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Showing posts from July, 2014

" सीधी बात " पालक को लेकर ........

" सीधी बात " साफ करता हूँ पालक तो हाथ आ जाती है मिट्टी कुछ छोटे मोटे कीड़े  जंगली घास-फूस और बहुत कुछ जो उस पालक से चिपककर ज़िंदा है एक झटके से गाली निकलती है सब्जीवाले के नाम कि कितना कचरा पालक के नाम पर दे दिया पकड़ा दिया इतना महँगा खेत से उखाड़ते समय क्यों ध्यान नहीं रखते पालक का हरी पत्तियाँ ही तो काम की होती है खून बढ़ता है हरेपन से क्या मालूम नहीं इन मूर्खों को कितना लोह अयस्क होता है कितना सस्ता स्रोत है गरीब और कुपोषित लोगों के लिए एक स्त्री के लिए - जो एक जीवन को जन्म देने के लिए तत्पर है एक बच्चे के लिए- जिसके शरीर पर अभी मांस, मज्जा और हड्डी बन ही रही है आहिस्ता से इतनी सरल सी बात ध्यान नहीं रहती फिर देखता हूँ पालक से निकले कचरे को बारीकी से और अचानक चौक उठता हूँ कि हरेपन के बिना लाल का बढ़ना मुश्किल लगता है मित्रों. - संदीप नाईक

बरसात की रजत बूँदें

बारिश तो तन भिगो देती है पर जो सूखा रह जाता है एक मन, कुछ एहसास, कुछ आधे अधूरे से अपुष्ट सपनें और गुनगुनी होती इच्छाएं उनका क्या ? चारो ओर गिला सा होता देख और अन्दर तक धंसते जा रहे पानी को देखना अपनी शिराओं में झुरझुरी का एहसास करा देता है कि कैसे कोई सांस की तरह से कब धंसकर समा गया और फिर एक बीज कही से सारे विरोध के बावजूद पल्लवित हो गया। इंतज़ार है उस पल्लवित होते बीज का वट वृक्ष में तब्दील हो जाने का, देखे बरसात की रजत बूँदें इसे पोषित करती है या अश्रुओं की उद्दाम धाराएं !!! खिड़की में कांच लगा है और ये रजत बूँदें सरकते आ रही है, एकदम करीब और जब छू जाती है तो सन्न सा रह जाता हूँ - पता नहीं क्यों लगता है मानो सब कुछ भिगोते हुए सब कुछ समेट कर ले जायेंगी और फिर सब कुछ रीता रीता सा रह जाएगा। उन्मुक्त उद्दाम वेग की ये जीवन रेखाएं कांच के इन्ही पारदर्शी आवरणों से सब कुछ झीना कर रही है मानो फिर कोई कबीर गा रहा है झीनी झीनी चाददिया ....या इस घट अंतर बाग़ बगीचे, इसी में पालनहार ....

सहरिया आदिवासियों में कुपोषण

श्योपुर और शिवपुरी में सहरिया आदिवासियों में कुपोषण एक बड़ी समस्या है। तत्कालीन कमिश्नर महिला बाल विकास डा मनोहर अगनानी के मार्गदर्शन में ग्राम ऊँची खोरी कराहल ब्लाक जिला श्योपुर में आठ दिन तक कलेक्टर और जिले के पुरे अमले के साथ समय लगाया था  कि हालत सुधारे जा सके। एक रिपोर्ट भी बनी थी जिसे सार्वजनिक नहीं किया गया क्योकि इसमे सरकारी तंत्र के कई विफलता के आकर्षक किस्से थे। बहुत कुछ निर्णय लिए गए, डा अगनानी ने जिला कलेक्टर और विभागों को कई निर्देश दिए थे , पर ढाक के तीन पांत। इतने बड़े लवाजमे ने यह नतीजा निकाला था कि 89% आबादी भयानक कुपोषित है। संस्थागत प्रसव नहीं होता आज भी , क्योकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में रिश्वत माँगी जाती है। गाँव की एक आंगनवाडी में 2012 से कार्यकर्ता की नियुक्ति नहीं हुई है और दूसरी मिनी आंगनवाडी कार्यकर्ता माह में मुश्किल से आठ दिन आती है। मैंने कल देखा कि टेक होम राशन भरा पडा है जो बंट नहीं रहा ठीक तरीके से , और एक तो एक्सपायर्ड भी हो गया था। कम से कम पंद्रह थैले पड़े थे। ध्यान रहे कि शिवपुरी और श्योपुर यूनिसेफ के उच्च ध्यान देने वाले जिले आज भी है जहां

