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Kuchh Rang Pyar ke - राग इश्क - २

  राग इश्क -

पटरियों ने हमेंशा समानांतर रहकर मूक साथ निभाया, पहाड़ों ने धरती और आकाश के बीच रहकर जोड़ने का काम किया, नदियाँ अपने उदगम से निकली तो समुद्र में मिल जाने तक कल - कल करती रही, उसका रोना किसी ने नही देखा, अनथक चलती रही, जोड़ते रही, जो मिला - उसे अपने मे समा लिया और कभी उफ़्फ़ नही किया किसी से
सूरज और चाँद एक दूसरे के पूरक थे - जैसे एक सिक्के के दो पहलू पर कभी मौका नही मिला संग साथ रहने का, एक की उपस्थिति दूसरे का विलोप था, एक उजाला - एक अँधेरा और इस अँधेरे उजाले के खेल में हजारों सितारें डूबते उभरते रहें, पर कुल मिलाकर समझ यही आया कि यही सच है उजास और अँधेरे के बरक्स ही जीवन जीना पड़ता है
जीवन जैसे लम्बी अंधी सुरंग था और इससे गुजरते हुए दूसरी ओर के किनारे पर आलोक होने की आश्वस्ति ही ज़िंदा रखती थी पर एक - एक कदम पर क्षोभ, अवसाद, तनाव और संघर्ष का अपना महत्व भी था, और इनसे पार पाये बिना उस झिलमिलाते प्रकाश पर्व का सुख मिल नही सकता था पर ये भी एक दूजे के सम्पूरक ही थे
जड़े हमेंशा गहन अँधियारे में रहीं, यहाँ - वहाँ से खाद पानी खिंचती रही और सींचती रही उर्ध्व पथ पर बढ़ती डगालों को - ताकि वे कलियों, फूलों को जन्म दे सकें, कि फल आ सकें एक दिन - जिनके बीजों से वंश बेल चलती रहें - सभ्यता जीवित रहें, फलें फुले और पल्लवित होते रहें संसार में - यह अनूठा संयोजन रहा - तभी आज संसार में एक तिहाई पानी के साम्राज्य के बाद हरियाली का राज है इस धरा पर
हम सबके आसपास भी ऐसे कितने ही क्षितिजनुमा आसरे है, बेहद कड़वे सच है पर वे कभी नही कहते कि हम जुड़े है, समझ और समर्पण के बीच सब कुछ समिधा बनाकर जीवन यज्ञ में समाहित कर दिया पर उफ तक नही की किसी ने, दूर से एक साथ होने का भान बना रहता है सबको, कभी किसी ने किसी को प्रस्ताव नही दिया पर जो सृष्टि के आरम्भ से आजतक बहुत कोमल तंतुओं से जुड़े है - उसे कोई ना समझ पाया है, ना तोड़ पाया है और यह समझने और जुड़ने के लिये कभी कोई दिन या तयशुदा वक्त मुकर्रर नही था - पर सब कुछ आज भी एकदम नवीन, नूतन और अनूठा है
शायद मुझे लगता है कि हमें संग - साथ रहने को किसी मौके या क्षण की आवश्यकता नही होती और जब भी यह किसी क्षण किया गया हो वह फिर प्रेम तो नही - बल्कि एक अनुतोष और प्रतिफल भरी संविदा ही होगी और यह भी सच है कि जड़ें कभी उत्तुंग शिखर से, नदियाँ समुद्र से या धरती आकाश से, साँसें आरोह अवरोह से, ब्रह्म नाद किसी राग से, सूरज चाँद से, सुरंगे अंधियारों से और प्रेम किसी से संविदा नही करता
क्योंकि प्रेम जीवन है, जीवन की अपनी गति है और मदमस्त लय है , अपने - आपको एक सुर में गूँथकर प्रेम राग गाते हुए जीवन बीताना है और इसी से सब होगा - क्षितिज भी होंगे, गहनतम अँधियारे, उदगम से चरम का मिलन भी और अनहद नाद भी सदैव बजते रहेंगे और यह ख्याल रहें कि प्रेम में किसी प्रस्ताव और ठहराव की गुँजाइश भी नही होती - वसन्त के बाद पतझड़ और फिर लम्बी वीरानी जरूर आती है जीवन में कि सावन के लिए पर्याप्त अवसर मिल सकें - इसलिए कहता हूँ कि फरवरी इश्क का महीना है और इसे इश्क की तरह ही जियो

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