Skip to main content

Post of 23 July 2022 on Board Results

वाजिब सवाल
बल्कि परीक्षा और मूल्यांकन पर भी अब बात होनी चाहिये, अभी लॉ पढ़ रहा हूँ तो गम्भीरता से लगता है कि मूल्यांकन की पद्धति ही गड़बड़ है खासकरके अब लम्बा लम्बा लेखन और अंक या % के कोई मायने नही है, पीएचडी की थीसिस नही पढ़ता कोई तो लाखों पृष्ठ कौन पढ़ेगा - इस सबमें कौशल और दक्षता का क्या महत्व है
HC Dave ने न्यूनतम अधिगम स्तर (MLL) की बात तब 1992 - 94 की थी - जब हम मध्य प्रदेश में सरकार के साथ पहली से आठवीं तक का पाठ्यक्रम बना रहे थे, पाठ्य पुस्तकें लिख रहे थे तो न्यूनतम अधिगम स्तर की बहुत बात होती थी, दवे साहब की एक पतली सी किताब थी जिसमें उन्होंने कई सारे मानकीकृत पैमाने बना रखे थे परंतु नीपा, सीआईई और तत्कालीन एनसीआरटी में उनके बहुत विरोधी थे मध्यप्रदेश में भी कुछ कॉमरेड तत्कालीन राज्य शैक्षिक अनुसंधान परिषद के साथ जुड़े थे जो बातें तो बहुत करते थे शैक्षिक नवाचार की, परंतु समझ के स्तर पर गोबर गणेश थे, इनमे से अधिकांश आजकल अज़ीम प्रेम विवि में रायता बाँट रहे है - वहाँ बंधुआ मजदूर बनकर अपनी दुकानों का रुपया वसूल रहें है उस कारपोरेट से सगरे कॉमरेडस ; ये सब राजीव गांधी मिशन की अमिता शर्मा और आर गोपाल कृष्णन के चहेते थे जो सिर्फ बकर करते थे, इन्होंने बहुत विरोध किया दवे समिति के MLL का, परंतु आज लग रहा कि वो सही थे
शिक्षा की जकड़न को अब कम करने की ज़रूरत है
फिनलैंड सहित यूरोप के अनेक देशों में विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम सार्वजनिक रूप से घोषित नहीं किए जाते हैं। सहपाठियों को भी एक दूसरे के अंक नहीं पता होते हैं। भारत के कुछ निजी विश्वविद्यालयों में भी इसकी शुरुआत हो चुकी है। इसके चलते किसी विद्यार्थी में अंकों को लेकर न श्रेष्ठताबोध पैदा होता है और न हीनताबोध।
क्या आपको परीक्षा परिणाम की सार्वजनिक घोषणा जरूरी लगती है और क्यों?

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही