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Posts from 15 to 20 Oct 2020, lge jiya pe thes, drisht kavi, khari khari key learnings of 54

" ये आपने क्या अपडेट किया गलत सलत अँग्रेजी में, मास्टरी छोड़ ही दी आख़िर जहाँ कभी गए भी नही " - मैंने पूछा
"Started New Job at Self Poems as Marketing Officer - South Asia"
"अँग्रेजी ही चलती है, समझ आ रहा है ना बस, कम्युनिकेशन का यही मतलब होता है और अब मेरी कविताओं की कोई मार्केटिंग नही करता तो क्या करूँ फिर, और मास्टरी क्यों छोड़ूंगा, हर माह साठ सत्तर हजार बोनस मिल रहा है 65 की उम्र तक " - लाइवा कवि के उदगार थे
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कल एक तथाकथित अखबार से फोन आया कि "क्या आप हमारे जिला प्रतिनिधि बनेंगे"
मैंने कहा - "जी बिल्कुल, तनख्वाह क्या होगी और गाड़ी, पेट्रोल, नेट सुविधा और लैपटॉप - मोबाइल का खर्च , दफ्तर आदि का क्या"
जवाब मिला - "ये क्या बकवास कर रहें है, आपको हमें कम से कम एक लाख माह देना होगा - 5 विधानसभा, 3 सांसद, छह सात सौ पंचायतें, नगर निगम, इतना बड़ा औद्योगिक क्षेत्र, टेकड़ी जैसा धार्मिक स्थान - एक लाख तो न्यूनतम है - तीज त्योहारों पर यह पाँच लाख तक जायेगा"
"जी, न्यूज का फोकस क्या रहेगा" - मेरा सवाल था
"उसकी चिन्ता आप ना करें, वो हम अलग अलग पोर्टल, वाट्सएप समूहों और एजेंसी से ले लेंगे, आपका बड़ा और जिम्मेदारी वाला काम है - हम रोज़ बताएंगे कि आज आप सुबह से रात दस - ग्यारह बजे तक किससे मिलेंगे और क्या बात करेंगे- समझ रहें है ना, आपकी इमेज अच्छी है आसपास"
"एक मंडी क्यों नही खोल लेते आप लोग" - मैंने कहा
" मतलब " -वो बोलें
"श्याम बेनेगल निर्देशित फ़िल्म मंडी की बात कर रहा हूँ जिसमें शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल ने काम किया था, वो वाली फिल्म देखी है या नही" - फोन रख दिया मैंने
पर नजरों के सामने वो दलाल घूम गए जो सरकारी नौकरी करते हुए अखबारों के ब्यूरो थे, तृतीय या चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी रहते हुए जमीन, जायदाद, खेती, मकान, गाड़ी - घोड़े खड़े कर लिए और जीवन भर नैतिकता के पाठ पढ़ाते रहें, साहित्य के शिखरों पर बनें रहें , फेलोशिप जुगाड़ते रहें और बेहद लिजलिजे रहे निज जीवन में
सुना है कुछ गिरगिटों ने अब नैतिक रूप से आत्महत्या भी कर ली है दैहिक रूप से अति सक्रिय है कमीने
यह हक़ीक़त है, पत्रकारिता सीख रहें और पढ़ रहे युवा मित्रों ये अगर नही सीख सकते तो छोड़ दो विवि और बाप का रुपया बर्बाद मत करो, बढ़ई या मिस्त्री बन जाओ ₹ 500 - 600 कुशल कारीगर की मजदूरी तो मिलेगी कम से कम रोज़
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54 की उम्र में मैं खुद से कहना चाहता हूँ ....
◆ कोई भी अच्छा कर्म करने के लिए मुहूरत या उम्र देखना जरूरी नहीं
◆ मुझे अपने संबंधों में और खुलापन लाना चाहिए - परिवार के साथ, पड़ोसियों से , दोस्तों से और उससे भी - जिससे पहली ही बार मिल रहे हों भले
◆ मुझे हर जरूरी अवसर पर सॉरी और थैंक्यू कहने से नहीं चूकना चाहिए
◆ मुझें विज्ञापनों के चकाचौंध में पड़ कर अपना सुख चैन नहीं खोना चाहिए
◆ मैं जिससे भी बात करूं, मुझे अपना पूरा ध्यान उसकी बात सुनने में लगाना चाहिए - क्या पता ये हमारी आखिरी मुलाक़ात हो
◆ मेरी बात उनके मतलब की जरूर है जो मुझसे छोटे हैं
◆ जो मुझसे छोटे या बड़े हैं वे कुछ नयी अच्छी बात बतायेंगे तो उसे जरूर मानूंगा
[ उम्र मेरी है पर मूल पोस्ट अग्रज
Deonath Dwivedi
जी की है ]
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दो किशोरों को NEET में 720 यानि शत प्रतिशत अंक मिलें - बधाई
मेरा सवाल यह है कि NEET के पेपर बनाने वाले अध्यापक या तो विशुद्ध मूर्ख है या इस परिणाम में घपला हुआ है या जबरदस्त तगड़ी सेटिंग है
ऐसे कैसे हो सकता है कि इतने वृहद पाठ्यक्रम वाले विषयों पर दो किशोर इतने परिपक्व हो कि उन्हें सम्पूर्ण ज्ञान हो गया - यह निश्चित रूप से बहुत बड़ा षडयंत्र और घपला है और पूरी परीक्षा संदेह के घेरे में है
यह व्यापमं से बड़ा घपला है और इससे उन लाखों किशोरावस्था के छात्रों के भविष्य पर सवाल उठता है जो मेहनत करते है - इसकी जाँच होना चाहिये
मेरा दावा है कि कोटा, इलाहाबाद, दिल्ली या कही और पढ़ाने वाले मास्टर 100 % अंक नही ला सकते, अपने विषय मे शायद सम्भव पर तीनों - चारो विषयों में एक साथ असम्भव है - यह बहुत बड़ा फर्जीवाड़ा है
कृपया इसे समुदाय, जाति या जेंडर और राज्यों के अगड़े पिछड़ेपन से जोड़कर अपनी कुंठित मानसिकता का प्रदर्शन ना करें - मैं शिक्षा से 15 साल तक जुड़ा रहा हूँ और IX - XII तक के किशोरों के संज्ञानात्मक विकास और बुद्धिलब्धि से वाकिफ़ हूँ साथ ही परीक्षा प्रणाली से भी
यदि ये दोनों वास्तव में इतने शार्प और मेघावी है तो इन्हें दो साल में ही MBBS करवा कर अगले एक वर्ष में MS, MD की डिग्री दिलवा दो - डॉक्टर्स की कमी से जूझ रहे देश को दो योग्य डॉक्टर्स जल्दी मिल जाएंगे
Please remember I am not denying their toil nor intelligence but raising a serious question on NEET, it's exam pattern and proces, should I expect same 100% marks pattern in UPSC in upcoming years

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मप्र में किस तरीके से आईएएस गैर आईएएस के साथ जानवरों से बदतर व्यवहार करता है - इसका साक्षात उदाहरण श्रीमान क है जो मप्र राज्य प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी है और सीईओ जिला पंचायत से लेकर संभागीय स्तर पर उपायुक्त के पद तक रहकर अपनी सेवाएं दे चुके है - उन्ही की भाषा में यह दर्दनाक बयान है पर शासन के कानों पर जूं नही रेंग रही है, इनका सवर्ण होना भी एक कारण है इस शोषण का
