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Showing posts from November, 2019

JNU Struggle, Media Workshop Gwalior and Other Posts 8 to 18 Nov 2019

उजालों की चपेट में धरती  ◆◆◆ ● मेरा मोबाइल 7300 का पड़ा था दीवाली पर अमेजॉन और फ्लिप कार्ट पर छूट थी, 24 की रात बारह बजे बुक कर दिया था और तीन दिन में मिल गया ये आसुस का मोबाइल ● यूट्यूब पर आपने सपना चौधरी के नए गाने देखें है और पंजाबी एलबम जो नया आया है, बाबा सहगल के नए गाने नही आ रहे है सर  ● पित्ज़ा आपको डेढ़ घण्टे में मंगवा देंगे, अभी फोन करेंगे, बस में आ जायेगा पित्ज़ा , घर मे चूल्हे पर तवा रखकर गर्म खा लेंगे - आप तो बताओ खाना क्या है अभी ● मेरे मामा की बाइक के साइलेंसर में दिक्कत आ रही थी, अब गांव में तो मैकेनिक नही है फिर क्या बस हमने यूट्यूब पर देखा कि सुधारना कैसे है और रात को देर तक वीडियो देख देखकर हमने बाइक ठीक कर ली ● महाराष्ट्र में सेना का तो बैंड बज जाएगा अब चुनाव हुए तो ● बोलेरो का नया मॉडल लेना है पर जो मज़ा सफ़ारी में है वो जायलो या इनोवा या बोलेरो में नही है , अभी तो नही पर अगले साल दीवाली पर ले लेंगे ◆◆◆ ये असर जियो, एयरटेल, वोडाफोन प्रदत्त डेढ़ जीबी का है और ये बातें करने वाले 19 से 26 साल तक के युवा है जिसमे लड़के - लड़कियां शामिल है, यह र

जन संघर्ष के नायक जब्बार भाई 16 Nov 2019

जन संघर्ष के नायक जब्बार भाई  कल ही सब पढ़ा था, मित्र लोग पोस्ट डाल रहे थे, एक आदमी जो 1984 से भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों की लड़ाई लड़ रहा था, लगातार 35 वर्षों से , उसने हर मंच पर आवाज़ बुलंद की आज वह अपनी ही लड़ाई हार गया  यूँ तो अनिल सदगोपाल, साधना कर्णिक, सतीनाथ षड़ंगी, रचना ढींगरा आदि क़ई किस्म के नेता है जो यह लड़ाई लड़ रहे थे पर उनका अंदाजें बयाँ कुछ और था 1986 - 87 वो साल था जब देश भर से भारत ज्ञान विज्ञान जत्थे निकलें थे नारा लेकर कि विज्ञान विकास के लिए या विनाश के लिए , एकलव्य संस्था का गठन हुआ ही था विनोद रायना, रेक्स डी रोज़ारियो, कमल महेंद्रू, अनिता रामपाल, साधना सक्सेना, अनवर जाफरी जैसे लोग थे जो बहुत जोश और खरोश के साथ विज्ञान और विज्ञान की शिक्षा को लेकर प्रदेश में काम करने का मंसूबा लेकर आए थे , इस बीच भोपाल गैस त्रासदी हो गई - मप्र में  विनोद रायना, अनिल सदगोपाल, संतोष चौबे से लेकर तमाम तरह के एक्टिविस्ट और खास करके केरला शास्त्र साहित्य परिषद के डॉक्टर एम पी परमेश्वरन और कृष्ण कुमार जैसे लोगों ने भारत ज्ञान विज्ञान जत्थे की संकल्पना बनाई थी जो देश के चार कोनो

