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Showing posts from June, 2023

Drisht Kavi and other Posts of 26 and 27 June 2023

"आपका कोई टिकिट करवाने वाला दलाल पहचान का है क्या" - उसका फोन आया, मतलब अपने लाईवा का "अबै उसे एजेंट कहते है, कहाँ जाना है"- मैंने पूछा "जी , अबकी बार कोच्चि , बड़ी काव्य गोष्ठी है" - वो बोला "अरे ये वही दल्ला है क्या - जिसने पिछली बार इम्फाल में गोष्ठी करवाई थी" - मैंने पूछा "अरे वो आयोजक है, खनिज और खनन विभाग का बड़ा बाबू है, अब दो साल बाद ट्रांसफर हो गया तो नई जगह धौंस जमाने को बड़े - बुड्ढों को इकठ्ठा कर कवि गोष्ठी करता है, कवि भले घटिया हो पर आदमी बढ़िया है, हाँ वो दलाल का नम्बर दो ना यार, रुको घर ही आता हूँ" - फोन रख दिया था उसने #दृष्ट_कवि *** "मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए..." सिर्फ़ गीत या कोई घटिया गाना नही था, कड़वी हकीकत भी है और इसके पश्चात के गिल्ट्स, एकालाप और शाब्दिक अवसाद तो देखिये मुन्नी के मुन्ना ऑटोवाले के शब्द याद आते है जो उसने हैदराबाद एयरपोर्ट पर उस शाम मुझे छोड़ते हुए कहें थे बेगमपेठ पर - "जो मेरे काम का नई, वो किसी काम का नई" ____ जा रे, ज़माना विवादों का इंतज़ार है [ शुभकामनाओं के पीछे का सत्य

Kuchh Rang Pyar ke - Posts from 22 to 26 June 23

  बहुत आरज़ू थी गली की तेरी सो यास-ए-लहू में नहाकर चले.. ◆ मीर *** "जीवन जैसे फ्रेम - दर - फ्रेम उभर रहा और समय के संग साथ सब गुत्थम गुत्था हो रहा हो जैसे, रंगों की अपनी सीमाएं भी कभी - कभी सब कुछ मिक्स कर देती है, एक कोलाज़ बन जाता है जीवन फ्रेम्स का और फ्रेम्स के पीछे के दर्द, आँसू कभी सामने नही आ पाते" Rafique Shah के चित्र देखकर मेरी छोटी सी टिप्पणी ------- नीमराना, राजस्थान में सभी बड़े कलाकारों के नाम से महल यानि कक्ष बने है - जैसे हुसैन और अन्य बड़े कलाकार, हमारे रफ़ीक़ मियाँ का भी रफ़ीक़ महल बना है रफ़ीक़ देवास के सतवास कस्बे से है, बहुत छुटपन में हम लोग ग्रामीण इलाकों में बच्चों में पढ़ने की रुचि जगाने के लिए चकमक क्लब चलाते थे, वहां पर बच्चों के साथ बहुत सारी गतिविधियां करते थे - जैसे चित्रकला, विज्ञान प्रयोग, ओरिगामी, मिट्टी के खिलौने, नाटक, गीत - संगीत, सैकड़ो पढ़ने की क़िताबें एवं तमाम तरह की चीजें उनके साथ होती थी, बच्चे बालमेले करते थे स्कूलों में और ड्राप आउट बच्चे सीखकर स्कूल में लौट आते थे - यह बात होगी 1994 - 98 की और तब रफ़ीक़ बमुश्किल दस - बारह साल के होंगे यह चकमक क