" गत 7 माह से भयानक षड्यंत्रों का शिकार मैं और परिवार हो गया श्रीमान घ ने झूठी शिकायतों पर ट्रांसफर कराया जो आपके सहयोग से इंदौर ट्रेनिंग सेंटर हो गया उसके 15 दिन बाद पुरानी फलाने जी की फाइलें निकालकर 50 विभागीय जांच के प्रस्ताव भेजकर आरोप पत्र भोपाल से जारी कराए 11 दिन सर्विस ब्रेक dies non की, शासकीय आवास से दो माह में बाजार दर से वसूली निकाली, आवास खाली करके उज्जैन में किराये के मकान में चार माह से रहता हूं , सब नष्ट हो गया - कॅरियर, बच्चे, वाइफ, मां - सब भयानक त्रस्त हैं अत्यधिक परेशानी में हूँ सर आपका आशीर्वाद बना रहे मेरी मेहनत समर्पण आपने देखी है सर मैं बिल्कुल निर्दोष हूँ ये dcr श्रीमान झ ज का षड्यंत्र रहा है"
श्रीमान क वास्तव मे कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी है और एक बड़ी और बहुत ख्यात पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते है परंतु जिस तरह से उन्हें एक साल से हैदस में रखकर परेशान किया जा रहा है वह बेहद दुखदायी है और इस वजह से उनकी डीपीसी भी रुकी है , उनके बाद के जूनियर आईएएस हो गए जबकि इनके साथ लगातार अन्याय हो रहा है, एक सीधे सरल और विशुद्ध ईमानदार अधिकारी को संगठित रूप से विशेष प्रजाति के अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किया जाना कितना वीभत्स और पीड़ादायक है यह दर्शाता है कि मप्र में शासन कितना सु है और किसका कब्ज़ा है
[ नाम नही बता रहा जानबूझकर अन्यथा उस भले आदमी को और प्रताड़ित किया जायेगा ]
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एक साँवली सी लड़की जिसने दुनिया बदली
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स्मिता पाटिल ने मराठी और हिंदी सिनेमा की दिशा और दशा बदली - निशांत से लेकर अंत तक वे एकदम अलग तरह के रोल करती रही और जब गई तो एक ऐसी चादर अपने काम पर फैलाकर गई कि आजतक कोई भी अभिनेत्री वह उठाने की हिम्मत नही कर पायेगी
समानांतर या कमर्शियल दोनो जगह बेजोड़ और लाजवाब
उनकी बहन डाक्टर अनिता देशमुख लंबे समय तक अमेरिका में रही और जब मुम्बई आ गई तो कुछ समाज सेवा का काम आरम्भ किया था, टाटा ट्रस्ट के साथ एक महती परियोजना में मैं भी उस कोर टीम का हिस्सा था " चाय चर्चा और चेंज " ComMutiny " तब अनिता के साथ खूब बातचीत की, स्मिता पाटिल को लेकर बहुत कुछ जाना था - अनिता के दफ्तर और मुम्बई स्थित घर पर लम्बी लम्बी गप्प और स्मिता के बारे में जानना बेहद समृद्ध अनुभव था
जीवन में प्रत्यक्ष ना मिल पाने का हमेंशा अफ़सोस रहेगा
स्मृति को नमन
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लागे जिया को ठेस
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प्रोत्साहन देना हमारा काम है पर यह तुम्हारी योग्यता निश्चित नही करता और ना ही तुम नोबल पुरस्कार के हक़दार हो जाते हो युवा मित्रों, तुम सबके लिए लिख रहा हूँ दुखी होकर जिसमे मेरे अपने बच्चे भी शामिल है, मेरे आसपास के और बेहद करीबी भी
