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#Immaculate on Amazon Prime
एक नन की कहानी - कैसे ईसाई धर्म में एक युवा स्त्री को शोषित किया जाता है और धर्म की ध्वजा को फहराने के लिए दमित किया जाता है
एक वर्ष एक कॉन्वेंट में पढ़ाया है, सामाजिक क्षेत्र में काम किया है तो "सिस्टर्स" और उनके जीवन, घुटन, पीड़ा और जीवन में खत्म कर दी गई महत्वकांक्षाओं से बहुत बारीकी से वाकिफ़ हूँ, फादर, ब्रदर, बिशप, मदर सुपीरियर, आदि की इस पूरी श्रृंखला यानी हेरार्की जो इस खेल में शामिल है - से परिचित हूँ
बहुत वर्ष पहले [ 2004 ] छग के रायगढ़ जिले में था तो 4 सिस्टर्स की आत्महत्या की खबर पढ़ी थी - जो गर्भवती हो गई थी, तो वहाँ की मदर से पूछा था तो उन्होंने कहा था " when he knocks the door at 12 in the night, we being the Sisters, can't say No Sandip, the Brother, the Father, the Bishop are incarnation of Jesus", इंदुप्रभा का उदाहरण सबको याद ही होगा, मथुरा - वृंदावन में नवविधवाओं के शोषण की कहानियों से हम वाकिफ़ है ही - मीरा नायर की फ़िल्म वाटर याद ही होगी ना, इस्लाम में पाशविकता की हद तक की कहानियाँ रोज़ सुनते ही है हम , आर्मी स्कूल में जब प्राचार्य था मेरे यहाँ एक पारसी महिला पीजीटी थी - जो अपनी कहानी कभी कहती तो हम पारसी intellect पर शक करते थे, इन्हें घर चलाने की जिम्मेदारी ही नही थी - बल्कि सुबह 715 पर आने के पहले घर के सारे काम करके आना होते थे, वरना पिटाई तक की नौबत आ जाती थी अक़्सर
स्त्रियाँ हर धर्म में भोग्या है और समर्पण, त्याग के नाम पर जो शोषण की परम्परा है वह हर जगह समान है - अगले पाँच हजार बरस तक स्त्रियों की मुक्ति हिंसा से संभव नही यह मेरा मानना है और सबसे ज़्यादा शोषण प्रगतिशील और विकासवाद में यकीन करने वाले करते है यह सोलह आना सच है
देखिये, जरूर देखिये, दिमाग़ के जाले खुलेंगे
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#Meiyazhagan नेटफ्लिक्स पर है
पहचान के संकट और स्मृति दोष के बीच अतीत के चलचित्र, संस्कृति, परम्परा, रिश्ते और अपनत्व सहजता के संजाल में फंसे जीवन को जितनी खूबसूरती से उकेरा है वह अदभुत है
यह फ़िल्म हर हाल में देखी जानी ही चाहिए
[ बहुत दिनों बाद समय मिला और लगता है लगातार सफ़र और थकान से चिकनगुनिया हो गया है, बस नेटफ्लिक्स और अमेजॉन के सहारे बेदर्द शहर में अपने को व्यस्त रख रहा हूँ}
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ठाणे में घोरबंदर रोड के विवियाना मॉल में दिख गया लाइवा आज सुबू सुबू, अपने एमपी का ही था, सो पूछ लिया
पूछा कि -"तुम यहाँ कैसे आज गुरू, क्या चक्कर है, घर की दीवाली छोड़ मुम्बई में"
बोला - "दीवाली पर सिंघम - 3 देखने आया हूँ भाई जी, कविता लिखने की प्रेरणा मिलती है"
मित्रों, ठाणे से दादर जा रहा हूँ लोकल की भीड़ में छुपकर, सिंघम - 3 पीछे पड़ गया है
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Let me breath
कल सारी रात जो धुआँ धूल और धसपस हवा में रही उससे लगता नही कि हम एक शिक्षित और दीक्षित राष्ट्र है
