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Lata Mangeshkar - A Tribute 6 Feb 2022, Amy Naik's Birthday and Kuchh Rang Pyar ke - Posts from 2 to 6 Feb 2022



मौत वही जो दुनिया देखे,

घुट घुट कर युं मरना क्या
आवाज़ की दुनिया ही खत्म हो गई, कभी विश्वास नही होगा किसी को कि हमने लता दीदी को गाते हुए सुना है
आवाज़ की दुनिया में इतनी बड़ी खामोशी और शून्य कभी नही रहेगा , लता दीदी सिर्फ गायिका नही थी वे मनुष्यता के स्तर पर सर्वाधिक लोकप्रिय और पसंदीदा रही , शुरूवाती दौर को छोड़ दें, हर व्यक्ति जो कुछ रचनात्मक और सृजनधर्मी है अपने और दीगर समाज में अपने प्रतिद्वंदियों को पछाड़ने की तमन्ना रखता है और बिरले ही यह काम करके शिखर पर पहुंचते है
नमन और हार्दिक श्रद्धांजलि, स्वनामधन्य पु. ल. देशपांडे की पुस्तक "सरगम का सफ़र" से एक लेख-
लता मंगेशकर के साम्राज्य में कभी सूर्य अस्त नहीं होता
***
फिल्म में गाए गए तीन साढ़े तीन मिनट के गीतों में भी उच्च खयाल गायक की-सी लयकारी का ज्ञान आवश्यक है। लता के स्वर के कायल सभी हैं किन्तु निश्छल मन से जो व्यक्ति का संगीत का स्वाद ग्रहण करते हैं, उन्हें लता के स्वरों में एक जो अतिरिक्त आकर्षण सम्मोहित करता है, वह है उसके शब्दों के उच्चारण के वक्त गीतों में लयकारी का विलक्षण संतुलन और जानकारी जो उसके स्वरों के समान ही सूक्ष्म होती है। भारी-भरकम लयकारी नहीं वरन बिजली-सी एक कण से दूसरे पर चुपके से उड़कर पहुंच जाने वाली। कुमार, बाल गंधर्व और लता को लयसारी के इसी अलौकिक ज्ञान को वरदान मिला हुआ है।
"राज्य सुखी या साधुमुळे - शूरा मी वंदिले गीत में "राज्य या साधुमुळे" के बाद 'शूरा' का दूसरा अक्षर 'रा' पर विद्युत जैसी चलपता के साथ अबोध कंठ से तान थिरक उठी और भवन में बैठे अपार जन-समुदाय को आहत कर गई। क्षण भर को लगा जैसे कोई तीर सनसनाता हुआ हर व्यक्ति को घायल कर गया। सात-आठ वर्ष की उस नन्हीं लड़की को शायद यह अहसास भी न हो पाया होगा कि उसने क्या कर डाला है। सारा सभा भवन अचरज और आह्लाद से हक्का-बक्का था। बाबालाल तबलिए उसके साथ ठेका यों लगा रहे थे मानो किसी उस्ताद का साथ दे रहे हों और वह बच्ची है कि गीत की अस्थाई गाकर पहले सम पर आते ही संपूर्ण सप्तक लाँघकर लय और स्वर का विकट बोझ संभालती हुई सम पर अचूक आ पहुँचती है। कोल्हापुर के जिस पैलेस थिएटर को अनेक दिग्गज संगीतज्ञों ने अपने स्वरों की वर्षा में भिगोया था, उसमें एक छोटी-सी बालिका अपने अनोखे चमत्कार भरे स्वर में सबको रसविभोर कर देती है। पहली सम पड़ते ही सारा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
इस घटना से पूर्व बंबई के जिन्ना हॉल में नौ वर्ष की उम्र में कुमार गंधर्व ने रंगमंच पर अपने अद्भुत स्वर से इसी तरह श्रोताओं को मुग्ध कर लिया था। बाल गंधर्व, कुमार गंधर्व और लता मंगेशकर तीनों ने विपरीत दिशाएँ पकड़ी और अपनी असमानता के कारण अपनी-अपनी दिशाओं में नक्षत्र की तरह जगमगाते रहे। कुछ तो अपने घराने के बड़प्पन पर ही इठलाते रह जाते हैं। मगर स्वर और लय को ही शिव और पार्वती मान कर कला का विस्तार करने वाले कलाकार मैंने बहुत कम देखे हैं।