किसी की जान गई और आपकी अदा ठहरी - असगरी बाई 18 Nov 2019

किसी की जान गई और आपकी अदा ठहरी 45.38 मिनिट्स की यह फ़िल्म देखकर आप असगरी बाई को समझ सकते है ध्रुपद संगीत की इस विलक्षण गायिका से हुई टीकमगढ़ की एक सुबह की मुलाकात आज ना जाने क्यों बहुत याद आई उनकी हंसी, डांट और कहना कि यदि सुर दिल में नही तो ईश्वर को कहां से पायेगा लड़के बात 1992 की है शायद जब किसी काम से डाइट कुंडा ( टीकमगढ़) में गया था तो जेहन में था कि वे इसी शहर में रहती है, उनका जन्म अगस्त 1918 में बिजावर जिला छतरपुर में हुआ था, भिंड के गोहद के उस्ताद जहूर खां साहब ने उनकी माँ से उन्हें पांच वर्ष की उम्र में मांग लिया था कि यह संगीत में बड़ा नाम करेगी असगरी बाई के जीवन में जहूर खां साहब, राजा वीरदेव सिंह जूदेव और बाबा ब्रह्मचारी का बड़ा प्रभाव रहा और जो ध्रुपद उन्होंने गाया है वह कोई नही गा सकता यह संयोग ही था कि यह फ़िल्म बनने के बाद 87 वर्ष की उम्र में यानी 9 अगस्त 2006 को उनकी मृत्यु हो गई, फ़िल्म के आखिर में वे जिस अंदाज में कहती है इससे लगता है कि अपनी मृत्यु का आभास उन्हें हो गया था, पदम् पुरस्कारों समेत उन्हें ढेरों पुरस्कारों से नवाजा गया था - पर आखिरी दिनों

सुर्ख लाल गुलाब का महंगा फूल और बच्चें Post of 7 Nov 2019

सुर्ख लाल गुलाब का महंगा फूल और बच्चें बीच में पुण्य सलिला नर्मदा नदी है जो कल कल बह रही है नदी के दोनों तरफ गांव है दूर तक फैली हुई हरियाली और खेत में बीच-बीच में कहीं से हंसी की आवाज सुनाई देती है , पानी के कल कल की आवाज के साथ जब हंसी की आवाज मिल जाती है तो लगता है कि संसार का सबसे सुमधुर संगीत यही है - सबसे ज्यादा शांति और सुकून यहीं है और दूर आसमान तक देखे तो लहलहाती फसलों की हरियाली मन को मोह लेती है  खेतों में थोड़ा अंदर घुस कर देखें तो सफेद सोना झूम रहा है, सोयाबीन की बालियां झूम रही है और लगता है मानो यह दृश्य आंखों के सामने हमेशा के लिए थम जाएं - परंतु थोड़ा और अंदर घुसते हैं पता चलता है कि कपास चुनने के लिए बच्चों की एक लंबी फौज खेतों में टूट पड़ी है - फटे हुए कपड़े, बेतरतीब से बाल, पपड़ी जमे होठ, महीनों से दांत साफ नहीं किए, पूरे हाथ और पांव पर धूल की मोटी परत है , आंखों में उदासी और हाथ के पंजे लहूलुहान हैं और वे कपास चुन रहे हैं यह गंगा है और इसके दो भाई - भीमा और सुमलिया भी खेत की इसी बागड़ पर कपास चुन रहे हैं , तीनों भाई बहनों में मुश्किल से एक डेढ़ साल

Posts of 4,5 and 6 Nov 2019

Bring Back Pride to the Govt Hospitals ◆◆◆ इंदौर में एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी हैं जो बहुत संवेदनशील व्यक्ति हैं और बहुत अच्छे मित्र हैं उनके बुजुर्ग पिताजी को कुछ तकलीफ थी वह इंदौर के एक निजी अस्पताल में ले गए क्योंकि इमरजेंसी थी - अस्पताल ने उनकी जांच की और फिर बताया कि एंजियोग्राफी करना होगी, एंजियोग्राफी के बाद उन्होंने बोला कि एंजियोप्लास्टी भी करना पड़ेगी, वह भी हो गई, बाद में अचानक पिताजी का पेट फूल गया, हारकर डाक्टर को बुलाया, वे बहुत परेशान रहे - ना गैस्ट्रो का डॉ क्टर पलट कर आया, ना कार्डियोलॉजिस्ट पलट कर देखने आया, लिहाजा मित्र ने कल देर रात अपने पिताजी को बॉम्बे हॉस्पिटल में एडमिट करवाया वहां जाकर जब सम्बंधित डॉक्टर्स ने जांचे देखी और एंजियोप्लास्टी की सीडी देखी तो समझ में आया कि वह जबरदस्ती कर दी गई है ,असली दिक्कत पथरी की थी - उसका इलाज नहीं किया गया, आखिर आज दोपहर दो बजे से पेट की जांच करके ऑपरेशन हुआ है, अब वे थोड़ी राहत महसूस कर रहे हैं, आज रात भर पिताजी को ऑब्जर्वेशन में रखा जाएगा यह हाल है निजी अस्पतालों का, एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के साथ इस त

