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Corona Posts from 8 to 19 April 2020 including Drisht kavi

समझने वाले समझ गए है
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● थोड़ी ईमानदारी रख लो मित्रों - आप सबकी सेवा भावना, समर्पण और त्याग को प्रणिपात प्रणाम -
● कुछ लोग सच में घर से मदद कर रहें है प्रभावितों को
● कुछ लोग पूरे परिवार के परिवार लगें है खाना बनाने, पेकिंग और बांटने में निस्वार्थ भाव से
● कुछ मित्रों को मित्रगण सपोर्ट कर रहें है
● कुछ मित्र यहाँ वहाँ अपने सम्पर्कों का इस्तेमाल करके मदद कर रहें है
● कुछ लोग सफर में भटके और कोरोना में " छुपे और फंसे " दोनों तरह के लोगों को मदद कर रहें है
● कुछ लोग क्राउड फंडिंग से इकट्ठे हुए रूपये से मदद कर रहें है
● कुछ लोग चैनल्स की मदद से लोगों को राशन भोजन दे पा रहें है
● और कुछ लोग विशुद्ध रूप से देशी - विदेशी फंडिंग एजेंसी से आये अनुदान से मदद कर रहें है पर नाम अपना चमका रहें है मानो अपने "मकान - दुकान - खेत" बेच दिए हो इस हेतु
अंत मे सबसे महत्वपूर्ण बात यह देखी कि कही कही इस दौरान बड़े विचित्र अनुभव आ रहें है - मदद लेने वाले भी हद कर रहें है - बटोर बटोरकर अति कर दी है - ईश्वर अल्लाह सबको सद्बुद्धि दें
आप सबका नाम इतिहास के सुनहरे हर्फ़ों में लिखा जाएगा इस योगदान के लिए
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बाबा भारती ने " खड़कसिंह " से कहा था कि आगे से ऐसा मत करना वरना गरीबो [ और मदद करने वालों ] पर कोई विश्वास नही करेगा

#खरी_खरी - लिखने का मन तो नही था पर 26 दिन का तमाशा देखकर लिखने से बच भी नही रहा
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कुछ सवाल है मेरे और मित्रों के -
● कोरोना पॉजिटिव को कितने दिन अस्पताल में रखा जाता है
● अस्पताल में क्या दवाई , कैसे और कितनी बार दी जाती हैं
● इलाज का प्रोटोकाल क्या है
● मरीज को भोजन कब क्या कैसे दिया जाता है
● छुट्टी किस आधार पर दी जाती है और डिस्चार्ज पेपर्स पर क्या दवाएँ लेने की सलाह दी जाती है
● यदि मरीज क्रोनिक बीमारियों का शिकार है तो क्या समानांतर इलाज चलता है मसलन DM, HT, Thyroid, CRF, Cardiac Angina, Asthama, RTI, STI, AIDS, Leukaemia etc etc
● प्रतिदिन मरीज की प्रोग्रेस / खराबी कैसे आंकी जाती है
● यदि मरीज निगेटिव है तो सर्दी खांसी बुखार के लिए कोई दवा लेनी है या नही
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सवाल इसलिए कि अभी कोई निर्धारित वैक्सीन है नही, दवा नही है और प्रोटोकाल सुनिश्चित नही तो फिर पॉजिटिव मरीजों के साथ हो क्या रहा है, अस्पताल में पोजिटिव्हस मर क्यों रहें हैं निदान होने के बाद भी , कल मात्र 41 वर्ष के एक पुलिस अधिकारी की मृत्यु हुई है - इम्युनिटी तो ठीक लग रही थी, अस्पताल भी अच्छा था, बल्कि सभी अच्छे है फिर क्या कारण है कि डाक्टर भी मर रहें है
नोट - सिर्फ पेशेवर चिकित्सक सलाह दें, फेसबुकिया डाक्टर और ज्ञानी नही और वाट्सएप विवि के गधे यहाँ चरने ना आएं, सवाल को समझे बिना ज्ञान ना दें भले ही आप होंगे तुर्रे खान
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आप विरोध में कविताएँ लिखकर प्रदर्शन में भी आये है - आखिर आपको इस मुद्दे पर क्या कहना है
कविराज बोले - असल में हमारे व्हाट्सअप ग्रुप की सुश्री " क " ने आव्हान किया था कि इसका विरोध होना चईये, बस हमने भी शुरू कर दिया - मुद्दे का क्या है जी - आते जाते रहते है - बो हाथ से निकल गई तो फिर जीवन में क्या बचेगा
यह कहकर कविराज फिर नारे लगाने लगें
