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Showing posts from April, 2020

Posts of 28 and 29 April 2020 - मप्र में नरक यात्रा

मप्र में नरक यात्रा फर्क नही नरक और अस्पताल में - क्योंकि एमपी अजब है सबसे गजब है 15 वर्षों तक एक ही व्यक्ति एक ही पार्टी सरकार रही प्रदेश में आज जो शिक्षा स्वास्थ्य की हालत है वह कितनी शोचनीय है यह बताना मुश्किल है राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में गत 15 वर्षों में जो अरबो रुपया आया - प्रशिक्षण, उपकरण और सेवाओं के नाम पर और बावजूद इसके जिला अस्पताल खुद आईसीयू में है बाकी पीएचसी और उपस्वास्थ्य केंद्र तो छोड़ ही दीजिये और सामुदायिक केंद्र तो भ्रष्टाचार और लापरवाही के संगठित अड्डे है ही डॉक्टरों की कमी का रोना भारत सरकार रोती है तो मप्र की बात ही मत कीजिये सिर्फ आशा के भरोसे चल रहे इस पूरे तंत्र को समझने की कोशिश करें जो ब्यूरोक्रेट्स द्वारा नियंत्रित है और डॉक्टर्स सिर्फ घरों में लैब्स, नर्सिंग होम और दवाई की दुकानें खोलकर बैठे है कल इंदौर के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी से बात हुई जिन्होंने कहा कि " डॉक्टर्स इस समय मे भाग गए और यह कोरोना की लड़ाई का सबसे बड़ा दुखद पहलू है " मप्र में यूनिसेफ से लेकर तमाम संस्थाओं के कंसल्टेंट झोला उठाकर आंकड़ेबाजी में व्यस्त र

IIMC Products and Media Posts of 26/27 April 2020

एक पत्रकार महोदय से कल बहस हुई जो कम उम्र में भयंकर लिखकर छा जाना चाहते है हिंदी, अंग्रेजी अखबारों से लेकर मलयालम मनोरमा के सम्पादक बनने का इरादा रखते है अपनी 30 की उम्र पूरा होने से पहले कहने लगे " मेरी लेखनी रिसर्च आधारित है" जब रिसर्च का मतलब पूछा तो बोले - " वायर, प्रिंट, कारवाँ, हिन्दू, न्यूयार्क टाईम्स, डेक्कन हेराल्ड, अल जज़ीरा, सीएनएन, बीबीसी, और देश की गाय पट्टी के तेजी से बढ़ते घटते अख़बार को पढ़ - लिखकर समझकर और विश्लेषण कर लिखना ही रिसर्च है " " और जो विज्ञान कह रहा है, बड़े डॉक्टर्स इन दिनों जो लिख रहे है वो क्या है - उसका सन्दर्भ कही नही आता, क्या आपके लेख में उसकी जरूरत नही वैज्ञानिक तथ्यों की प्रामाणिकता जांचने के लिए, भारत सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय, एम्स आदि का क्या " मेरा सवाल "अरे ये सब लोग बेवकूफ है, और इस रिसर्च से मेरे लेख की पठनीयता घटेगी और फिर शेयर्स, लाईक और कमेंट तो आएंगे नही और फिर मीडिया डॉन बनने का स्वप्न धूल धूसरित नही होगा - समय नही है, पत्रकारिता के संस्थान से निकला हूँ तो वहाँ के मास्टरों को भी बताना है कि

बूमरेंग , Palghar, Mumbai 20 April 2020

बूमरेंग ◆◆◆ और हमें लग रहा था कि हम सिर्फ मुस्लिम को मारेंगे 47 के विभाजन में, भिवंडी में, मुज्जफरपुर में, गोधरा में, बाबरी मस्जिद ढहाने के बाद, और तमाम तरह के लिंचिंग करके , हम सिर्फ सिखों को मारेंगे 1984 मे 1947 के पहले से जो जहर हमने बोया था , जो जाति सम्प्रदाय के इंजेक्शन खून में लगा दिए थे आखिर उनका रंग रुप तो एक सीन सामने आना ही था - बहुसंख्यक भीड़ आवारा होती है जो ना साधु देखती है ना पहरेदार सुबोध सिंह - उसे अपनी खून की प्यास और वर्चस्व की भूख मिटाने को टारगेट चाहिये और हमने यह अच्छे से सीख लिया है कि कैसे संगठित होकर जन भावनाएं भड़काकर हत्याएं की जायें पैटर्न देखिये और समझने की कोशिश करिये - कही भी कहा नही जाता कि जुलूस निकालो पर निकलते है, कोई नही कहता कि जय सियाराम के नारे लगाओ पर विक्षप्तों की तरह से अंधेरे में लोग चिल्लाते है, कोई नही कहता कि घर की अराजकों की तरह निकल पडों पर लोग चल देते है हमने 73 सालों में सीखें अनुशासन, पक्का इरादा, दृढ़ संकल्प, गरिमा, दृष्टि सब खो दिया है, हमारा कोई चरित्र नही, हम सब दृष्ट दुराचारी, व्याभिचारी, निरंकुश और अराजक है - और इसके

कितनी पुरानी बात 24 April 2020

कितनी पुरानी बात ◆◆◆ यह तस्वीर है 1989 की - जब एक निजी विद्यालय में शिक्षक बना था, 22 साल उम्र थी - बीएससी किया था 1987 में - नौकरी कर ली क्योंकि विज्ञान एवं अंग्रेजी पढ़ाने का चस्का लग गया था और लगा था कि आत्मनिर्भर भी होना चाहिये, तीन साल भरपूर दिल लगाकर पढ़ाया 1987 से 1989 तक और इसके साथ अंग्रेजी साहित्य में एमए भी कर लिया था, बाद में बहुत स्कूल - कॉलेज में पढ़ाया,दो तीन जगह प्राचार्य भी रहा, पर ये तीन साल अनिल कपूर की अमर फ़िल्म " वो सात दिन " जैसे थे आजीवन ऊर्जा और ताजगी द ेने वाले उसके बाद फिर असली सफर शुरू हुआ था जीवन का - परिवर्तन, एक्टिविज़्म और बदलाव लाने का - 2019 तक खूब दौड़ता रहा इतना कि थक गया, कि साँसे भर आती है अब करीब 30 - 40 हजार छात्रों से जीवंत सम्पर्क, समाज मे कार्य करने से बनें समुदायों में असंख्य मित्र, मीडिया में रुचि और लिखने पढ़ने से बने मित्र और अपनी पढ़ाई के दौरान कक्षा पहली से आज तक यानि 54 की उम्र में लॉ की कक्षा में साथ पढ़ रहे युवा मित्र और ढ़ेरों शासन प्रशासन से जुड़े मित्र और साहित्य का वृहद दायरा - कुल मिलाकर एक बहुत बड़ा फ़ैला हुआ दायरा है

Shyam Meera Singh 's on SC role and Arnab 25 April 2020

मप्र में कोरोना की भयावहता और सरकार की लापरवाही को देखते हुए गांधीवादी विचारक और वरिष्ठ पत्रकार चिन्मय मिश्र ने 17 अप्रैल को एक जनहित याचिका दायर की आज तक तारीख नही मिली है इतने महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई के लिए जबकि रोज मप्र में हालात बिगड़ते जा रहें है मैंने कल भी लिखा था कि सुप्रीम कोर्ट तक अब किसके लिए काम करता है - देश के बच्चे - बच्चे को मालूम है न्यायपालिका में जो गिरावट है वह भयानक है और लोवर ज्यूडिशियरी की हालत तो और भी गम्भीर है जो किसी पंचायत या तहसीलदार या सरकार छोटे से दफ्तर से ज़्यादा बदबू मारती है - हर स्तर और पैमानों पर जस्टिस वी वहाय चंद्रचूड़ और पीएन भगवती ने जो न्यायालयों में पोस्टकार्ड के जरिये आम आदमी को इस आयरन कर्टन में प्रवेश दिया था - जनहित याचिकाओं के जरिये, वो पिछले 7 - 8 वर्षों में पतन की चरम अवस्था में पहुंच गया है जस्टिस दीपक मिश्रा और उनके बाद आये सभी सीजेआई ने सुप्रीम कोर्ट को राजनैतिक अखाड़ा बनाकर और भी गड़बड़ की है हमारे हुक्मरान भी कम नही है , राफेल जो अब दफन हो गया है, के समय रात 12 बजे सीजेआई का चेम्बर खोलकर जाने की क्या जरूरत थी - यह देश क