Drisht Kavi and other Posts from 13 to 21 June 2023

धन्ना सेठों, ब्यूरोक्रेट्स, इनकम टैक्स के बाबुओं, रोटरी और जायन्ट्स क्लब के चंदे, अश्लीलता की हद तक बिके हुए मीडिया या मरे खपे समाजवादी साहित्यकारों की पूंजी और ब्याज से चलने वाले हिंदी साहित्य के आयोजन आपको लगता है समाज का भला करेंगे या दलित वंचितों की बात करेंगे यदि आपका यह मानना है कि बैंक से, विवि से, रेवेन्यू से, ब्यूरोक्रेसी या किसी पीयूसी से रिटायर्ड आदमी जिसे सत्तर अस्सी लाख न्यूनतम मिला हो एकमुश्त, जो बंगले, उद्योग, होटलों का मालिक है, ब्याज और पेंशन मिलाकर डेढ़ - दो लाख का बोनस हर माह मुफ्त का मिलता हो जिसे और जिसके बच्चे विदेश या महानगरों में सेटल्ड है - वो समाज की बात करेगा - हैंगओवर में वह दलित - वंचित के लिये लिखेगा या अल्पसंख्यको से प्यार जतलायेगा, पर उसका ना अधिकारी मरा है अंदर का - ना सवर्ण - ऐसा सोचने वाले सब क्यूट है बहुत "एंड आय लभ डेम, सॉरी, देम आल " "तू मेरी सुन और मैं तेरी" - की तर्ज पर चुके हुए औघड़ और बदमिज़ाज़ बूढों को बुलाकर, चार - पाँच निठल्ले प्राध्यापकों से अपना राजघाट सजाकर दस बारह निहायत मासूम और गाइड्स की तानाशाही से दबे क्षुब्ध शोधार्थि

Khari Khari and Sad Demise of Sandeep - Posts of 10 and 11 June 2023

मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार ने चुनाव और वोट की खातिर लाड़ली बहनाओ के खाते में 1000 रु बिना मेहनत के ही डाल दिए लेकिन जिन अतिथि शिक्षको ने मेहनत से बच्चो का भविष्य बनाया उनको 6 माह से वेतन नहीं दिया ये कहाँ का न्याय है , प्रदेश के मुखिया ने कल कहा कि वे इस राशि को धीरे-धीरे बढ़ाकर 3000 ₹ तक ले जाएंगे और यह सब हम जैसे टैक्स पेयर्स का रुपया है - जिनके लिए ना सड़क है, ना बिजली, ना पानी और सिस्टम के नाम पर एक पूरा भ्रष्ट तंत्र खड़ा है देवास जिले में पंचायत सचिवों को पिछले 9 महीने से तनख्वाह नहीं मिली है, अनुकंपा नियुक्ति में लगे हजारों कर्मचारियों को वर्षों से इंक्रीमेंट नहीं मिला है और वह सिर्फ ₹18000 महीने पर नौकरी कर रहे हैं, एक परीक्षा CPCT के नाम पर हजारों कर्मचारियों को यह सरकार विशुद्ध बेवकूफ बना रही है - इसका क्या करें, प्रदेश के सामान्य प्रशासन विभाग में 2 वरिष्ठ अधिकारी मित्र हैं, जब उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि हम कुछ नहीं कर सकते यह निर्णय कैबिनेट का है RTE के अंतर्गत निजी स्कूल जिन गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं और 25% छात्रों को प्रवेश देते हैं उनकी फीस तक इस सरकार ने पिछले 4 सालों

Drisht Kavi - Post of 8 June 2023

एक था अपने लेखों, ब्लॉग और पत्रिकाओं में छपे को परोसने का उपक्रम - मैं भी शामिल हूँ इसमें फिर आया अपनी किताब का आत्म मुग्ध होकर खुद का प्रचार करना और जुगाड़ और सेटिंग से बटोरे गए पुरस्कारों के साथ बरसों तक भूखे भेड़िए की नीचता के समान हद तक प्रचार करना  कोविड लाया बेशर्मी का लाइव जिसमें लेखक, कवि, हरामखोर मुफ़्त की तनख्वाह लेने वाले माड़साब लोग्स का 24×7 लाइव, सेमिनार और विवि अनुदान आयोग के रुपये पर लूंगी छाप वर्कशॉप का मौसम - खूब पेला अपने आपको बगैर दर्शकों के भी इन ससुरों ने और घर बैठ तनख्वाह उड़ाई  फिर यूट्यूब पर अपनी लिंक शेयर करके मैसेज बॉक्स में घुसकर सब्सक्राइब की मनुहार का मौसम ----- और अब इन सबकी भारी विफलता के बाद पेश है -  "संगत" - यानी हिंदवी पर खुद ही या युवा उदघोषक से अपना चरित्र चित्रण की जबरन  घुट्टी पिलवाकर और निम्न दर्जे का स्कैंडल मरे खपे लेखकों के नाम घुसेड़कर और खुद को महान बनाकर उजबक शीर्षक यानी Eye Catching देकर भोली जनता को जबरन दिखवाने का कुत्सित सुसंगठित प्रयास और तो और अपने कोटेशन "योर कोट" जैसे एप में डालकर खुद ही चैंपने का अति आत्म विश्वास - उ