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पाखंड, ढोंग और हल्ले- गुल्ले के विपरीत सीधी बात
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ज्यादा संतुलित और बेहतर बोला राहुल ने आज, बगैर शोमैन बनें और वृहत्तर जनसमुदाय और देश के लिए सरोकार स्पष्ट थे - थाली पीटने, मोमबत्ती लगाने और दीया जलाने की अवैज्ञानिक और मूर्खतापूर्ण बात नही की कम से कम
एक विजन, एक वैकल्पिक प्लान, विकेंद्रीकरण, प्रधान का इस समय मे क्या रोल हो, राज्यों की संविधानिक भूमिका क्या हो, वित्तीय प्रबंधन और पोस्ट लॉक डाउन पर एक समग्र दृष्टि के साथ बात की
बाकी बेरोजगारी पर इस सरकार से कोई उम्मीद की ही नही जा सकती , जो रुपया देश का विधायक खरीदने में बर्बाद कर दें, सरकार खरीदने के वास्ते पूरे देश को कोरोना के जोखिम पर लाकर खड़ा कर दें और मुसीबत के समय घण्टा बजाने को कहें उनसे क्या उम्मीद
यह समय दृष्टि रखने वाले और काम करने वालों का है नाकि सम्प्रदाय और समुदायों को भिड़ाने वाले टुच्ची मानसिकता के घटिया लोगों को महत्व देने का है और इन कमज़र्फ षड्यंत्रकारियों की हरकत देखिये कि मुंबई की अपनी कारस्तानियों का ठीकरा एक चैनल के रिपोर्टर पर फोड़ते है
देश जहां महामारी से लड़ रहा है वहां धूर्त लोग पर्दे की आड़ में बैठकर हिन्दू मुस्लिम कार्ड खेल रहे है - बेहद घटिया और निम्न मानसिकता के लोग है
इतिहास याद रखेगा जब देश मे लोग मर रहे थे तो सत्ता में बैठे और उनके कुपढ़ गंवार देशभक्त एवं अंधभक्त इंसानियत और श्रम के देवताओं - जो सड़क पर बेहाल है 22 दिनों से, अन्नदाता किसानों और गरीब बेहाल मरीजों के खिलाफ जाकर समूची मानवता के विरुद्ध बड़े नरसंहारों की व्यूह रचना में व्यस्त थे
नोट
1 - कूपमण्डूक और अंध भक्त यहाँ अपनी निम्न मानसिकता लेकर कूड़ा फेंकने ना आये ]
2 - जो मुस्लिम डॉक्टर्स, नर्सेस और मेडिकल स्टाफ, पुलिस और प्रशासन के लोगों पर हमले कर रहे, रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद भाग रहें है, जमात से आये लोग गांवों और शहरों में कोरोना फैला रहें है उनका विरोध है और उन्हें कड़ी से कड़ी सज़ा मिलें यह भी ध्यान रहें कि मैं लिख रहा हूँ इन लोगों से कोई सहानुभूति नही बल्कि इन्हें फांसी दे दो
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फिर हिंदी के भयंकर प्रसिद्ध और स्थापित कवि ने अपने ही शहर के साथी को गाली देकर कोसते हुए कहा कि
" वो हरामखोर इतना घटिया कवि है कि सागर के जिस होटल में काव्य संध्या के आयोजकों ने ठहराया था - आते समय उसने बाथरूम से मेडिमिक्स के दोनों छोटे साबुन बैग में रख लिए थे, एक मुझे दे देता कमीना तो आज काम नही आता - हाथ धोने के - तीन साल में इकट्ठा किये साबुन, कंघे, शेविंग क्रीम और बिलेड, शैम्पू और तेल के पाउच खत्म हो गए मेरे इस लॉक डाउन में साला "
अभी फोन पर रो रहा था, कोई साबुन पहुंचा दो इस यारबाश कविराज को
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3 मई तक
बातें सही है
फ़ैसला सही है और बेहद जरूरी है

दस हजार के करीब पहुँच चुके है हम तो जाहिर है स्थिति भयावह है
सरकार के जो प्रयास 138 करोड़ के सन्दर्भ में है वे सच मे स्तुत्य है फिर वो एक लाख लोगों के लिए बेड्स की बात हो, 220 लैब्स की बात हो या गरीबों - मजदूरों के लिए काम करने की या आयुष मंत्रालय की एडवाइजरी का उपयोग निजी स्वास्थ्य और इम्युनिटी बढ़ाने के बारे में हो
कल अमेरिका स्थित अपने बाल मित्र और वहाँ के प्रसिद्ध चिकित्सक Rakesh Agrawal से भी लम्बी बात हुई तो वहाँ की भयावहता पर बात हुई, राकेश ने भारत के प्रयासों की सराहना की कि कैसे यह लॉक डाउन लाखों मरीज रोकने में सहायक सिद्ध हुआ है