जो रौनक और बाज़ार का दस्तूर रहा पिछले हफ़्ते इधर उधर उससे लगता नही कि हम गरीब मुल्क है और अब हम जैसे मध्यमवर्गीय लोगों को तमाम तरह के टैक्स से मुक्ति दिलाकर अस्सी करोड़ हरामखोरों को जो मुफ्त राशन बांटा जा रहा है वह बन्द होना चाहिये और फ्री बीज़ पर भी प्रतिबंध लगना चाहिये - गरीब ढूँढने पर एक करोड़ का इनाम - गरीबी अब राजनीति, कानूनविदों, सामाजिक संस्थाओं के भेष में बैठे पूंजीपतियों और मीडिया के लिए कोरी कपोल कल्पना है इस देश में और गरीबी हटाते हटाते इंदिरा गांधी से लेकर राजीव तक तो मर गए पर नरेंद्र मोदी अमर हो गए जिन्होंने पटाखों और प्रदूषण में देश को हजार ट्रिलियन की राजधानी बना दिया इस पाप में केजरीवाल से लेकर महाराष्ट्र तक ठाकरे शरद पवार तक शामिल है
बड़े महानगरों से लेकर छोटे छोटे गांवों में ना कानून का डर हे ना संविधान के प्रति आस्था और सुप्रीम कोर्ट जैसे संस्थान और इसके निर्णयों को हम घण्टा मानते है, दिल्ली में भास्कर के सम्पादक मुकेश माथुर ने पटाखे जलाते हुए वीडियो जारी किया कि पटाखे जलाओ और दीवाली मनाओ
पूरी रात कमरों से लेकर हवाओं में जहर है और हम चिंतित होना तो दूर पूरी नीचता से इसे और बर्बाद करने में लगे है
बाजार ने त्योहारों की सहजता, सांस्कृतिक विरासत, संस्कृति और परम्परा छीन ली है और सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि यह सब धर्म की ध्वजा के तले हो रहा है और सबसे बड़ी संस्था के फर्जी ठेकेदारों और पंडितों को समझ नही आ रहा क्योंकि ये सब भी बिक गए है दलालों के हाथों
आईये शुभकामनाएँ दें एक दूसरे को
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एक छोटी सी अनियंत्रित और गुस्से से भरी प्रतिक्रिया, सन्देश, पत्र, संवाद, और भाव भंगिमा आपके सारे किये धरे पर पानी फेर देती है, हम भावावेश में आकर कुछ कह देते है, लिख देते हैं, बोल देते है या बातचीत करते समय अपने आप पर नियंत्रण खोकर व्यक्त कर देते है बग़ैर यह जाने की इसके परिणाम क्या होंगे, एक ओर हम तटस्थ और निर्लिप्त होने की बात करके ज्ञान के संदेशों से इलेक्ट्रानिक जगत को भर देते हैं दूसरी और अपने पर ही नियंत्रण नही रख पाते, साधौ देखो जग बौराना
अपने जीवन का पुराना बहीखाता बन्द करके आज जब नया बहीखाता खोल रहा हूँ तो बहुत सारे रिश्ते, दोस्त, सहकर्मी और वो सब लोग याद आ रहें है जिनसे जीवन बना, जुड़ा, घटा, गुणित हुआ और फल हमेशा मीठा मिला, कई बार कड़वे और विषाक्त बीज निकलें या रिश्तों की फ़सल में दाने ही नही आये, इस सबसे अफ़सोस तो नही है - और ना ही खुशी है, पर एक मुस्कुराहट जरूर होठों पर तैर गई है अभी जब सब यह विश्लेषण कर रहा हूँ
कई बार रिश्ते, यारियां, सहूलियतें और मौकें बोझ बन जाते हैं और हमें उद्दाम वेग से बहती नदी, बन्द अँधेरे कुएँ, धधकते ज्वालामुखी या महज़ गर्जना करने वाले समुद्र में ये सब फेंककर मुक्त हो जाना पड़ता है और सिर्फ़ वायवीय या अत्यधिक औपचारिकता नुमा वाले सम्बन्ध बना लेना पड़ता है - जो हमारे शेष बचे जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हैं या अज्ञान के अँधेरों से ज्ञान के उजालों की ओर ले जाते है, हालाँकि बहुत देर हो चुकी होती है पर बहकते कदम अंत में मयखानों से घर की ओर लौटने लगे तो यह भी शुभ ही हैं
बहुत मन से तय किया था कि आठ दिन नही आऊँगा पर इस बीच बहुत कुछ ऐसा घटा है - पिछले माह, पखवाड़े और हफ़्ते में कि मन दुखी है, अपनी मूर्खता और अज्ञानता या अत्यधिक भावुक होकर सबको अपना समझने से ये सब झेलना पड़ा जबकि कैनवास के पृष्ठ पर सब कुछ स्पष्ट रूप से अंकित और टँकीत था, मैं ही पढ़ नही पाया, स्वार्थ, यश, कीर्ति, धन, हवस, भूख और पुरस्कारों की लहालोट, आख़िर बहुत सोचा - विचारा, जूझता रहा अपने आप से, वीडियो देखें, पढ़ा और समझा, बात की कुछ भुक्त भोगियों से और अब कुछ कड़े निर्णय लेकर आज 4 दिन बाद आया और यह आना कुछ जुड़ना है और कुछ तोड़ना - जीवन की बही में अपना अस्तित्व बहता हुआ ही बेहतर है, कबीर कहते है बहते हुए पानी में ही डाल से बिछड़ा पत्ता सुरक्षित और ताज़ा रहता है, ठहरे हुए पानी में सब कुछ जल्दी सड़ जाता है