लता का 'शूरा मी वंदिले' गाए हुए आज कई वर्ष गुजर गए। उस समय तक दीनानाथ द्वारा गाया गया यही गीत लोगों में स्मृति-पटल पर स्पष्ट रूप से मौजूद था। धैर्यधरा की भूमिका में गाए इस गीत की सजीली तान लोगों के कान में बसी हुई थी। इसलिए लता के मुख से 'शूरा मी वंदिले' सुनकर हठात लोगों के मुख से निकल पड़ा 'वाह, हुबहू दीनानाथ!' और उसके बाद उनकी इस दुलारी कन्या ने पिता का ही व्रत आगे बढ़ाने का बीड़ा उठा लिया। मगर इस स्वाभिमानी लड़की ने उनका अनुकरण नहीं किया क्योंकि अनुकरण पिता की प्रवृत्ति भी नहीं थी। पिता ने रंगमंच पर अनूठे ढंग की गायकी प्रस्तुत की थी। दीनानाथराव, दीनानाथराव की तरह ही गाते थे और उनकी तनुजा लता भी बराबर लता की तरह ही गाती रही।
फिल्म में गाए गए तीन साढ़े तीन मिनट के गीतों में भी उच्च खयाल गायक की-सी लयकारी का ज्ञान आवश्यक है। लता के स्वर के कायल सभी हैं किन्तु निश्छल मन से जो व्यक्ति का संगीत का स्वाद ग्रहण करते हैं, उन्हें लता के स्वरों में एक जो अतिरिक्त आकर्षण सम्मोहित करता है, वह है उसके शब्दों के उच्चारण के वक्त गीतों में लयकारी का विलक्षण संतुलन और जानकारी जो उसके स्वरों के समान ही सूक्ष्म होती है। भारी-भरकम लयकारी नहीं वरन बिजली-सी एक कण से दूसरे पर चुपके से उड़कर पहुंच जाने वाली। कुमार गंधर्व, बाल गंधर्व और लता को लयसारी के इसी अलौकिक ज्ञान का वरदान मिला हुआ है।
स्वरों के बर्तुल का मध्य बिन्दु एवं लयकारी में प्रवाहित काल के निमिष निमिषांत का लक्षांश पकड़ लेना लता के कंठ की विशेषता है और यही वजह है कि उसके गीतों में केवल शब्द ही नहीं, व्यंजनयुक्त स्वर भी कितने अधिक अर्थमय लगते हैं। लता का गाया हुआ एक सामान्य-सा लोरी गीत है, 'धीरे से आजा', मगर उसमें भी 'आजा' के बाद जो स्वरों की हल्की-सी फुहार उठती है, वह ऐसे बिन्दु से उठती है कि लगता है कि उसने परातत्व को स्पर्श कर लिया है। ये उठानें बहुत मुश्किल है.
कवि माडगुलकर ने अपनी कविता 'जोगिया' में गायिका के कंठ से स्वरों के निकलने का वर्णन किया है- ''स्वर बेल थरथराई खिल गए फूल होठों पर...'' लता का कोई गीत सुनता हूं तो यह पंक्ति अक्सर स्मरण हो आती है। उसके द्वारा गाए गए हर गीत स्वर-बेल पर खिले हुए फूल ही तो हैं। इस तरह के न जाने कितने फूल विगत वर्षों में खिले हैं और न जाने कितने यों ही अपने आप खिल उठे हैं।
चीनी आक्रमण के समय हिमालय के शिखर पर स्थित एक छावनी में एक छोटे तम्बू में देखा हुआ एक दृश्य। लद्दाख की यात्रा के दौरान हम वहां जा पहुंचे थे। वहां की जानलेवा सर्दी से भी अधिक ठिठुराने वाले वहां के भयानक सन्नाटे उन आठ-दस व्यक्तियों की छोटी टुकड़ी का एकमात्र सहारा लता के गीत थे जो ट्रांजिस्टर में आ रहे थे। 'जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी....' लता के कंठ से निकली यह आर्त पुकार देश के बच्चे-बच्चे की आंख भिगो गई थी मगर देश के उस कोने में लता के स्वर में खोए हुए उन जवानों को देखकर मुझे लगा कि इन जवानों की कुर्बानी जितनी अलौकिक है, उतनी ही अलौकिक है लता की आवाज।