संतुलित और प्रेरक सम्बोधन है जिसमे लगभग सभी क्षेत्रों की बात की है मोदी जी ने
आर्थिक परिदृश्य बहुत खराब है ही बस हमे अब मान लेना चाहिये कि अगले 5 साल इस भरपाई को पूरा करने के लिए चौगुना मेहनत करना होगी, शायद इससे ना भी उबर पाएं हम
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100 दिन
9 दिन
50 दिन
21 दिन

की शानदार सफलता के बाद
14 दिन
फिर से एक बार
निकम्मों कलपते रहो, तड़फते रहो, भूखे मरते रहो, दवा- राशन और मूल सुविधाओं के लिए चिल्लाते रहो पर
हम नही सुधरेंगे
8 के बाद 9 और अब 10 बजे
फिर 11 और अंत में बजेंगे पूरे 12

भाईयों - भैंनों देखना, सुनना, थाली बजाना, मोमबत्ती जलाना ना भूलिएगा
पधार रहें हैं
[ थोड़ा हँस लो कम्बख्तों - कल हो ना हो ]
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सुप्रीम कोर्ट किसके लिए और किसके इशारों पर काम कर रहा - यह स्पष्ट हुआ कि नही
जब आप न्यायपालिका को सर्वोच्च स्थान पर एक स्वतंत्र निर्णय लेने वाली और राज्य को इसके निर्णय बाध्यकारी मानने के लिए मानते है तो आपके सारे भ्रम यहाँ आकर टूट जाते हैं
उपर से तुर्रा ये कि जिनके टैक्स, पसीने और मेहनत पर ये सफ़ेद हाथी न्याय के नाम पर तमाम तरह की सुविधाएं भकोसते हुए लाभ लेते है उनके निर्णयों पर सवाल मत करिए - कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट की सज़ा हो जाएगी
आज जब देश के करीब 55 करोड़ लोग सड़कों पर है, स्वास्थ्य सुविधाएं बर्बाद हो गई है उस पर कोर्ट कुछ नही बोल रहा और पीएमकेयर फंड पर भी नही बोल रहा - मजाक है यह देश, धन्य है व्यवस्था और धन्य है हरिश्चंद्र और विक्रमादित्य के वंशज जो किसके लिए क्या कर के क्या स्थापित कर Precedence इतिहास को देकर जाएंगे यह कहना मुश्किल है
"होता है तमाशा मिरे आगे हर रोज़"
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आज सुप्रीम कोर्ट के चार बड़े फैसले
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1-कोरोना महामारी का सांप्रदायिकरण करने वाले मीडिया संस्थानों पर कार्रवाई की मांग वाली याचिका पर अंतरिम आदेश पारित करने से यह कहते हुये इनकार कर दिया कि " प्रेस को रोक नहीं सकते "
2-कोरोना के खतरे से निपटने के लिए भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण करने के लिए केंद्र सरकार को किसी भी प्रकार का निर्देश देने से इनकार
3-PM CARES फंड के गठन की वैधता पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिका खारिज
4- सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व में दिये गये "सभी के लिये निजी अस्पतालों में कोरोना के मुफ्त जांच" के फैसले में बदलाव करते हुये अब इसे केवल “आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना" और "कम आय वर्ग" तक सीमित कर दिया है
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यक्ष प्रश्न
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लॉक डाउन बिल्कुल बढाईये
ये देश को बताईये कि आपका 21 दिन का क्या हश्र है
क्या हासिल हुआ अब तक 21 दिन में
15 हजार करोड़ रुपया स्वास्थ्य के लिए और 170 हजार करोड़ रुपया लोगों के लिए जो जारी हुआ था उसका क्या हुआ - फंड्स रिलीज़ हुए और खर्च हुए क्या
वेन्टीलेटर्स की , पीपीई और गियर्स की उपलब्धता क्या है
सामान, दवा, दूध, सब्जी आदि की वैकल्पिक व्यवस्था क्या है
पुलिस को डंडे मारने से और क्रूर व्यवहार करने से रोका गया है क्या