Corona Posts from 8 to 19 April 2020 including Drisht kavi

समझने वाले समझ गए है ◆◆◆ ● थोड़ी ईमानदारी रख लो मित्रों - आप सबकी सेवा भावना, समर्पण और त्याग को प्रणिपात प्रणाम - ● कुछ लोग सच में घर से मदद कर रहें है प्रभावितों को ● कुछ लोग पूरे परिवार के परिवार लगें है खाना बनाने, पेकिंग और बांटने में निस्वार्थ भाव से ● कुछ मित्रों को मित्रगण सपोर्ट कर रहें है ● कुछ मित्र यहाँ वहाँ अपने सम्पर्कों का इस्तेमाल करके मदद कर रहें है ● कुछ लोग सफर में भटके और कोरोना में " छुपे और फंसे " दोनों तरह के लोगों को मदद कर रहें है ● कुछ लोग क्राउड फंडिंग से इकट्ठे हुए रूपये से मदद कर रहें है ● कुछ लोग चैनल्स की मदद से लोगों को राशन भोजन दे पा रहें है ● और कुछ लोग विशुद्ध रूप से देशी - विदेशी फंडिंग एजेंसी से आये अनुदान से मदद कर रहें है पर नाम अपना चमका रहें है मानो अपने "मकान - दुकान - खेत" बेच दिए हो इस हेतु अंत मे सबसे महत्वपूर्ण बात यह देखी कि कही कही इस दौरान बड़े विचित्र अनुभव आ रहें है - मदद लेने वाले भी हद कर रहें है - बटोर बटोरकर अति कर दी है - ईश्वर अल्लाह सबको सद्बुद्धि दें आप सबका नाम इतिहास के सुनहर

Corona 2/3 April 2020

जब नाश मनुज पे छाता है तो विवेक सबसे पहले मर जाता है सम्बोधन ना हुआ मजाक हो गया ◆◆◆ इससे क्या होगा ? क्या मजाक बना रखा है इस देश के पढ़े लिखें लोगों का - जिस देश के सबसे ज्यादा डॉक्टर्स, सॉफ्ट वेयर इंजीनियर, कुशल लोग दुनिया भर में काम करते है, जिस देश में IIT, IIM,BARC, CAT, IIE, Atomic research centers, Medical Colleges से लेकर चोटी के शिक्षा संस्थान है वहाँ घोर अवैज्ञानिक माहौल - घण्टा बजाओ, दिया जलाओ, मोमबत्ती जलाओ - क्या हो गया है आखिर हम सबकी सामूहिक चेतना को - हम सब विक्षप्त हो गए लगता है 5/4/20 - 9 बजे - 9 मिनिट .... कोई वैज्ञानिक बताएं - उस समय कोई बड़ा संकट होने वाला है क्या ? और अब फिर उस दिन 9 मिनिट के बाद हुड़दंग तो नही होगा ? कुछ पल्ले नही पड़ रहा - विरोध नही समर्थन है पूरा पर क्या निहितार्थ है इसके, कुछ विज्ञान की बात करो भिया , इमोशनल अत्याचार मत करो - अंधकार करके दिया और मोमबत्ती जलाना अंधेरा क्यो ? अब मतलब प्रशासन उपरोक्त समय पर बत्ती गुल कर ही देगा अर्थात, दया कुछ तो गड़बड़ है - इतना छोटा सन्देश और सारगर्भित भी !!! स्थिति