बहुत जल्दी यश और कीर्ति पताकाएं फहराने की जिद में कितने किशोरों, युवाओं और अधेड़ों को देख रहा हूँ, बहुत दुखद है उनका लाईक, कमेंट, शेयर करने और अपनी बात थोपने की माया में पड़ जाना
ये लोग यह भूल रहे हैं कि हमारी उम्र के लोग कमा खा लिए और नौकरी कर रहे हैं , या रिटायर्ड है, शालीन और बुद्धिजीवी दिखने वाली महिलाओं के पति बड़े अधिकारी है या उनके पास बाप दादो की अकूत सम्पत्ति है या आय का कोई नियमित स्रोत है ; क्या आपकी माँ या बहन या भाभी इतनी ही तल्लीनता से सोशल मीडिया पर सक्रिय है या रोज़ सज संवरकर लाइव में आ रही है ; इन युवाओं और किशोरों को समझ नहीं आ रहा है उनके लिए अभी पूरा जीवन पड़ा है - देश के हालात क्या है - आजीविका की समस्या किस कदर बढ़ गई है, वे सिर्फ इस फेसबुक की माया में उलझ कर रह गए हैं और अपने आपको ज्यादा लाइक और कमेंट पाने वाले व्यक्ति के साथ तुलना करके उसी तरह का महान बनने की कोशिश करते हैं, बहुत ही घटिया किस्म के रोल मॉडल लेकर ये लोग यहां पर रायता फैलाने का काम करते हैं और फ्रस्ट्रेट होते रहते हैं
बहुत अफसोसजनक है - नाम नही लेना चाहता पर बहुत नज़दीक से इस वायवीय दुनिया और संजाल में गले - गले तक फँसे लोगों को देख रहा हूँ लगातार बात करके समझ रहा हूँ , एक भीड़ है जो लगातार इसमें धँसते जा रही है
कुछ लोग वाकई अच्छा लिखते है , शोध करते है, भाषा को अलग तरह से वापरकर नए प्रयोग करते है पर इन्हें तुरन्त हजार - पाँच सौ पाठक के रूप में बंधुआ चाहिए - जो इनकी हर पोस्ट को लाइक करें, कमेंट करें, बहस करें, तर्क - वितर्क या कुतर्क करें
इस हद तक ये बीमार हो गये है कि अपने से चार गुना उम्र के लोगों से तुलना करने लगें है, अपने ही हितैषियों को गाली देने लगे हैं , व्यंग्य कसने लगें है, ताने देने लगे हैं, और अपने निज सम्बन्धों को भी इसी बिसात पर तौलने लगें है
इतने आत्ममुग्ध हो गए है कि हर कमेंट पर 3, 4 बार जवाब देकर अपनी पोस्ट पर गिनती गिन रहें है, अफसोस ही नही - दुख भी होता है कि इन्हें देख - देखकर हमारे वरिष्ठ लोग या मेरे समकालीन भी इनसे डाह रखकर सूची से हटाना, ब्लॉक करना या वाल पर जा - जाकर निंदा पुराण में लग जाना जैसी ओछी गतिविधियों में संलग्न हैं
माफ़ करिये पर कुछ महिलाओं की भी इसमें बड़ी भूमिका है जो दिनभर यही करती है, यही रहती है, पुरुषों के साथ - साथ और ये तथाकथित आइकॉन बनने की चाह रखने वाले इन महिलाओं को अपनी वाल पर पाकर उपकृत ही नही होते, बल्कि ठिठोली करके महान बनने के नित नए प्रयोग करते है - कभी अपना नंग धड़ंग चित्र डालकर, कभी कॉपी पेस्ट चैंपकर , कभी कुछ वाहियात सी दलित / महिला / बच्चों या ज्वलंत मुद्दे की भद्दी सी पोस्ट डालकर
कोई दिक्कतें नही है - ना मुझे, ना किसी को होना चाहिये पर इस सबमें जो मेघावी किशोर और युवा है - वे व्यर्थ की बहस में खोकर नकली बुद्धिजीवी और घटिया इंसान बनने की प्रक्रिया में बेहद फ्रस्ट्रेट होते जा रहें है इसका दुख है - ये लोग आशा है, उम्मीदों का दूसरा नाम है और देश को इनकी जरूरत है क्योंकि ये विलक्षण है इसलिए चिंता ज़्यादा है