कोरोना से इतर मरीजों के इलाज के लिए क्या व्यवस्था है - इस्मा लागू होने के बाद भी निजी अस्पताल और चिकित्सक बाजार से गायब है - उन पर क्या कार्यवाही हो रही है
वंचितों को 25 प्रकार की श्रेणियों में बांट कर 3 माह का राशन कोटा निशुल्क देने की बात हुई है , पर इसका वितरण कब होगा
सड़कों पर मजदूर घेरकर रोके गए है जगह जगह और लोग भूखे भी मर रहें है - उनके लिए क्या विकल्प है
टेस्ट्स की स्थिति क्या है - कब बढ़ेगी संख्या
प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग अब आदेश भेजना बन्द करें - कोई नही पढ़ रहा - हफ्तों से मेल बॉक्स नही खुले है ना किसी ने कोई मोड्यूल खोलकर देखें भी है - काम करने दीजिए मेडिकल से जुड़े लोगों को
किसानों की फसल खड़ी है, समर्थन मूल्य घोषित नही हुआ, मण्डिया बन्द है - कर्जदार किसानों को धमकाने लगें है - क्या व्यवस्था है किसानों के लिए
प्रभावी लॉक डाउन के लिए इन सब मुद्दों पर सोचने की जरूरत है
पैनिक नही कर रहा पर अभी 30 तक यूँही रहना है तो व्यवस्था पर बात होना चाहिये
मैं तो दो कौड़ी का नागरिक हूँ और लोकतंत्र में अपनी बात पुरी श्रद्धा और विश्वास के साथ जिज्ञासु मन से रख रहा हूँ
[ यहाँ कोई राजनैतिक निहितार्थ नही है , कृपया संघी मुसंघी और ज्ञानी लोग अपना कचरा यहाँ ना फेंके - यदि लोकतंत्र में एक नागरिक के अधिकार और उससे ज्यादा कर्तव्य आपको ज्ञात नही तो आपकी समझ के लिए मैं जिम्मेदार नही
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मित्रों आज सुबह से मैं बहुत सारे दोस्तों से बात कर रहा हूं बहुत सारी गलतियां मैं भी कर रहा हूं अब उन्हें नहीं करूँगा
आप सब से अनुरोध है कि खाने में जितना सादा और सरल हो सकता है उतना ही बनाए , अन्न का एक दाना भी व्यर्थ न जाने दें , बाजार में सामान की किल्लत शुरू हो गई है और धीरे-धीरे यह किल्लत और बढ़ेगी - हालांकि हो सकता है कि रुपया आपकी जेब में रहेगा परंतु बाजार में सामान नहीं रहेगा इसलिए सिर्फ दो समय न्यूनतम खाना खाइए और दूसरों के बारे में सोचिए
अगर दरवाजे पर सब्जी वाला आ रहा है तो ढेर सारी सब्जियां ना खरीद लें , दूसरों के लिए भी थोड़ी बचा कर रखें - आपके पास रुपया बहुत होगा परंतु दूसरे जो अभाव में जी रहे हैं उन्हें न्यूनतम सामान उपलब्ध हो जाए इसकी कोशिश करें
कम से कम खाएं और दूसरों के लिए भी रहने दें अगले हफ्ते से ही बाजार में जो भी सामान उपलब्ध है गायब हो जाएगा यह आप लिखकर रख लीजिए
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कोरोना के काल में
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इस समय में प्रदेश के मुखिया शिवराज जी 17 वर्षों में सबसे ज्यादा कमजोर साबित हो रहे हैं, अपनी टीम ना होने के कारण या कुछ और कारण हो पर सिर्फ दो बड़े जिले ही सम्हल नही रहें

पल्लवी जैन गोहिल जैसे अधिकारियों की मनमानी का नतीजा पूरे प्रदेश को भुगतना पड़ रहा है, इन अधिकारियों ने NHM से लेकर कई विभागों का भट्ठा बिठाया है, महिला बाल विकास विभाग की कहानी मालूम ही है कि किस तरह से कुपोषण का दाग अभी तक चमक रहा है, शिक्षा की दुर्गति से हम वाकिफ़ है ही
मप्र में शिवराज सरकार ने ही इन जैसे अधिकारियो को अग्रिम पंक्ति में कमान देकर प्रदेश को डुबोया - टीनू अरविंद जोशी हो या मोहंती या अपने आसपास के 6 वो अधिकारी जिसमें पांव पडूँ एसएन मिश्रा भी शामिल था, अब बारी है कि कोरोना काल के बाद इन सबकी छंटनी की जाए और स्वास्थ्य / शिक्षा को प्राथमिकता दी जाए - बजाय खनिज और शराब के
