भी आई थी, और फिर एक दिन मुझे अंतिम अरण्य का लिखा एक चेप्टर सुनाया - जिसमे वह पंक्ति है "वह जब आता है (ज्ञान) तो बहुत देर हो चुकी होती है" रफ ड्राफ्ट था - बहुत मोटे तौर पर इस उपन्यास की शुरुवात सम्भवतः कर दी थी उन्होंने शायद या सिर्फ लिख रहे थे - बाद में इसे एक उपन्यास का स्वरूप दिया रोज दिखते, अकेले चहल कदमी करते हुए, पर ज्यादा बात नही करते थे, मेरे पास हंस या समकालीन जनमत होती थी और वे बस मुस्कुरा देते थे देखकर और उनके पास कोई अँग्रेजी किताब या पत्

गाजर की लाजवाब कांजी Sandip Ki Rasoi, Drisht Kavi - Post of 20 Feb 2022

  3 - 4 बड़े गाजर, एक चुकंदर, सरसो की दाल, काला नमक, सेंधा नमक और दो चार खड़ी लाल मिर्च को एक छोटी सी मटकी में खूब सारा पानी मिलाकर रख दिया धूप में 5 दिन लाजवाब कांजी तैयार है अप्रतिम स्वाद, पाचक और झकास #संदीप_की_रसोई *** "आपकी कविता की घटिया 13 किताबों का आखिर साला कितनी बार लोकार्पण होगा कविराज" - आज पूछ लिया मैंने, सत्रहवीं बार उसने सूचना लगाई थी और टैग किया था टैगड़े ने "जी, जी, जी भाई साहब बो क्या है कि भड़भूँजे की कड़ाही जब तक गर्म रहती है और खुशबू से जैसे ग्राहक खिंचे आते है वह तब तक चने, गेहूँ या परमल, मक्का भुजंता रहता है - वैसे ही कवि का है जब तक सँग्रह की कॉपी प्रकाशक भेजता रहता है, हर शहर में लोकार्पण करते रहो" - बड़ी बेशर्मी से उसने कन्फेस किया उस दिन हैदराबाद में लोकार्पण था जहां कांग्रेस, बसपा, सपा, दलित और सवर्ण के साथ सिख, जैन, तमिल, सिंहली, इनकम टैक्स के चपरासी और विवि के प्राध्यापक भी उपलब्ध थे भाषण पेलने को, सबको कचोरी, कड़क इडली, वड़ा पाव, छोला भटूरा, चिकन के बासी टुकड़े सजे हुए, इमली की चटनी और सड़ा कटा पपीता दिख रहा था कमरे के बाहर - कवि क्या ससुरा आलू

गद्य के गुर - Aamber Pandey

गद्य के गुर - Aamber Pandey गद्य कविता की तरह नहीं लिखा जाता। कवि अक्सर गद्य लिखते समय यह भूल करते है। वे भावोच्छ्वास में गद्य रचना पूरी कर लेना चाहते है। यह सम्भव नहीं होता और कवि कुण्ठित हो जाता है। गद्य में कविता की तरह भाव या विचार की तीव्रता निरंतर नहीं रहती और न ही कविता का रचनात्मक सौंदर्य वहाँ सतत रहता है। गद्य स्थापत्य की तरह होता है जहाँ सौंदर्य के स्थल तो होते है मगर हर जगह सुंदरता ही सुंदरता नहीं होती। लेखक इन स्थलों तक पहुँचने का मार्ग बनाता है और इन सौंदर्य स्थलों का निर्माण करता है। मार्ग जितना निलंकृत और सीधा होता है सौंदर्य के स्थल उतने ही अधिक असाधारण लगते है। इस प्रकार गद्य का मन्दिर बनता है। कविता मूर्तिकला की तरह सौन्दर्य को अपने पूरे कलेवर में धारण कर सकती है। गद्यकार का यदि ऐसा ही आग्रह हो तब गद्य बरॉक बन जाता है। बरॉक मतलब अत्यधिक सजावटी या किसी विशेष इंद्रिय के संवेगों की तरफ़ मुड़ा हुआ। गद्य में इंद्रिय का स्थान पाठक की कल्पना ले लेती है और गद्यकार उसकी तुष्टि के लिए उसे अधिक से अधिक जानकरियाँ देता है, सौंदर्य के स्थलों पर स्वयं अंगुलि रख रखकर उसे बताता है। यह

Sandip Ki Rasoi, Drisht Kavi and Bappiu Lahidi and other Posts 14 to 18 Feb 2022

ताज़े मटर, बटन मशरूम, लहसून, पत्ता गोभी, हरी मिर्च और पास्ता - खूब सारा चीज़, मिंट मियामी सॉस के साथ मतलब बस जन्नत और जीने को क्या चाहिये #संदीप_की_रसोई *** संसार में सुख क्या है बालक ताज़ी स्ट्राबेरी का फ्रेश क्रीम में शेक बगैर शक़्कर मिलाये पीना गर्मी शुरू हो गई है मित्रों #संदीप_की_रसोई *** "आपके पेज का इनवाइट आया अभी" - मैंने फोन पर कहा "जी भेजा है , सभी मित्रों की कविताएँ लगाऊंगा उस पर , कव्हर पेज कैसा लगा आपको" - लाईवा का जवाब था "अबै सुनो, साला फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्वीटर, लिंकड़लन, वाट्सएप ग्रुप से लेकर हर जगह दिन में पच्चीस - पचास कविताएँ पेल देते हो खुद की और दोस्तों की क्या लगाओगे - ख़ाक, अब ये पेज बना लिया साला और....... और पेज के कव्हर पर अपने थोबड़े के बजाय शौचालय का फोटो क्यों नही लगा लेते, सरकार स्वच्छ भारत अभियान का ब्रांड एम्बेसडर बना देगी और कुछ अनुदान भी दे देगी .... ससुर जान खा गए हो हमारी..." मैं भयानक गुस्से में था "जी, आपके पास कोई बढ़िया तस्वीर हो शौचालय की तो भेज दें , आज दो कविताएँ भी इस विषय पर लिखकर पोस्ट करता हूँ, रात को लाईव मे

kuchh Rang Pyar ke , राग इश्क - 1,2 and 3 , Post of 13 Feb 2022

राग इश्क - १ पचमढ़ी में किसी भी जगह पर जाओ - चाहे पानी छूने के लिए बी फॉल में नीचे उतरो, छुपने के लिए पांडव गुफा जाओ, धूपगढ़ के सूर्योदय हो या सूर्यास्त, दर्शन के लिए गुप्त महादेव जाओ या सिर्फ यूं ही यायावरी करते हुए पहाड़ों में घूमते रहो, तो आपको एक न एक उस वीराने में गाने वाला कोई मिल जाएगा - एक बूढ़ी औरत को बहुदा मैंने वहां पर देखा है - जो अकेले में अपनी धुन में गाती रहती है, पता नही कौन मीरा दीवानी है चित्रकूट जाओ तो अनुसूया के मंदिर जाओ या पहाड़ पर किसी मंदिर जाओ, सरयू में पाँव डालकर घण्टों बैठे रहो - एक बंजारा वहां पर गाता रहता है तम्बूरे पर - जिसके पास इतना दर्द है कि उसकी आवाज सुनकर आप पल भर ठहर जाते हैं, समझ नहीं आता यह एकाकी स्वरों में गाने वाले, विरान में भटकने वाले क्यों इतना विराट गाते हैं - इनके पास क्या ऊर्जा और ताकत है जो यह लगातार बरसों से गा रहे हैं ; हो सकता है वे बदल भी जाते हो, परंतु मुझे हर बार वही चेहरा नजर आता है मांडव जाता हूं तो जहाज महल में सुनाई देती है एक उदास दर्द में डूबी आवाज, रानी रूपमती के महल में लगता है - कोई नाद के स्वर बज रहे हो, मंडला में गौंड रा

पहला तुष्टिकरण, दूसरा इस्लामीकरण, तीसरा एडजस्ट - Faiq Ateeq Kidwai's post - 9 Feb 2022

Faiq Ateeq Kidwai शानदार पर दुर्भाग्य यह है कि यह विश्लेषण क्षमता दोनो ओर नही है और ख़ामियाजा बहुत बड़े वर्ग को भुगतना पड़ता है और यह कहानी 2014 से नही बल्कि 1947 से है और हमारे तथाकथित संविधान के जनकों / जनक ने भी ध्यान नही दिया भले ही लाख ओढ़े पढ़े लिखें थे, सरकार की ओर से यहां तक कि हिंदुओं में भी भयानक भेदभाव किया आप दलित वंचित कहकर राष्ट्रपति बन जाये, आप जीवन भर ओबीसी से लेकर तमाम जातिसूचक नामों का इस्तेमाल करते हुए पद प्रतिष्ठा पैसा और प्रमोशन लेते रहें पर यदि कोई सवर्ण अपना नाम बोलें सरनेम बोले तो आपको आपके प्रतिनिधियों को शर्म आती है कोसने लगते है गाली गलौज पर उतर आते है *** तीन शब्द सुनता हूँ पहला तुष्टिकरण, दूसरा इस्लामीकरण, तीसरा एडजस्ट नही करते। प्रधानमंत्री जी हर महीने किसी न किसी मंदिर जाते हैं, और कभी गंगा स्नान कभी पूजा कभी आरती करते हुए फ़ोटो आते रहते हैं। संवैधानिक पद पर बैठकर आप ये सब करते है औऱ इसमें पैसा किसका जाता है?? उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तो कपड़े से लेकर कोई ऐसा धार्मिक कार्य नहीं जो न करते हो।। अब सरकारी स्कूल/सरकारी अस्पताल/सड़क/फ्लाई ओवर वगैरह की नींव पड़ती है

शामे अवध - Post of 11 Feb 2022

शामे अवध दो साल लखनऊ रहा तो गंज में यह मेरी पसंदीदा जगह थी और वही बहुत लोगों से मिलता था, तेलीबाग से गंज या चौक या अमीनाबाद तक आना बहुत लंबा पड़ता था, साधन भी नही था मेरे पास, पर टेम्पू चलते थे जो फौजी केंट से होते हुए आते और जाते थे, आते समय कभी टेम्पू में कोई जवान दिख जाता और उसके पास ओल्ड मोंक रखी होती तो ढाई सौ में फूल खम्बा ले लेता या आरएस या कोई बकार्डी रम या व्हिस्की, या टैंगो जीन और वृंदावन योजना के बड़े से मकान मतलब अपने धाम में आकर तसल्ली से पीता था पीने में साथी मुकेश कभी होते या कभी TISS के पुराने मित्र या कोई development professional या अड़ोसी पड़ोसी डॉक्टर या एक टीआई साहब थे थाने से आते समय बढ़िया कबाब ले आते या घर चिकन बनवा लेते थे या विकास नगर, इंदिरा नगर के सफेदपोश ब्यूरोक्रेट्स होते थे देर रात तक वृंदावन योजना में जब बड़े बड़े नेताओं की कोठियां बन रही थी हम देर रात तक घूमते रहते थे और कभी कभी संजय गांधी पीजीआई तक टहलते रहते थे दूधनाथ जी से एक दो बार मिला, वे किसी कार्यक्रम में ही आये थे और मैं शायद एक स्थानीय किसी पत्रकार के साथ मिलने गया था, सुशीला पूरी भी थी उस दिन शायद व