सारे संसार पर इस आवाज के कितने अहसान है। इंडोनेशिया में रहने वाले वे ग्रामवासी या हिमालय पर रहने वाले जवान, सीधे-साधारण श्रोता है। संगीत-शास्त्र के बारे में वह कुछ नहीं जानते, मगर अल्लादिया खाँ साहब के सुपुत्र खाँ साहब भुर्जी खाँ तो संगीत-शास्त्र के महापंडित हैं। उनसे मिलने भी एक बार जब मैं गया था तब वह लता का रिकॉर्ड लगाए हुए विभोर बैठे थे। एक बार ऐसा ही 'आएगा आने वाला' गीत सुनकर कुमार गंधर्व बोले- 'तानपुरे से निकलने वाला गंधार शुरद्ध रूप में सुनना चाहो तो लता का गीत सुनो।' देहाती जन-समुदाय से लेकर मलबार हिल के बंगलों में रहने वाले संपन्न तबके तक, और स्कूल जाने वाले बच्चों से लेकर जर्जर बूढ़ों तक, सबको अपने गीतों के जादू में बांधने वाली लता-लता ही क्यों यह तो फिल्मी संसार को बड़े सौभाग्य से मिली हुई कल्पलता है।
लता ईश्वर-प्रदत्त एक ऐसा अनोखा कम्प्यूटर है जो संगीत के अनेक सवाल सेकंडों में सुलझा लेता है। जिस कण या मुरकी को कंठ से निकालने में अन्य गायक और गायिकाएं आकाश-पाताल एक कर देते हैं उस कण, मुरकी, तान या लयकारी का सूक्ष्म भेद वह सहज ही करके फेंक देती हैं।
संगीत-निर्देशक नया हो या पुराना, लता एक बार माइक्रोफोन के सामने पहुंची कि स्वरों में और गीतों के बोलों में प्राण फूँक देती हैं और उसके बाद ही उस माहौल से कट कर अलग हो जाती हैं। वर्षों से यह लता बस गाए जा रही हैं।
लता के स्वर द्वारा फतह किया गया, संगीत का यह कितना बड़ा साम्राज्य है। इस साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता। सुबह होती है, घर-घर रेडियो और टीवी बज उठते हैं। कहीं न्यूज आती है युद्ध की, तबाही की, राजनीतिक कुंठाओं की, दुर्घटनाओं की और मन को बार-बार क्षुब्ध कर जाती है। लेकिन तभी अंधकार में उजाले की आहट-सी लता की आवाज कहीं से आकर मन के भीत कहीं बहुत गहरे बैठ जाती है और मन का सारा अंधकार हर लेती है। चाहे जो कुछ भी प्रभाव उसका होता हो, कम से कम उस आवाज के लिए ज्यादा दिन जीवित रहने की ललक मन में जरूर उठती है।
***
|| अमेय गणपति का ही नाम है ||

मारे घर के सबसे छोटे हीरो और अब इंजीनियर बन चुके अमेय बाबू उर्फ ओजस उर्फ युवा नेता और इन दिनों सिविल कंस्ट्रक्शन के काम काज में व्यस्त इंजीनियर साहब कल यानी अब से थोड़ी देर में यानी 5 फरवरी को 24 वर्ष के हो जायेंगे - बच्चे कब बड़े हो जाते है और इतने समझदार कि वे हमें ही बताने लगते है कि कहाँ जाना है, कहाँ नही, किससे कितने सम्बन्ध रखने है, सार्वजनिक जीवन में कैसे रहना है तो आश्चर्य भी होता है और अच्छा भी लगता है कि चलो कोई तो है जो लगाम कस रहा है अपने जैसों पर भी
छोटी उम्र से घर की ज़िम्मेदारी सम्हालने वाले, भयानक व्यवहार कुशल, सबके लिए प्रेम, सामाजिक - राजनैतिक शिष्टता निभाना, लोग घर आये और रहें, उनकी आवभगत ठीक से हो और किसी के लिए भी आधी रात को बुलेट उठाकर दौड़ने वाले अमेय बाबू हम सबके लिए संकट मोचन है - घर के बच्चों में सबसे ज़्यादा व्यवहार कुशल और मल्टीटास्किंग वाले दिलेर शेर और हमारे लिए अभी भी कौतुक से भरा प्यारा सा नटखट बच्चा है, बुलेट से लेकर कार चलाने में एक्सपर्ट है और आप समस्या बताओ पलक झपकते ही सब हल हो जाएंगी और आप एकदम बेफिक्र हो सकते है
