Skip to main content

Mohit Dholi's Convocation 13 March 2021

एक लम्बी दौड़ का सुखद अंत

My Pride My 5 Inspirations
Officially Dr
Mohit Dholi



◆◆◆
1999 के आर्मी स्कूल, महू का एक छोटा सा मासूम बच्चा जो आईआईटी की गुप्ता ट्यूटोरियल ज्वाइन करने पीछे से भागता और हर तीन चार दिन में स्पोर्ट्स टीचर उसे पकड़कर मेरे सामने खड़ा कर देता था कि सर इसे सजा दो, मैं कहता हूँ आप जाइये मैं आज इसे छोडूंगा नही और उनके जाने के बाद मैं कहता "नालायक कैसे जियेगा आगे, मास्टरों को चकमा नही दे सकता - चल भाग अब क्लास के लिए देर ना हो जाये" आखिर चयन होता है रुड़की में उसका
2
रुड़की आईआईटी पहली बार गया देखने कि औलाद सही पढ़ रही कि नही तो 5 और दोस्तों से मिलवाया जिसमे 2 महू के एक इंदौर से एक रीवा और एक शायद भोपाल से था, मुझे 80 जीबी की हार्ड डिस्क खरीदकर दी और उसमें 70 जीबी "नरुत्तो" सीरीज के साथ फ्रेंड्स के सारे सीजन भरकर दे दिए, रुड़की जाने पर इनके बेंजीन ग्रुप के साथ हरिद्वार, ऋषिकेश से लेकर सब जगह घूमना - गंगा में राफ्टिंग से लेकर बाकी सब एडवेंचर करना
3
आईआईटी के बाद महू में डेढ़ वर्ष नौकरी की, मैंने डाँटा कि नही चलेगा, औलाद बना लिया था तो हक था डांटने का - बाहर जाओ, एमएस करो, मुश्किल से तैयार हुआ आखिर टैक्सास गया, एमएस किया, फिर शादी हुई वो भी लम्बी कहानी है शादी के लिए लड़की खोजने से सब तैयारियां - उफ़्फ़, कैसे मैं सगाई में कठ्ठीवाड़ा और भाबरा से भागकर पहुंचा था BSF की मेस में - उफ़्फ़ फिर शादी और नातिन प्यारी सी तनुश्री
4
बीच - बीच में आना हुआ अमेरिका से, फोन पर हर हफ्ते बात होती है, घँटों बात करते है हम दोनों, जीवन की घर परिवार की नौकरी की, खुशियों और दुखों की - जीवन में तो मैं अकेला हूँ - प्यारे से तीन भतीजे है , दो समझदार बहुएँ और प्यारा सा शरविल है पर इसी के साथ मेरे दो बेटे भी है- जिनमे मोहित बड़ा है छोटा भी अपूर्व जो अमेरिका में है बहु के साथ - दोनो बच्चे इतना ध्यान रखते है कि कह नही सकता
5
आज मोहित को ठीक 930 बजे पीएचडी की उपाधि से नवाज़ा जा रहा है और मेरे लिए जीवन के गर्वीले क्षण है एक लम्बा संघर्ष किया बच्चे ने और TAMU, Texas से Petrolium Chemistry में पीएचडी की उपाधि मिल रही है
कुछ लिखते ही नही बन रहा बस इंतज़ार कर रहा हूँ कि कार्यक्रम शुरू हो और उसे देखूँ डिग्री लेते हुए
6
आशीषों से नवाजिये , ये बच्चे बड़े संघर्ष कर रहें है जीवन में घर के भतीजे हो मुम्बई में या मेरे दोनो बेटे अमेरिका में - इनकी समस्याएं और संघर्ष हमसे बड़े है, ये मोहित की कुछ पुरानी तस्वीरें है Convocation की कल सुबह लगाऊंगा
■ समाहार
सबको पुरानी कहानी मालूम ही है कि कैसे एक राक्षस के प्राण एक तोते में बसते थे पर इस राक्षस के प्राण पाँच तोतों में बसते है - दो मुम्बई, एक देवास और दो अमेरिका में है और ये ही मेरी ताकत है , अब इन्हीं बच्चों के लिए जीना है - बाकी सब बेकार है


-----------
आप भी देखिये इस लिंक पर

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही