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कितने_किस्से_कितनी_कहानियाँ Corona 19 May 2020

सुबह 735 हो रहे है इतनी सुबह उठकर खरीदी बिक्री की आदत नहीं पर अब लगभग 50 दिन हो चलें है
आज भी तरबूज, खरबूज और आम की आवाज आई तो नीचे उतरा और ठेले वाले को रोककर भाव किया और दो किलो आम, तरबूज और खरबूज लिया
उनसे सहज ही पूछा कि तरबूज कहाँ से ला रहे हो - तो हड़बड़ा गया " बाबूजी मेरा नाम राजू है और ये सब माल फल मंडी का है देखिये दस्ताने पहने है, हाथ भी धो लेता हूँ साबुन से, सेनिटाईज़ भी करता हूँ, आप बेफिक्र रहिये "

समझ नही आया, मैंने धीरे से पूछा कि मुझे हिन्दू मुस्लिम में रुचि नही है - सिर्फ यह जानना था कि तरबूज नर्मदा नदी नेमावर का है या बड़वाह का है ....
वो थोड़ा नॉर्मल हुआ - बोला , " बाबूजी आपको जानता हूँ - 4 साल पहले आपके घर मे पुताई की है मैं वही हूँ - कही आप पहचान ना लें और बस डर गया था " और यह कहकर वो चुपके से निकल गया
याद आया सब कुछ मुझे, फिर लगा कि सब्जी, भाजी या फल - फूल तो कोई घर नही बनाता, कोई कारखाने नही है फिर हमने कैसा माहौल बना दिया है, हर सब्जी वाले को मोहल्लों और कॉलोनियों में शंका की निगाह से देखा जा रहा है
सुबह 6 बजे से वे ठेले पर सामान लादकर अमूमन 20 से 30 किलो मीटर प्रतिदिन चल रहे है, कल एक महिला अपने बेटे के साथ सब्जी बेचने आई थी - जो ठीक से हिसाब भी नही कर पा रही थी, देवास की किसी फेक्ट्री में काम करती थी - अब काम छूट गया तो सब्जी बेचने आ गई , कोई पहचान ना लें इसलिए घूँघट काढ़ रखा था और बेटे ने गमछा लपेट रखा था - सिर्फ आंखें नजर आ रही थी
रमज़ान का माह चल रहा है सुबह से देर शाम तक पसीने में भीगे हुए ये लोग दर बदर घूम रहे है झाड़ू, एसिड, फिनाइल से लेकर कुकर, गैस सुधारने वाले और सब्जी से लेकर डी मार्ट का सामान घर घर पहुंचाने वाले ये लोग भी देशभक्ति से पूर्ण है - बस, काम धंधे छूट गए है इनके और तो मुंह पर कपड़ा बांधे ये लोग लजाते - शर्माते और अपनी जात छुपाते आपको घर सामान दे रहें है - अपनी जान मुसीबत में डालकर , उनके रोजे के समय सेहरी और इफ्तारी में वे कुछ खा लें यह तो हम कर ही सकते है - यदि राशन की पोटलिया नही बाँट सकते तो
कम से कम उन्हें एक ग्लास पानी नही दे सकते तो उनकी जात तो मत पूछिये - आपके ही जैसे हाड़ मांस और मज्जा में बसे इंसान है - वही लाल खून बहता है उनकी नसों में जो आपको उपभोक्ता बनाता है और उन्हें सेवा प्रदाता उनके भी बच्चे है और पेट है जो रोज खाना मांगता है
सबके पास दुख है इस समय, सबकी कहानियाँ और मजबूरियां है - सरकारों और व्यवस्थाओं से विश्वास उठ ही गया है हमारा, अब कम से कम मनुष्यता से भरोसा और आस्था ना उठने दें
समझ रहें है ना , याद है ना वसुधैव कुटुम्बकम, हम सब भारतीय है, असतो मा सदगमय और जग सिरमौर बनना है हमें - ये प्यार मुहब्बत, ये गंगा - जमनी तहजीब हमें ही बनाये रखनी है
सिर्फ फल सब्जी और वस्तु देखिये - जो रुपये वो मांग रहें हैं - उन्हें दे दीजिए, फिर देखिए आपका मन कितना ख़ुश होगा - आपकी छत पर तोतों, चिड़ियाओं, सुग्गों, गिलहरियों की आगत बनी रहें और आपकी जमीन पर चींटियों के रेले चलते रहें , धूप आती रहें - ये दुआएँ तो मैं दे ही सकता हूँ
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143 क्विंटल गेहूं बेचें है 1925 / प्रति क्विंटल भाव से कल कागज पर , व्यापारी ने बोला है कि रुपया दे देगा
पिछले साल के भावान्तर के ही भुगतान अभी तक नही मिलें, व्यापारी भाग गए थे पुलिस रिपोर्ट हुई थी, उसकी संपत्ति भी जप्त की थी पर हमें तो कुछ मिला नही आजतक
गेहूं कागजों पर बिके है पर पड़े घर ही है इससे तो खर्च भी नही निकलेगा
एक मित्र कह रहा था, मेरे साथ पढ़ता है यह युवा साथी
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आज सुबह एक परिवार जिसमें 6 सदस्य थे मियाँ - बीबी, तीन बच्चे और एक बुजुर्ग महिला थी जो उस पुरुष की माँ थी - ये लोग मुंबई से सुपौल जा रहे थे पैदल और जेब मे थे मात्र 15 रुपये कुल
जब पूछा कि बैंक खाते में आये हो तो बैंक से निकलवा देते है - हमारे समूह में एक साथी है बैंक के, तो उन्होंने कहा कुछ नही आया है 500 /- आये थे - वो निकाल लिए थे उसी से यहां तक का हो गया
[ हमने कुछ मदद की नगदी से भी , वो बताने की आवश्यकता नही ] पर याद आया कि हममें से अधिकतर लोग जब तक जेब मे 200 से 500 नही होते - बाहर या मॉर्निंग वॉक करने भी नही जाते - यात्रा तो छोड़ दीजिए , हमारे बच्चे नही निकलते 500 के नोट बिना स्कूटी पर
वित्त मंत्री जी को देख रहा हूँ लगातार तीन दिन से धन संपत्ति की सौगात बरसाते हुए तो लगा कि बता दूं कि नेशनल हाईवे पर रिद्धि सिद्धि श्रीलक्ष्मी यंत्र लेकर बैठी है और सब लोग इसी धन कुबेर की प्राप्ति के लिए तप और साधना कर अपने अपने इष्ट को साक्षी मानकर सुदूर देश मे तीर्थाटन पर जा रहें है - एक नया धर्म ग्रंथ लिखा जा रहा है जो इनकी कहानियाँ सुनाएगा
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एक संस्था के लिए हम लोग मिलकर देश भर में स्वैच्छिक संस्थाएं इस समय क्या काम कर रही है आपदा में, उसका दस्तावेजीकरण कर रहें थे पिछले हफ़्ते तक
कई तरह के लोग कई तरह के काम अलग अलग समुदायों के साथ काम कर रहें है और बावजूद इसके उनके कामों को सामाजिक मान्यता नही मिल रही है
इसी दौरान दो नम्बर मिलें, मुम्बई के ही थे -एक वसई का और एक विरार का - दोनो महिलाओं से बात की
दोनो ही एकल महिलाएँ है जिनके क्रमशः दो एवं एक बच्चे है, दोनो यौन कर्मी है, देह व्यापार से जुड़ी है, बड़ी मल्टी में रहती है जहां बहुत कम लोगों को पता है कि वे देह व्यवसाय में संलग्न है, लॉक डाउन के थोड़ा पहले से धँधा बंद है और अब फांकाकशी की नौबत आ गई है
लोग नही आ रहें - जाहिर है नही आएंगे, पर वे अपनी मल्टी के सामने बंट रही राहत सामग्री लेने नही जा सकती, लंगर में खाने नही जा सकती, बेंटेक्स की नकली ज्वेलरी पहनकर जो सामाजिक इमेज बनी है मल्टी में उसे ध्वस्त कैसे कर दें, अपनी ही मल्टी के लोग रोज सामग्री बाँटते है पर उनसे कह भी नही सकती कि उन्हें कुछ दे दें - मालूम पड़ गया किसी को तो अभी फ्लेट खाली करना पड़ेगा तो कहाँ जायेंगी इस समय
घर में कुछ नही है - कोई कार्ड नही और कोई सरकारी योजना का लाभ नही लिया, क्यों पूछने पर बोली - " शरीर था ना भाऊ, तो किसी बात की जरूरत ही नही पड़ी - पर अब कुछ नही बचा, गिराहिक अगले 2- 3 साल ना आऐंगे, तब तक हम तो मर ही जाएंगे और घर लौट जाए पर कहाँ किसके घर - माँ बाप , भाई बहन थे यह भी याद नही अब तो ...."
एक संस्था से पता चला था - पता नही उन्हें किसी ने मदद की या नही पर दूसरी बार फोन करने की हिम्मत नही हुई
समाज के इन उपेक्षितों की चिंता हमारे एजेंडे में है क्या
[ कृपया अनावश्यक पूछताछ ना करें, फोन नम्बर मैंने भी डिलीट कर दिए है - समझ रहें हैं ना ]