खूब लम्बी उम्र जियो बेटा, खुश रहो, मस्त रहो और अपनी पसंद की ज़िंदगी जियो, हम सबकी ओर से पूरी छूट जैसे पहले थी वैसी ही रहेगी बस किसी का विश्वास ना टूटें
बहुत स्नेह, दुआएँ और स्वस्तिकामनाएँ सबके लाड़ले दुलारे
💖❤️💖
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|| शिक्षा से घर वापसी ||

जीवन कौशल शिक्षा और भाषा शिक्षण उच्च माध्यमिक स्तर के संदर्भ में [ Life Skill Education & Language Teaching at + 2 Level ] विषय पर आज क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालय, भोपाल [ Regional Instt of Education, Bhopal ] के आयोजन में प्रदेश भर के सौ से अधिक हिंदी के व्याख्याताओं और डाइट्स के प्राध्यापकों के साथ डेढ़ घण्टे का रोचक सत्र लिया और भाषा शिक्षण, किशोरावस्था, और जीवन कौशलों पर बात की
बहुत सालों बाद रीजनल कॉलेज, भोपाल से जुड़ाव फिर हुआ, एक जमाने में यानी 1990 से 1998 तक बहुत सघनता से जुड़ा था - जब राज्य सरकार के लिए हिंदी भाषा का पाठ्यक्रम बना रहे थे, किताबें लिख रहे थे और सतत प्रशिक्षण कर रहें थे, तब अविभाजित मप्र के 45 जिलों में डाइट्स स्थापित हो रहे थे - बड़ी मीठी और सुहानी यादें है, तब का अनुज और लाड़ला अश्विनी यहां आज डाक्टर (प्रोफ़ेसर) अश्विनी गर्ग हो गया है और बड़े जिम्मेदारी वाले पद पर है, छोटा भाई डॉक्टर Arunabh Saurabh भी यहाँ हिंदी का सहायक प्राध्यापक है - जिसकी वजह से आज यह जुड़ाव पुनः बन पाया
और प्रदेश भर के नए पुराने शिक्षक साथियों से जुड़ना और "सीखने- सिखाने" का पुनः श्रीगणेश हुआ
शुक्रिया अरुणाभ और अश्विनी, तुम्हे बहुत मिस किया Anamika Shukla पुरानी टीम की दमदार और होनहार साथिन जिसके बिना कोई प्रशिक्षण नही होता था और किताब का अध्याय नही लिखा जाता था - आँखों के सामने रायसेन से लेकर तत्कालीन मप्र के 45 जिलों के प्रशिक्षणों की फ़िल्म चल रही है मानो और मैं उन स्मृतियों में डूबता जा रहा हूँ
मेरे गाइड स्व बीके पासी जी से लम्बी बहस, डॉक्टर Umesh Vashishtha जी, Dr-Sushil Tyagi जी से शिक्षा के नए आयाम सीखने का सिलसिला, डॉक्टर Chhaya Goel, डॉक्टर Devraj Goel जी तब इंदौर के देवी अहिल्या विवि के शिक्षा विभाग में प्राध्यापक थे और मैं इन सबसे काफी कुछ सीख रहा था Dr-Poonam Tyagi जी, इसी शिक्षा विभाग द्वारा संचालित नवाचारी प्रायोगिक विद्यालय में अध्यापिका थी, डॉक्टर रामनारायण स्याग यानी स्याग भाई के साथ जमीनी स्तर पर सरकारी स्कूल्स में प्रयोग, नवाचार - स्मृतियाँ दंश की तरह चुभती भी है और पुचकारती भी है, जीवन ऊर्जा बढाने में पेट्रोल की तरह है - आज बहुत पुरानी बातें याद आ रही है जबकि लगभग तीन दशक बीत गए है, गंगा में इतना पानी बह गया है, बहरहाल....
वाह क्या दिन था आजीवन याद रखे जाने योग्य
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