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Drisht Kavi and other Posts of 18 July 2022

कोई व्यक्ति किसी अँधे व्यक्ति को काट-मार सकता है - क्योंकि वह देख नहीं सकता कि उसके साथ क्या होने वाला है
इसी प्रकार मिट्टी के बने जीव (मिट्टी में रहने वाले अतिसूक्ष्म कीड़े) काटे जाते हैं, उन पर प्रहार होता है और नित उनकी हत्या होती है, वे अपने भावों (दर्द) को दिखला नहीं सकते
यह संसार उनसे भरा हुआ है जो आहत हैं, दयनीय स्थिति में हैं - जिनको समझ पाना कठिन है, वे विवेकशून्य हैं
***
मित्रों मेरे नए कहानी सँग्रह का नाम Vineeta Parmar ने रखा है -
"समझ की पीठ में फफोले"
पेंग्युईन से अँग्रेजी और ऑक्सफ़ोर्ड से हिंदी में आ रहा है यह सँग्रह, एडवांस बुकिंग चालू है, अब रोज़ इसका प्रचार करूँगा
यह नई वाली हिंदी की पड़दादी यानि महाहिंदी का पहला सँग्रह होगा और इससे कहानी को नई नवीं दिशा मिलेगी और यह त्रिभुज का चतुर्थ कोण निकालकर ही रहेगी
NCERT से लेकर समस्त राज्यों में हिंदी के पाठ्यक्रम का यह हिस्सा रहेगा और अब सभी ख्यात आलोचकों से अनुरोध है कि इसकी समीक्षा छपने के पहले कर दें पिलीज़

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हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही