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Pagglait and other films, Corona, Khari Khari and other Posts from 25 to 29 March 2021

 तू चुप रहकर जो सहती रही तो क्या ये ज़माना बदला है

तू बोलेगी मुंह खोलेगी तब ही तो ज़माना बदलेगा
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#पगलेट सिर्फ फ़िल्म नही बल्कि कुप्रथाओं, शोषण, मृत्यु पश्चात तेरह दिन के ढोंग, बामणों के खुले पाखंड, गरुड़ पुराण जैसे रस भरे मनोरंजक ग्रँथ का कोरा ज्ञान और बखान, रीति रिवाजों के नाम पर गोरखधंधों की कहानी है, साथ ही निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों में विधवाओं को कैसे शोषित किया जाता है, की भी दास्तान है
यह कहानी युवा विधवा लड़की के पीहर, ससुराल और रिश्तदारों के व्यवहार, स्वार्थ और बीमाधन की आकांक्षा में एक जवान लड़की की शेष बची जिंदगी को अपने लिए मोड़ने की कला बयां करती है पर मजेदार यह है कि लड़की तेरहवीं के दिन पिंजरा तोड़कर मुक्त हो जाती है
शानदार फ़िल्म, धार्मिक रूप से कमज़ोर , दिल - दिमाग़ से पैदल और मूर्ख लोग बिल्कुल ना देखें - या तो समझ नही आयेगी या आधी ही छोड़ देंगे या उनकी आस्थाओं पर चोट पहुंचेगी, आश्चर्य यह हो रहा कि भक्त जनों ने अभी तक कोहराम नही मचाया - क्योकि तेरहवीं में समिधा देते समय संध्या अपनी मुस्लिम सखी को भी कहती है कि वो भी हाथ दें
अभी तक के जीवन में पहली ऐसी फिल्म है जो 13 दिन के तात्कालिक रूप से उपजे श्मशान वैराग्य से मृत्यु की ओर किसी विधवा को उन्मुख करते या होने के बजाय एक युवा भारतीय स्त्री सारे बंधन तोड़कर, यहाँ तक कि मृत पति के पचास लाख भी छोड़कर एक नए उन्मुक्त आकाश में जिंदगी खोजने निकल जाती है "अज्ञान के अँधेरों से ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो" - शायद वेदों में इसीलिये यह कहा गया होगा, "सा विद्या या विमुक्तते" - भी चरितार्थ अंत में दिखता है - क्योंकि हीरोइन अँग्रेजी में एमए थी, अर्थात शिक्षित थी जो आज की महती आवश्यकता है - तभी वो इस समाज के तमाम ढकोसले बाज लोगों के मुंह पर थप्पड़ मारकर दूर निकल जाती है अपना जीवन बनाने , विश्वास करना कठिन होता है कि इसी देश ने सती प्रथा का सदियों तक पालन किया और आजादी के बाद में भी कुछ नामचीन सम्पादकों ने राजस्थान के देवराला में हुए सती कांड की पैरवी की, पर यह फ़िल्म पूरी तरह से कर्मकांडो से लेकर स्त्री स्वतंत्रता की दिशा में Paradigm Shift है और इसलिए भी मैं इस फ़िल्म का मुरीद हो गया हूँ
मंजे हुए कलाकारो के साथ एकदम नवोदित कलाकारों के बेहतरीन अभिनय के साथ कसा हुआ निर्देशन और जीवंत संवादों की फ़िल्म है - जरूर देखें, मैंने भी आज 28 मार्च 21 को नेटफ्लिक्स पर देखी ताकि सनद रहे (कुछ गंवार बाद में लड़ने आते है कि उन्होंने पहले देखी और अलाने फलाने अखबार में लिखा था)
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"As flies to wanton boys, are we to the gods,
They kill us for their sports"
- W Shakespeare
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स्मृतियाँ रह जाती है, समय गुजरते जाता है, समय के साथ हम बड़े होते जाते हैं और अपने आपसे ही छिटकते जाते हैं
एक दिन हम डरना शुरू करते है - बड़े होने के अपने संताप है, गलतियों से डरते है, अस्वीकार्यता से डरते है और सामना करने से डरते हैं
यही वो एकांत के क्षण होते है - जब हम अपने आपको टटोलते है - बार बार कि कहाँ, क्या छूट रहा है, कैसी घड़ी है जब हम अपने ही जीवन में एक गलती या किसी की क्षणिक उत्तेजना को जो प्रेम में कम क्रोध में ज़्यादा पगुराई हुई होती है - से मुठभेड़ करने में हिचक रहें होते है
ऐसे में कोई तस्वीर निकल आती है, मन के अँधियारों को उजास से भर देती है, घँटों निहारते है और धीरे - धीरे उठते है, एक हाथ का पंजा जमीन पर टेककर, दूसरा हाथ बढ़ाते है व्योम में और आसमान को निहारते है - एक अदृश्य हाथ सहारा देता है और फिर से घुटनों के बल खड़े हो जाते है
बस यही, यही हिम्मत होना चाहिये - इतना ही पर्याप्त है, अपेक्षा छोड़कर तटस्थ हो जाओ और इन तस्वीरों में खोजो - वो भय और वो खुशियाँ जिन्हें पाकर जीवन नृत्य से भर उठें
