Sonali Bose जी ने पूछा था कि कवियों को युवा कब तक कह सकते है एक पोस्ट में अभी मेरा जवाब दिखा कौनसी भाषा है इस पर निर्भर करता है, हिंदी के कवि तो मालवा में रिटायर्ड होने के बाद भी बने रहते है ससुरे 18 के बाद गिनने वाली सुई तोड़ देते है भोपाल का एक चरण रज पीने वाला और चुके हुए कवियों को इष्ट बोलने वाला कवि रिटायर्ड हो गया 3 साल से , 8 - 10 का ससुर और समधी होगा, दो दर्जन बच्चों का दादा - नाना पर अभी भी युवा नही लिखो तो गुस्सा जाता है अपने इंदौर में भी युवा कम है क्या, पेंशन पाकर, 97 - 98 की उम्र में सुबू शाम इन्सुलिन लेने वाले सब युवा है, तीन चार ब्याह कर लेने वाला भी और बाबुओं के आगे पीपीओ के लिए गिड़गिड़ाने वाला भी, दो नाती अमेरिका और पांच पोते डकाच्या में घासलेटी काम कर रहे फिर भी युवा सम्राट, एक 65 के करीब प्राध्यापक और इंचार्ज प्राचार्य फिर भी जुवा दिलों की धड़कन है जमाने भर के धत करम करके, घाट घाट का पानी पीने वाली, अपना घर तहस नहस कर, नौकरी का सारा रुपया हड़फकर दस मर्दों के संग बुढापा जीने वाली कवयित्री भी युवा है - भले सर पर काली विग लगी हो दर्जनों ब्यूरोक्रेट भोपाल के एकांत पार्क म
अभी Mahesh Kumar ने एक पोस्ट में दलित पितृसत्ता का इस्तेमाल किया जब पूछा कि ये क्या है तो जवाब दिया कि "जैसे ब्राह्मण पितृसत्ता होती है वैसे ही दलित पितृसत्ता होती है" हिंदी के युवा तुर्क जो ना करें कम है, मतलब कुछ भी, मैं बच्चा नही कि समझ ना सकूँ, इसका शाब्दिक अर्थ तो समझ गया पर इसके दीगर मायने, ख़ैर, हिंदी वाले इतना शब्दों का अर्थ और खिलवाड़ करते है कि सब गुड़ गोबर हो जाता है, यह जातिवादी लड़ाई को आगे बढाने का एक और बकवास मुद्दा है आजकल यह सब रिवायत हो गया है और जल्दी हासिल करने के लिये कुछ भी करना फैशन और हिंदी के शोधार्थी इसमें माहिर है किसी और सन्दर्भ में फर्जी कवियों और तथाकथित लेखकों की ओर इशारा है मेरा, साथ ही बेरोजगार शोधार्थियों की ओर भी जो अपनी अयोग्यता को साहित्यिक मजमे से ढाँकने की कोशिश कर रहे है, और सवर्णों को गाली देकर नौकरी पाने का उजबक तरीके खोज रहे है, देश के श्रेष्ठ विवि में सरकारी रुपयों से पढ़कर और तमाम तरह की सुविधाएँ लेकर जब नौकरी के जंगे मैदान में उतरे तो समझ आया कि अब कार्ड नही चलेगा तो लगे पत्ते फेंटने काश कि कमला भसीन होती तो वो बताती इन्हें कि पितृसत