Khari Khari and other Posts from 2 to 8 June 2023

शर्म मगर आती नही ••••• कम से कम 300 लोग मारे गए है ओडिशा में कल रात 2014 के बाद रेलवे ने सिर्फ फायदा कमाया है और सुरक्षा के नाम पर कुछ नही किया विश्व नेता को हर वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाने जाना है पर यात्रियों के लिये कुछ नही करना है, अभी तक गया नही और ट्वीट कर दिया, शुक्र है कि एक और उदघाटन टाल दिया नही तो पहुँच जाता बेशर्म रेलवे के जितने भी लोग है - अधिकारी हो या हम्माल - सब आत्म मुग्ध है और अपनी प्रशंसा करके अघा नही रहें पर इन्हें 300 लोगों की मौत पर ना शर्म आएगी ना अपराध बोध होगा, बस 24×7 हीहीही करते रहेंगे और आत्म मुग्धता की चाशनी में डूबकर मरेंगे इतना बड़ा स्टॉफ और इतना बड़ा तंत्र, अरबों रुपयों की इनकम, लाभ, सबसे ज़्यादा तकनीकी लोग, दक्ष और कौशलों से परिपूर्ण और देश पर पकड़, फिर भी कोई जवाबदेही नही, कोई शर्म लाज नही 12 लाख मैं देने को तैयार हूँ यदि कोई महामना या बड़ा आदमी देवलोक गमन को तैयार हो तो - मृत्यु की कीमत लगाने में माहिर और इस पर भी यश लूटने की मासूम अदा - हाय मैं मर जावां और इस्तीफ़ा देने की संस्कृति तो इन सभ्य कूलीन लोगों में है ही नही तो क्या उम्मीद करें नैतिकता के प

क्या तुम्हारा ख़ुदा है हमारा नहीं - क़मर जलालवी Post of 1 June 23

  "ज़ालिमो अपनी क़िस्मत पे नाज़ाँ न हो, दौर बदलेगा ये वक़्त की बात है वो यक़ीनन सुनेगा सदाएँ मिरी, क्या तुम्हारा ख़ुदा है हमारा नहीं" ◆ क़मर जलालवी _______ पूरी ग़ज़ल यूँ है "ऐ मिरे हम-नशीं चल कहीं और चल, इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं, बात होती गुलों तक तो सह लेते हम, अब तो काँटों पे भी हक़ हमारा नहीं आज आए हो तुम कल चले जाओगे, ये मोहब्बत को अपनी गवारा नहीं, उम्र भर का सहारा बनो तो बनो, दो घड़ी का सहारा सहारा नहीं दी सदा दार पर और कभी तूर पर, किस जगह मैं ने तुम को पुकारा नहीं, ठोकरें यूँ खिलाने से क्या फ़ाएदा, साफ़ कह दो कि मिलना गवारा नहीं गुल्सिताँ को लहू की ज़रूरत पड़ी, सब से पहले ही गर्दन हमारी कटी, फिर भी कहते हैं मुझ से ये अहल-ए-चमन, ये चमन है हमारा तुम्हारा नहीं ज़ालिमो अपनी क़िस्मत पे नाज़ाँ न हो, दौर बदलेगा ये वक़्त की बात है, वो यक़ीनन सुनेगा सदाएँ मिरी, क्या तुम्हारा ख़ुदा है हमारा नहीं अपनी ज़ुल्फ़ों को रुख़ से हटा लीजिए, मेरा ज़ौक़-ए-नज़र आज़मा लीजिए, आज घर से चला हूँ यही सोच कर, या तो नज़रें नहीं या नज़ारा नहीं जाने किस की लगन किस के धुन में मगन, हम को जाते