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Posts of 4 to 8 May 2020 Corona

मशरूम की बनी ये रोटियाँ कमबख्त पचा नही पायें और पटरी पर छोड़कर मर गए
अब ये लोकसभा के कैंटीन में भिजवा दो और कुछ पटरियां वहां से भी निकाल दो - बेशर्मों का ज़मीर ना संसद हमले में मरता है, ना दंगों में, ना बीमारी में , ना महामारी में, ना हवा में, ना सड़कों पर और ना कभी पटरी पर
इन रोटियों को इनके घर - दफ्तर तक भिजवाओ - इनके बच्चों और बीबी, माँ - बाप तक पहुँचा दो - शायद इनमें से ही किसी का ज़मीर मर जाये या हो सकता है इनमें से ही कोई मर जाये अबकी बार
रोटियों की ना जात होती है ना धर्म और ना राज्यों की सीमाएँ - यह समझ है भी है कि नही इन मशरूमों की
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औरँगाबाद में मरे मजदूर हादसे में मरे क्या
बिल्कुल हादसा है जनाब
गलती मजदूरों की है साले यहाँ पैदा ही क्यों हुए, पलायन पर जाते क्यों है - ऐश करते है बाहर जाकर, इनकी लड़कियां और औरतें धँधा कर खूब कमाती है बड़े शहरों में, ठेकेदारों से फंसी रहती है
और सुनो लॉक डाउन सरकार की मजबूरी है मजदूरों की नही , सरकार तो कह रही यही रुको , फोकट में खाओ और मौज उड़ाओ, मस्त दारू पियो - ठेके खुल गए घर जाकर क्या करोगे तुम
ये सबके सब साले बदमाश थे, पीकर पड़े होंगे पटरी पर और सो गए वही, वरना नींद कैसे आती है, हमें तो मलमली बिस्तर पर भी नही आ रही महंगी वाली पीकर भी
अब यह बताओ कि साला छत्तीसगढ़ से जम्मू कोई जाता है, बिहार से कर्नाटक कोई जाता है, केरल से आबू धाबी कोई जाता है - इतने रुपए की जरूरत क्या है और तुम सारा रुपया कमा लोगे तो अंबानी क्या कमाएगा
गांव में रहो - मनरेगा के काम करो , साल छह महीने में मजदूरी मिल जाएगी, फटे कपड़े पहनो, ऐश करो - कच्ची शराब की दुकान गांव गांव में है ना और नहीं है तो बना लो महुआ की - साला शहरों में आकर भीड़ बढ़ाते हो, झुग्गी बनाते हो - जगह-जगह हगते रहते हो और हमारे स्मार्ट सिटी के सपनों को धक्का लगाते हो, जब कोई विदेशी आता है तो इतनी शर्म आती है हमें
तुम क्या समझोगे फटे हाल, दो कौड़ी के साले और यह बताओ जब सालों से पलायन कर रहे हो तो आज तुम्हारे पास इतना रुपया नहीं बैंक में कि दो-चार महीने चुपचाप बैठ सको , किराए से कोई होटल ले लो और शांति से खाओ - बाहर निकलने की जरूरत क्या है, घर जाने की जरूरत क्या है, शहरों में सारी सुविधाएं है ना - तुम्हें पटरी पर क्या जहां हो वही मारना चाहिए - हमारा बस चले तो हवाई जहाज से फूलों के बजाएं गोलियां बरसा कर मार दे - अब देखो तुम्हारी वजह से हमारे प्रशासन के लोग कितने परेशान हैं, एनजीओ वाले कितने परेशान हैं - खाना बांटो, बस का जुगाड़ करो, ट्रेन की व्यवस्था करो , दवाई दो , तुम्हारी गर्भवती की हुई महिलाओं को संभालो, हरामखोरों अपनी नाजायज़ औलादों को स्लीपर तक नहीं खरीद कर दे सकते हैं तो किया क्या इतने साल - इत्ते साल मजदूरी करके कोई सेविंग नहीं है तुम्हारी - डुब कर क्यों नहीं मर गए -
इनको तो सबको मर ही जाना चाहिये, सरकार की बदनामी पे तुले है सारे के सारे, काश कि देशभर की सड़कों पर चल रहे भी निपट जाए - ट्रकों से, बसों से या पटरी पर जाकर ही सो जाएं तो ट्रेन से कट मरें या कोरोना से मर जाये साले रास्तों में ही
इसका फायदा यह है कि जनसँख्या कम होगी और देशहित भी होगा और सुनिये आप इस सरकार से जवाबदेही की और मुआवजे की उम्मीद ना करें - ट्वीट आ गया है ना, जाँच आयोग भी करवा देंगे - बस और अब संकट काल मे जान लोगे क्या सरकार की
सबसे बड़ी समस्या मजदूर ही है अभी साले गंदगी फैलाते है सूअर और बीच मे काम छोड़कर भाग रहें है - अब विकास कैसे होगा - जबकि अभी साला 7 दिन पहले ही इनको हार फूल पहनाएं थे देशभर ने -मजदूर दिवस - हूँह - माय फुट , बास्टर्डस, स्काउंडरल ...
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ये चीखें अनंत काल तक मनुष्यता का पीछा करेंगी , आतताईयों का कोई धर्म नही होता यह भी सनद रहे
बच्चे, स्त्रियां, गर्भवती महिलाएँ, बुजुर्ग और मजदूर हमारे विकास के मॉडल के परिचायक है और एक निरपराध सरकार की उपलब्धियों का बखान
हम ईश्वर के आभारी है कि हमें यह दिन देखने को जन्म दिया, ज़िंदा रखा और स्वस्थ आंखों से यह मन्ज़र दिखाया
ईश्वर कही तो पूरा होने दें
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लॉक डाउन जरूरी था पर इस कीमत पर नही कि पूरा देश अस्त व्यस्त हो जाये और अंत में हम वही आ पहुँचे है जहां थे
जिसे समझ नही महामारी और इसके प्री - पोस्ट प्रभाव की - वो ज्ञान ना दें
तुगलकी फ़ैसलों से देश नही चलते - पहले दौर में ही मजदूरों को घर भेज देते तो यह पैनिक प्रभाव, आर्थिक टूटन और बदनामी नही होती
आज जिस तरह से पूरा देश दहशतज़दा हो गया है, मजदूर और कामगारों के ख़िलाफ़ एक वर्ग खड़ा हो गया और सम्प्रदाय विशेष के प्रति घृणा और नफरत का माहौल बन गया वह कोरोना के बाद भी खत्म नही होगा
हमारे श्रेष्ठ शहर मुम्बई , दिल्ली से लेकर इंदौर तक ध्वस्त हो गए है - बैलून फुट गए है बुरी तरह से - विश्व में जो इमेज गई है वह खतरनाक है
पूरी प्रशासनिक व्यवस्थाएँ चरमरा गई है - डाक्टर, पुलिस, प्रशासन से लेकर मीडिया और मजदूर भी पस्त हो गए है आज और हालात भयानक बिगड़े ही नही अभी और बिगड़ेंगे बुरी तरह से
अब सच में कोई ईश्वर अल्लाह जीसस ही बचा सकता है देश को - पर हमें अभी प्रधान मंत्री को मदद करने की जरूरत है क्योंकि इस संग्राम में वे अब अकेले है और विपदाएँ उनको भी छोड़ नही रही - विशाखापट्टनम गैस लीकेज की बात हो या आर्थिक विफलता या जन आक्रोश - बाद में निपटेंगे पर अभी मंझधार में यह आदमी अकेला है और चक्रव्यूह से बाहर निकलना नही जानता, इस अकेले को बाकी सबने चक्रव्यूह में धकेल दिया है इस संग्राम में
बहरहाल, तीसरे लॉक डाउन का भी अर्थ नही है शराब और बाकी सब ढील ने 41 दिनों की मेहनत पर पानी फेर दिया है और अब अपनी रक्षा स्वयं करें या मरने को तैयार रहें
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कस्बे के जुगाड़ू, सस्ते पुरस्कार प्राप्त तथाकथित स्वयम्भू बड़े साहित्यकार ने शेखी बघारते हुए कहा कि " मेरी पोस्ट पर कम से कम 200 लाइक्स और 100 कमेंट्स तो होते ही है "
अंदर से भुनभुनाती बीबी बोली - अबै ओ करमजले कहानीकार की दूम, हर घटिया पोस्ट के साथ अपनी जवानी के बेल बूटे वाली बुशर्ट पहनी फोटो लगाओ तो फेसबुक पर बैठी बूढ़ी चुड़ैलें लाइक करेंगी ही, और तुम नही रात दो - तीन बजे उनकी वाल पर मटर गश्ती करते हो , सुनो - ये सब गिनने के बजाय कपड़े धो मशीन में चुपचाप और असली बात सुन रे नोबल के बाप - 100 कमेंट्स में से 75 तो तेरे जवाब ही होते है कमबख्त और सुनो ड्यूटी जाओ - घर में बैठे हो मुफ्त की खा रहे हो सरकारी तनख्वाह - कुछ तो शर्म करो
साहित्यकार अब मशीन में घर की चादर, पर्दे और तकिये की खोलें भिगोने चल दिये थे आंगन में
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