[ तटस्थ ]
( सन 1973 -74 के आसपास इंदौर के सदर बाज़ार स्थित बक्षी कॉलोनी, बहुत पुराने एक घर की तस्वीर; जो मामा का था - किन्ही डोलारे नामक मराठी परिवार के यहाँ किराये से रहता था, इस तस्वीर में हम सब है और आज इसमें से लगभग 30 % लोग सिर्फ इसी तस्वीर में है - कल यही होना है मुझे भी इस तरह की किसी तस्वीर में और कोई फिर लिखेगा यह वृन्द गान )
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निरोप
इल्लीगल
सारे जहाँ से महंगा
ब्रीथ
Hope और हम
अदभुत है ये सब, लम्बी बहस और विश्लेषण की मांग करती है और लिखे जाने की भी, बस टोटा समय का है और अपने फ्रोजन शोल्डर से निज़ात पाने का
बहरहाल, अपने लिये नोट है ये ताकि सनद रहें
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महादेवी वर्मा पर
Pankaj Shukla
जी ने बहुत अच्छा आलेख लिखा है, हमने सातवीं, आठवीं में ही महादेवी जी को पढा था, उनके स्मृति चित्र मानो किसी फ़िल्म से गुजरते थे
यह सब पढ़ते हुए मुझे सोना हिरणी, गिल्लू से लेकर एक निबंध और याद आया "सुई दो रानी - डोरा दो रानी" याद होगा किसी को, यह भी शायद आठवीं के पाठ्यक्रम में था जिसमें वह पहाड़ों की यात्रा कर रही है और भोजन के बदले में स्थानीय लोग यात्रियों से सुई और धागे की मांग करते हैं
एक और संस्मरण का उल्लेख है कि जब निराला उनके घर पहुंचे थे तो रिक्शा का भाड़ा भी उनके पास नहीं था, यह संस्मरण भी उन्होंने कहीं लिखा है कि कैसे वे भर दोपहर में आए और फिर महादेवी ने रिक्शा का भाड़ा चुकाया और उन्हें अपने घर में बिठाकर कैरी का पना बनाकर पिलाया
आज यह सहजपन और धार कुंद हो गई है, वाद और विवाद में बाकी सब हो रहा हिन्दी में बस लेखन नही हो रहा - ऐसे आलेख हमें स्वमूल्यांकन करने की प्रेरणा देते है
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इस्टेट बैंक में अब्बी अब्बी ₹ 63.47 पैसे ब्याज के जमा हुए समझ ही नी आ रिया कि क्या करूँ, भयंकर वाली खुशी हो रई हेगी
निर्मला आंटी और सिरी मोदी जी का भोत बड़ा आभारी हूँ
अब ये मत पूछना कि औसत बेलेंस कित्ता था सालभर में
[ On a serious note, getting this petty amount in recession period is big achievement ]
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लंबे इंतजार के बाद अँग्रेजी अख़बार की फटी पुरानी चिन्दियाँ, फर्जी सबूत, ब्लेक एंड व्हाइट फोटू और कुतर्कों की एक लम्बी पोस्ट के साथ आईटी सेल पुनः देशसेवा के लिए तमाम प्यार, बोसे और मुहब्बत के साथ हाज़िर है
स्वागत नही करोगे मित्रों
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मैं पूछ रिया था कि वो रोहिंग्या कब से प्रवेश करें, अब तो साहब भी उनके हो ही गए हेंगे - थोड़ा जल्दी हो जाता तो असम, बंगाल में भोट भी दे देते भिया, कैलाश भिया और अमित भाई का सपना पूरा हो जाता
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I know the Ocean bleeds into my mind, hope deferred makes the heart sick and can even kill a Man
Can't have, everything you want
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कोरोना का प्रकोप और तांडव फिर सामने है, ज्ञानी लोग सक्रिय है वाट्सएप पर वाट्सएप विवि का ज्ञान प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, कल ही एक अनूठे सन्देश पर नजर पड़ी जो कि विचारणीय था - आपसे शेयर कर रहा हूँ, जवाब हो तो बताएँ
■ अगर मास्क कारगर है तो 6 फिट की दूरी क्यों ?
■ अगर 6 फिट की दूरी कारगर है तो मास्क क्यों ?
■ अगर यह दोनो कारगर है तो लाक डाउन क्यों
◆ अगर यह तीनो कारगर है तो वेक्सिन क्यों
◆ अगर वेक्सिन कारगर है तो फिर वेक्सिन से मौत क्यों, वैक्सीनेशन के बाद भी कोविड पॉजिटिव क्यों, वैक्सीनेशन के बाद मौत होने पर जिम्मेदारी किसकी
◆ अगर इसके बाद भी वैक्सीन सच में कारगर है तो फिर से लाक डाउन , नाइट कर्फ्यू क्यों
◆ यात्रा निषेध है और बाहर वालों को देश में आने नही देना है तो फिर ढाका क्यों
◆ अगर सोशल डेस्टेंसिंग इतना ही जरूरी तो लाखो की राजनीतिक रैली क्यों
◆ किसी भी सज्जन के पास इन सवालों का जवाब हो तो कृपया पोस्ट करें
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