जो चार दिनों में सीखा वो इतना सा था कि - अपने जीवन के बही खातों को पलटिये, राईट ऑफ कीजिये कुछ, कुछ का depreciation value पता करिए और फिर नए पृष्ठ से नया अध्याय लिखने की शुरूवात कीजिये , थोड़ा साँसों पर ध्यान दीजिये और जीवन जी लीजिये - तनाव, अवसाद, मन- मुटाव और हड़बड़ी से कभी किसी का भला नही हुआ है
एक ही जीवन है, अगली दिवाली पर उजालों की उम्मीद रखना शातिरी है - कोई आज की काली अमावस भरी रात का सबब बता दें बस सब साफ़ हो जायेगा धुले हुए शीशे की तरह
आप सबको - मित्रों, परिजनों और सहकर्मियों को शुभ दिवाली और ढेर सारा प्यार, दुआएँ कि अभी तक विश्वास, भरोसे, आस्था, सहजता और स्नेहसिक्त बन्धन में तीन कम साठ निकल गए - अब अपना रास्ता चुना है और इस पर अबोध, निर्भीक भाव से चलता रहूँ - यह आशीष दें, स्नेह और अनुराग बना रहे
पुनः शुभ दिवाली
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जीवन की हर यात्रा एक सज़ा है, हर अनुभव एक गहन पीड़ा, हर मुलाकात एक स्मृति दंश, हर मिलने वाली हँसी दुखों का सदानीरा की तरह बहने वाला सोता, और हर बार लौट - लौटकर घर आना एक अभिशाप
अभिशाप इसलिये कि हम घर जाकर सुखों के असीम सागर में क्षणिक रूप से डूब जायेंगे और फिर से किसी भोर में या एक धुंध भरी शाम में किसी दूर देश से या परदेश से मान मनुव्वल का प्यार भरा न्यौता, एक मनुहार, एक आमंत्रण हमें पुनः सड़कों पर यायावरी करने ले आयेगा - संतप्त मन से हम फिर निकलेंगें लौट आने के लिये
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किताब तेरस
दीया जलाकर कॉमरेड और फर्जी लेखक कूड़ा माल खपा रहें हैं, मत फँसिये इनके इमोशनल ट्रेप में, ये अब रोज़ किसी मरे - खपे और उज्जड और चूके हुए लेखक से पिछली सदी में छपी अपनी किताब की प्रायोजित समीक्षा लगायेंगे और इसके लिये चिरौरी कर किसी भी भूत - चुड़ैल टाईप बूढ़े - बूढ़ी के आगे पीछे रोज़ घूमेंगे, मेल करेंगे और फोन भी कि - "भले मत लिखों बस किताब के साथ फोटू भेज दो - लिख मैं लूँगा आपकी तऱफ से"
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गज्जब का चूतियापा है और सारे नये - पुराने लेखक प्रकाशक के घटिया खेला में शामिल होकर इस धत कर्म में हिस्सा बनकर फोटो चैंप रहें है, अभी एक और आएगा दस रुपये में एक, सौ में बारह और पाँच हजार में 7001 कचरे की गाड़ी, ससुरा हर माह सौ शीर्षक छापेगा और एन पुस्तक मैले के पहले कबाड़ भिजवायेगा फ्री में - ठेले पर रखकर खुद भी आ सकता है कोई भरोसा नही इसका नाम तक फर्जी है, बाकी तो छोड़ ही दो
साले पुस्तक मैले में 35 - 40% की छूट नही देते, यूँ नही देते कभी बीच में, हरामखोर डिलीवरी चार्ज तक वसूल लेते है और दिवाली के अवसर पर कचरा साफ़ कर आख़िरी खून की बूंद भी बेचना चाहते है और मुनाफ़ा कमा लेना चाहते है
खबरदार जो किसी ने तेरहवीं की बूंदी और रायता इनबॉक्स में आकर फ़ैलाया तो चिन्दियाँ उड़ा दूँगा
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