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ये है हाजी अफ़ज़ल राणा
मेरे बचपन के साथी,सहपाठी और सेवाभावी व्यक्तित्व
इस कोरोना की विपदा में अपनी जेब से दो तीन लाख रुपये लगाकर देवास में गरीब और मजलूमों को राशन बाँटा है, आप उन्हें कभी भी बस सूचना दे दो कि फलाना जगह पर कोई मुसीबत में है, भूखा है अफ़ज़ल तुरन्त राहत का थैला लेकर पहुंच जाते है , दो तीन बार हज कर आये है, उमरा भी कर लिया कई बार और बाकी दुनिया भी घूम ली है - हमेंशा अपडेट रहने वाले अफ़ज़ल जैसे मित्र होना फक्र की बात है
उनकी बिटिया और मेरी भतीजी गुलनाज़ जिला अस्पताल में डाक्टर है जो इस विपदा में 24x7 मरीजों की सेवा में लगी है
अफ़ज़ल भाई सार्वजनिक जीवन में भी सच्चे हाजी है ना किसी की बुराई ना किसी से दुश्मनी - रोज नेक काम मे लगे रहते है,अब खेती करते है और बजरंग पूरे की शान है जहां मेरा बचपन बीता है और शिशु विहार, राजवाड़े और श्री नाविम स्कूल की सुहानी स्मृतियाँ मेरी धरोहर है
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