अकेलेपन का आकाश की मौत के साथ अंत.....

आज पता चला कि आकाश ने आत्महत्या कर ली, मै आकाश को लगभग पिछले छब्बीस बरसों से जानता था, बहुत ही ज्ञानी और जमीन से जुड़ा बन्दा था. एनजीओ जब स्वैच्छिक संस्था के नाम से जाने जाते थे वह उसमे काम करता था, हालांकि काम तब भी कार्पोरेट्स का ही होता था बस यह था कि लोगों की भाषा और पहनावा थोड़ा सा देशज होता था. आकाश ने एक के बाद दो शादियाँ की,  अंत में उसे कही भी मुक्ति नहीं मिली, एकाकीपन से तंग आ गया. इस दौरान मैंने देखा कि इस पुरे एनजीओ क्षेत्र में अकेले लोगों की एक लम्बी भीड़ है - लडके - लडकियां और कईं लोग परिवार के होते -सोते भी बेहद अकेले है, और इसी अकेलेपन ने उन्हें निष्ठुर और कामरेड बना दिया था. अपने शरीर को मारकर ये लडके लडकियां या तो निपट अकेले थे या किसी सहकर्मी के घर में सेंध मारकर जमे बैठे थे और संसार ना बसाकर भी संसार के वो सारे सुख उड़ा रहे थे जिसे वासना, प्यार या इमोशनल बैलेंस कहते है. और इस सबमे खासकरके लड़कियों को मैंने शोषित होते देखा है जो अपनी मर्जी से अपनी उन्मुक्त देह के सहारे और विचार क्रान्ति को आधार बनाकर इस अनोखी  दुनिया की सत्ता पर कब्जा जमाये बैठी है.  आकाश ने भी दो विव

लजीज कटहल का अचार..........

एक डेढ़ घंटे की मेहनत में छह किलो कटहल का अचार बनाया है वाह इसकी खुशबू पुरे घर में महक रही है। हींग, कलौंजी और सभी मसालें। भारतीय रसोई वाकई अपने आप में परिपूर्ण और लाजवाब है।  दो किलो कच्चा कटहल साफ़ करके बारीक टुकड़ों में काट लें। छुरी पर तेल लगाकर काटे वरना मेहनत ज्यादा करना पड़ेगी। फि र इसे कूकर में स्टीम कर ले । फिर आधा किलो कच्चे आम काट कर रख ले। अचार मसाले में कटे आम डाल दें और फिर ठन्डे होने पर कटहल के टुकडे मिला दें । एक कढाई में सरसों का तेल बढ़िया गर्म करें और फिर थोड़ा ठंडा होने पर इसमे हींग मिला दें। पूरा ठंडा होने पर अचार मसाले , आम और कटहल के टुकड़ों के साथ मिला दें।  दो दिन तक इसे हिलाते रहे और लीजिये, आपका बढ़िया वाला मस्त कटहल का अचार तैयार है। अगर ज्यादा दिक्कत है तो बन्दे को बुला लें हाजिर हो जायेगा सिर्फ़ एक घंटे का काम है। आम डालना जरुरी है वरना सिर्फ कटहल गला पकड़ेगा। इसे साफ़ और सुखी हुई कांच की बरनी या चीनी की बरनी में भरकर रखे, साल भर मजे में चलेगा, जब खाएंगे इस हलवाई की याद आयेगी।