बहुत दूर से किसी ने बहुत सुंदर तोहफा भेजा था, कोई उस शहर से यहां आ रहा था तो उसे किसी ने रोककर पूछा था कि "गर वहां जा रहे हो तो यह छोटा सा पैकेट उन्हें दे देना और मै ले आया" मैंने उनके सामने तो नहीं खोला, पर बाद में जब वह कश्मीर के पास अपने घर बांदीपुर लौट गया तो एक दिन दफ़्तर से आने पर हिम्मत करके पैकेट खोला - जब खोलकर देखा तो थोड़े से यानी लगभग दो मुट्ठी चिलगोज़े बहुत नफ़ासत से बांधकर रखे थे और साथ में एक पेपर नेपकिन पर लिखा था - "उस लेखक के लिए जिसने "सतना को भूले नहीं तुम" जैसी अप्रतिम कहानी लिखी है" भीग गया था मैं उस दिन पढ़कर, देर तक बिन्नी को याद करता था, सतना फिर याद आया, आज भी एक दिन ऐसा नहीं जाता कि सतना का पन्नीलाल चौक याद ना आता हो ; बहरहाल, बहुत दिनों तक कुछ नहीं किया, ना चिलगोज़े खाए - ना छुए, किसी स्वर्णाभूषण की तरह से सहेजकर रखे रहा एक अलमारी में, और एक दिन फिर कोई और दोस्त यानी फ्रांस से एक युवा शोधार्थी मेरे पास दो माह के लिए आया था 'फ्रांसुआ जैकार्ते ', तो उसके साथ रेत घाट गया शाम को और फिर वहीं बैठकर देर तक हम दोनों धीरे - धीरे खात...
अधूरे ख्वाबों की गली में डेढ़ इंच का चाँद ____________ लगभग एक माह से रातों का आना खत्म हो गया है जीवन में, लिखना लगभग बन्द और पढ़ना तो शायद अब कभी हो ही ना अब जीवन में - और जीवन, जीवन तो था ही नहीं इतनी लंबी यात्रा के किसी भी हिस्से में, सब व्यर्थ चला गया, जो भी जिसके लिए कभी कुछ किया तो अपयश के सिवा कुछ मिला ही नहीं और यही रीत है, सही तो कहते थे लोग घूमना, कही आना - जाना, मिलना - जुलना और गपियाना भी जानबूझकर बन्द कर दिया है, फोन का उपयोग भी बहुत कम कर दिया है, अति आवश्यक ही हुआ तो उठाता हूँ या किसी को लगाता हूँ, वरना अब कुछ कहने - सुनने लायक बचा नहीं है, शाम को यदि पैर साथ देते है तो दो - तीन किलोमीटर चला जाता हूँ, वरना तो कमरे से बाहर निकलने का मन नहीं करता, अपने हुनर, कौशल और दक्षताओं की जघन्य हत्या कर एक tebula rasa यानी कोरी स्लेट बनने की चेष्टा कर रहा हूँ, मुझे लगता है नया शुरू करने के पहले रिक्त हों जाना चाहिए, उस पार का नहीं पता, ये सब बोझ माथे पर धरकर गया तो सह नहीं पाऊंगा और फिर Unlearn करने का अपना मजा है, अपने तीर कमान से जाते हुए देखना भी एक स्वर्गिक सुख है , हो गया अपना...