आज निंदा का वक्त बिल्कुल नही पर पिछले 17 वर्षों में 16 वर्ष शिवराज जी का एक छत्र राज्य रहा है और समाज के सेवा प्रदाता संस्थाओं की भूमिका , व्यवस्थाएं और क्षमता वृद्धि पर निश्चित ही इस समय समालोचना और टिप्पणियों की जरूरत है और यदि देखेंगे तो पायेंगे कि 181 मुख्य मंत्री हेल्पलाइन में 60 %शिकायतें इन्हीं क्षेत्रों की है
अब हम सब भी लोकतंत्र में जवाबदेही निभाये , अपने प्रतिनिधियों से बेख़ौफ़ होकर ना मात्र सवाल पूछे बल्कि उन्हें व्यवस्थाएँ सुधारने में मदद करें क्योकि हमने निजी अस्पताल से लेकर निजी चिकित्सकों को देख - परख लिया है और मालूम है कि वे नेटफ्लिक्स पर फिल्में देख रहें है - बिरले ही है जो पवित्र शपथ के पाठ को याद रखकर मैदान में जुटे है और जान भी दे रहें है
हमारी जिम्मेदारी एक नागरिक के रूप में ज्यादा है बनिस्बत अस्थाई और बिकाऊ नुमाइंदों के - ये सरकारें तो बिकती रहती है , कल फिर कोई और व्यवसायी इन्हें बेचकर अपना साम्राज्य बना लेगा पर हम भारत के लोगों की जिम्मेदारी है कि कार्य पालिका के साथ मिलकर अपना घर, परिवार, समाज और देश के लिए एकनिष्ठ होकर काम करें
जिम्मेदार मीडिया को भी भयावहता समझ नही आई है तो वे परचून की दुकान खोल कर बैठे बजाय चारण और भाट बनने के, छोटे मोटे हॉकर्स से लेकर चैनल्स के ब्लैकमेलिंग में उस्ताद और घर जमीन खरीदने वाले घटिया किस्म के लोगों को यदि यह समझ नही आ रहा तो डूब मरें - मेरे देखते देखते हॉकर से राज्य प्रतिनिधि बनें लोगों ने कितनी जमीन खरीद ली और तमाम किस्म के नाजायज़ धन्धों में आज ये लोग संलग्न है - चौथा स्तम्भ कहने के बजाय इन्हें क्या कहा जाए यह समझ नही आता क्योकि भाषा की गालियां और दुर्भावनाओं से भी ये परे जा चुके है
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मतलब कमाल यह है कि अभी एक कवि ने इनबॉक्स में 10 कविताएँ पेल दी और वो (ई)बोला -
" अग्रज, प्रणाम, अब्बी फुर्सत में हूँ तो इन दिनों फ़लाने -फ़लाने आने वाले दीवाली विशेषांक के लिए लिखी है-ज़रा देखकर सुझाव दीजिये कि ठीक है ना "
मतलब अब क्या कोरोना से मर जाऊँ या जबरन किसी के गले लगकर संक्रमित हो जाऊँ - खबरदार जो किसी ने इनबॉक्स में कविताएँ भेजी तो उसके घर आकर सबसे गले मिलकर जादू की झप्पी दे दूँगा खाँसते - खाँसते
हाँ ...........नई तो ........
गलत मत समझना बो ManiBahadur , Anand, मालिनी , BinayJyoti , Ammber नही है भिया हवो
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यदि घर मे कोई बीमार है मरीज है मर रहा है तो हमारा संविधान और जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि पद पर बैठा आदमी इलाज की नहीं घन्टा थाली बजाने को कहता है, मोमबत्ती दीये जलाने को कहता है और मुहल्ले के लोग पटाखे जला आते हैं।
विचित्र देश और अजीब मानसिक रोगियों का देश !

इलाज नहीं, मास्क नहीं, ग्लोव्स नहीं, राशन नहीं, एक तिहाई मजदूर सड़कों पर, बच्चे कुपोषित, डाक्टर और मेडिक्ल स्टाफ मर रहे, प्रशासनिक अधिकारी अस्पतालों में भर्ती हैं - तीन हजार लोग कोरोना ग्रस्त पर हम उत्सव प्रेमी नारे लगाएंगे
धिक्कार है मुझपर, लोगों आओ मेरा लिंचिंग करो - मारो मुझे - मैं मर चुका हूँ।
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मित्रों यदि आपके सेविंग में कुछ रुपये पड़े हो 500 से 500000 तक तो निकालकर घर रख लीजिए
आर्थिक आपातकाल लगने की संभावना लग रही है मुझे -जिस अंदाज में आज सांसद - विधायक निधि पर दो साल का प्रतिबंध लगा है , राष्ट्रपति और अन्य पदों पर बैठे लोग 30 % कम तनख्वाह लेंगे वह क्या इशारा है
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