अंडा , मादी और अन्य पोस्ट्स Oct End 2019

बुजुर्गो के आशीर्वाद और परम पिता परमेश्वर की असीम कृपा से मेरे द्वारा दिया गया सोनपपड़ी का डब्बा सकुशल आज मेरे घर वापस लौट आया है बगैर खुले - उसी बदबू और चीकट एहसास के साथ सात वर्ष पुराने इस डिब्बे को पुनः हाथों में पाकर मेरी घ्राण इंद्रियां प्रसन्नता से पागल हो रही है, अब इसे अगले वर्ष के लिए सुरक्षित रख रहा हूँ, आपकी दुआओं का तलबगार हूँ - इस डिब्बे को अपने रहमो करम और आशीष से नवाजियेगा जरूर आप सबकी दुआओं, प्रार्थनाओं और सम्बल के लिए आभार *** पेज थ्री की माद्री बनाम एनजीओ की राजनीति ◆◆◆ 35 साल के अनुभव से कह सकता हूँ कि जिन भी एनजीओ को महिलाएं चलाती है - उनमें से 70 % बेहद घटिया किस्म के है, वहां सेटिंग, भ्रष्टाचार , विदेशी ग्राहकों के विजिट और चैरिटी के अलावा कुछ नही होता मप्र में ऐसे ढेर एनजीओ है जिनकी सरगना महिलाएं है और वे निहायत सिरफिरी, अपराध बोध से ग्रस्त, महाभ्रष्ट और हर तरह के काम और अनुदान के लिए कुछ भी करने वाली और शरीर से लेकर संबंधों को सीढ़ी बनाने वाली होती है - दर्जनों नाम मय प्रमाण के गिनवा सकता हूँ हनी ट्रेप और मादी शर्मा इसके उदाहरण है, दो

उजली सुबह तेरे खातिर आएगी - साँड़ की आंख 29 Oct 2019

उजली सुबह तेरे खातिर आएगी - साँड़ की आंख भारतीय फिल्म उद्योग में शायद ही किसी दौर में इतनी विलक्षण फिल्में बनी होंगी जो भीड़ में अपना ध्यान इसलिये खिंचती है कि उनका फोकस खेल और सिर्फ खेल है. विज्ञापनों की भीड़ में भी एक विज्ञापन एक ताकत देने वाले प्रोडक्ट का आता है जिसमे एक वृद्ध महिला अपनी पोती को खेल के मैदान में अभ्यास करवा रही है और कहती है - "तुम्हारी मां नहीं है तो क्या हुआ मैं तो हूं" साथ ही वह यह भी कहती है कि हमारे बचपन में इतनी प्रतियोगिता नहीं थी, परंतु आज जीवन के हर दिन प्रतियोगिता ही प्रतियोगिता है . लगभग डेढ़ मिनट के विज्ञापन में वह बुजुर्ग महिला उस छोटी बच्ची को समुद्र के तट से लेकर रस्सी कूदने तक के कई कठिन अभ्यास करवाती हैं और अंत में वह बच्ची भी मेडल लेकर आती है - यह विज्ञापन सिर्फ हमें भावनात्मक रूप से नहीं जोड़ता बल्कि हमें यह भी दिखाता है कि कैसे एक महिला दूसरी महिला को याने आने वाली पीढ़ी को कठिन अभ्यास से इस मुश्किल दौर के लिए तैयार कर रही है , बहाना भले ही खेल का हो परंतु महिला महिला को जिस तरह से सशक्त कर रही है वह अनूठा है. खेल को लेकर बनी फ