युवा कवि हो, पत्रकार, बीए, एमए करने वाले या पीएचडी करने वाले - अपने कैरियर पर ध्यान देने के बजाय - ये बस अशिष्ट होते जा रहें है इस मायावी दुनिया में , अपराध बोध और अवसाद से भरे ये लोग नही जानते कि कुछ भयानक स्वयम्भू महान लोगों की ब्लॉक लिस्ट डेढ़ लाख तक है और बावजूद इसके वे सड़कछाप प्रतिस्पर्धा में अभी भी शामिल है
इसे निजी आक्षेप ना मानें और ना ही कुतर्क करें - यह लिखते समय अधकचरे किताबी ज्ञान से परिपूर्ण, कॉपी पेस्ट मारने वाले, अरुंधति रॉय की किताब से ज्यों का त्यों उठाकर अपने नाम से लिखने वाले चोर उच्चके सहित बहुत से चेहरे है जो अपनी प्रोफाइल के साथ पेज, समूह और लाइव के ठेकेदार बने हुए है, कई समूहों से निकला ही इसलिये हूँ कि बड़े और गम्भीर लोग नीच से भी निम्न है और एडमिन बनकर तानाशाह और आतताईयों के समान बर्ताव करते है
मेरे वरिष्ठ, समकालीन या संग साथ के लोग खतम हो रहें है या निरापद है - एकदम फालतू है, घूम फिरकर संस्मरण या निंदा पुराण लिखने लायक बचें है या घर बैठे आयोजनों या पुरानी स्मृतियों को कुरेदकर लिखने के अलावा कुछ है ही नही पर तुम सबके सामने जीवन पड़ा है लम्बा और विकराल जीवन जिससे लड़ते लड़ते थक जाओगे युवा मित्रों
बहरहाल, जिसे बुरा लगें वो दो रोटी ज़्यादा खा लें अभी रात के खाने में

" कैसे हो मुक्तिबोध " फोन पर बोलें निराला
" प्रणाम निराला जी, जीवित हूँ कोरोना काल में भी" बापड़ा हिंदी का कवि बोला जिसकी सिर्फ इन कमिंग ही चालू थी - जियो के ज़माने में भी
" मैं तुम्हें मैराथन के लिए नामांकित कर रहा था - सोचा सूचना दे दूँ, टैग हटाना मत, आठ दिन तक कविताएँ लगाते रहना, फोटो के साथ दुर्ग के घर और श्योपुर के मुहल्ले वाले मकान के संग " - निराला बोले
" काहे शर्मिंदा कर रहें, एक किताब तो छपी नही, बीड़ी के पैसे नही - पूरा संसार अंधेरे में है और जिस चौराहे पर पैर रखता हूँ - मौत का नया द्वार खुलता है - आप तो रहने ही दो, क्यों भद पिटवा रहे हो, इज्जत नीलाम कर रहें हो जी - हिंदी का कवि होने से बेहतर है मर जाना , कमबख्त हिंदी वाले हिन्दी नही सीख सकें पर अँग्रेजी के घटिया अनुवाद लगा रहे है गलीज़ कविताओं के " - मुक्तिबोध पूछ रहे थे
इसके बाद ही जुमला आया कि "निराला [ पार्टनर ] तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है "

चिन्मयानंद पर आरोप लगाने वाली लड़की कोर्ट में अपने बयान से पलटी
हाथरस में भी उस लड़की की माँ की तबियत खराब हुई सीबीआई के सामने और भाई भी संदेह के घेरे में
कानूनी नजरिये से समझिए कि बलात्कार का अर्थ क्या है अब - प्रेम, रुपया, लालच, प्रक्रिया, महत्वकाँक्षाये, दलित, सवर्ण, मुआवजा, बदला, डर, ख़ौफ़, पुलिस, कोर्ट, मेडिकल जाँच, तथ्य और सबसे महत्वपूर्ण मीडिया के खेल बनाम ब्लैकमेलिंग, यहाँ कानून की बात है - जेंडर और समानता शोषण की बात ना करें
खुलने दीजिये जरा - सब सामने आयेगा

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हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही