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Posts of June I week 2019 - Aligarh Rape and other burning issues


राज्य और हमारा कानून नपुंसक है - हमें व्यवस्था सम्हालना होगी
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मेहरबानी करके बलात्कार, हत्या या किसी भी अपराध में धर्म, जाति या सम्प्रदाय खोजना बन्द कीजिये, यह राज्य और दलगत राजनीति आखिर में हमारा ही नुकसान करेगी, सबके आईटी सेल है और समाज में हिंसा फैलाना इनका धर्म है
सत्ता और सरकार के अपने अपने स्वार्थ है और जो सरकारें अपने बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा, पोषण, भ्रूण हत्या, सही समय पर विवाह या बलात्कार से रक्षा नही कर सकती वह सरकार निकम्मी और घोर लापरवाह है वह कोई भी हो - फिलिस्तीन, अमेरिका, सीरिया, पाकिस्तान, नेपाल या भारत जैसे संस्कारी और धार्मिक देश की बात हो - सरकारें सिर्फ़ चुनाव जीतने और आर्थिक लाभ लेने के लिए ही लोकतंत्र में बनाई जाती है बाकी के समय ये निकम्मे गैर जिम्मेदार और हद दर्जे तक हरामखोरी में व्यस्त रहते है इसलिए इन पर विश्वास करना छोड़िए और हमारी न्यायपालिका और कार्यपालिका इनकी चाटुकार और गुलाम है इसलिये इन गिरगिटों पर भी भरोसा मत कीजिये जिनकी प्रतिबद्धता संदिग्ध है
अलीगढ़ हो, कठुआ या कल उज्जैन में हुई 5 साल की बच्ची की रेप के बाद नृशंस हत्या , उज्जैन में तो जगत स्वामी राजा महांकाल मन्दिर के ठीक पास यह घटना घटित हुई, हत्यारे बलात्कारी ने बच्ची का रेप कर उसके साथ नृशंस कृत्य किये और पवित्र क्षिप्रा में फेंक दिया शव
मुझे लगता है ;-
◆ हमें अब राज्य और कानून व्यवस्था पर भरोसे बैठने के बजाय सोशल पुलिसिंग या देखरेख करना होगी इसके लिए
◆ बेटियों को बचपन से तैयार करें कई लोग और सामग्री मौजूद है गुड टच बेड टच , वेनिडो, कराटे जुडो , चिली स्प्रे आदि जैसे ट्रेनिंग माध्यम से
◆ लड़कों को शिक्षा दें , जीवन कौशल शिक्षा की बहुत जरूरत है
◆ युवाओं को कानून और जेंडर समानता की ट्रेनिंग दें
◆ घर परिवार में इन मुद्दों पर खुलकर बात करें
◆ सेक्स, यौनिकता, हवस और जघन्यता की बातें खुलकर करें
◆ पब्लिक ट्रांसपोर्ट, आम रास्तों और सूनी गलियों में निगाहें मुस्तैद रखें
◆ बुजुर्ग लोग मोहल्लों , चौराहों और सार्वजनिक जगहों पर सतर्कता से निगरानी करें खासकरके बेटियों तरुणियों के स्कूल - नौकरी पर आने जाने के समय
◆ महिला पुलिस की संख्या बढ़ाई जाए
◆ नगरीय निकाय की संस्थाओं को सीसीटीवी कैमरों के लिए बजट में प्रावधान किया जाये
◆ परिवारों में जब छोटी बच्चियां, किशोरियां हो तो घर में आने जाने वाले परिचितों को ऐसा मौका ना दें कि वे अकेले में इनसे मिलने की कोशिश करें या बाहर ले जाये गोली बिस्किट या चॉकलेट दिलाने
◆ खेत खलिहानों में सतत निगरानी करें और गांव देहात के सूने स्थानों, खलिहान, खन्तियों पर कड़ी निगरानी रखें
◆ स्कूल कॉलेज कोचिंग में किशोरों, युवाओं के लिए ट्रेनिंग, संवेदनाशील बनाने के ट्रेनिंग हो
◆ सोशल मीडिया पर अपने घर की बच्चियों, महिलाओं के फोटो डालना बन्द करें ( कुछ असहमत हो सकते है पर लोग आजकल फोटोशॉप कर उनका बेजा इस्तेमाल करते है और अपने मोबाइल में सेव करके रखते है, शादी ब्याह, मेहंदी, नृत्य आदि हम सब पोस्ट कर देते है बगैर यह जाने कि दुनिया सिर्फ हमारे 300 से 5000 वर्चुअल दोस्तों तक सीमित नही है )
कई उपाय, सुझाव आप भी जोड़ सकते है
एक बार समानुभूति से विचार करके देखिए कि यदि आपकी बेटी, नाती, पोती होती तो
और आखिर में पुनः कि इन मामलों को धर्म सम्प्रदाय और जाति से ना जोड़े यह सिर्फ हवस, वहशीपन, कामुकता और महिला को सिर्फ और सिर्फ भोग्या समझ कर इस्तेमाल करने के आशय वाली बात और मानसिकता है
हम सब विजिलेंट है और महिला को बराबरी का मानते है, ये देवी - वेवी जैसी फालतू और घटिया बातें नही मानते , जब तक हम एक समता मुलक समाज की बात नही करेंगे तब तक कोई हल नही निकलेगा
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कार धोने वाले
कुत्तों को नहलाने वाले
बरामदा,पोर्च और सड़क धोने वाले
होली पर पानी बहाने वाले
बाइक, स्कूटी, सायकिल धोने वाले
बगीचे में घँटों पानी बहाने वाले 
छत पर पानी ढोलने वाले

जब पानी बचाने का संदेश देते है, लेख लिखकर नाम एवं रुपया कमाते है, ज्ञान बांटते है और यश की भूख में मारे मारे फिरते है, तो लगता है एक 12 इंच का चाकू लेकर सीधे सीने में घुसेड़ दूं नालायको के
हरामखोर कही के , साले
एक ज्ञान दे रहा था आज तो सोचा यही लिखूँ
भाषागत गुस्ताखी के लिए मुआफी
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किसे कहें? क्या कहें? 
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देवास जिले के बागली क्षेत्र के जंगलों में 100 से अधिक बंदर मर गए भोजन पानी के अभाव में, यह तो एक झांकी है बाकी क्या हाल है नही पता, कल ही पर्यावरण दिवस गुजरा है

वन विभाग ने छुपाने के लिए उन्हें जंगल मे जला दिया
मानवता इसे कहते है
आज नईदुनिया की न्यूज़ है
शर्मनाक है
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मैं जानता हूँ कि छह भाई बहनों में तुम अकेले कमा रहे हो गैरेज पर और तुम्हारे वालिद को गुजरे बरसों हो गए , एक अंधेरी गली में है मकान तुम्हारा - एक बड़ा कमरा जिस पर टप्पर लगें है और संडास बाथरूम भी नही है उधर एकदम बाहर है दूर बहुत दूर , घर में एक पुराना सा सोफ़ा और टूटा पलंग जिसपर कोई नही सोता - सब नीचे सोते है
गैरेज पर काम नही है कही भी, मुश्किल से ऑटो पार्ट्स की दुकान से जुड़े इस गैरेज पर तीन चार बाइक आती है - एक चौथाई मजदूरी मिलती है तुम्हे और बाकी ऑटो पार्ट्स वाला रख लेता है और तुम अल्लाह का शुक्र मनाते हो कि उस सिंधी दुकान वाले ने रखा है तुम्हे अभी तक
उस दिन जब तुमने ईद मिलने घर बुलाया तो मैंने कहा था - आऊंगा, कल फोन भी आया था तुम्हारा , पर हिम्मत नही हुई मेरी - क्या ईद मनी होगी, सच बताना कल दोनो समय सबने पेट भर खाना खाया
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वह बूढ़ी हो चली है , बरसों से काम कर रही है यहां - रमजान के पाक माह में सारे घरों में बर्तन, झाड़ू पोछा करके मेरे यहाँ तीन चार बार आ जाती पानी पीकर फिर काम पर निकल जाती
एक दिन पूछ लिया तो बोली - तीन जवान बेटे है, दो लड़कियाँ, बेवा हूँ - सब बच्चे घर है - काम ही नही - खेतों में , मजदूरी पर, बाजार में दुकानों पर काम करने जाते थे बच्चे , पर अब काम ही नही , रोजे कर रहें है - मुझे काम करना जरूरी है और रोजा करूंगी तो उन्हें कौन खिलायेगा, इस साल तो मस्जिद से 5 किलो गेहूं और दाल - चावल मिलते थे उस लिस्ट में भी नाम नही था तो कुछ नही मिला - क्या करूँ बोलो
उसके घर भी ईद मिलने नही गया - कैसे जाता, एक दिन पहले कुछ नगद दे दिया था कि बच्चों के लिए कुछ ले लेना
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एक अमीर मित्र है , फेक्ट्री थी देवास में बर्बाद हो गया सब कुछ - अब झूठी शान बची है, एक दिन भाभी ने फोन किया था कि आपके दोस्त को सम्हालिये - अल्लाह ना करें कुछ कर बैठे , इन दिनों बहुत परेशान है कर्जदार रोज आते है तगादा करने, बैंक का लोन अलग है ... कैसे जाता ईद मनाने उसके घर
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एक मित्र कॉलेज में पढ़ाते है - बेटी अलीगढ़ में पढ़ रही है, बेटा इंदौर में, घर मे मां बाप, दो जवान बहनें ; जनाब को संविदा में हर तीन चार महीने में 1500 रूपये रोज के हिसाब से तनख्वाह मिलती है - अगर बजट आ गया तो - कल तो हाल यह था कि पिछले चार माह से तनख्वाह ही नही मिली
मैंने कल फोन किया तो बोलें 'काहे की ईद अपनी तो जब 4 - 6 माह में गलती से पेमेंट आती है ईद मन जाती है ' , 15 साल से संविदा पर जीवन है - जैसे बरसों से कोई मरीज वेंटिलेटर पर पड़ा हो - ना जीवित , ना मरा हुआ - इतनी पढ़ाई करके भी पोस्ट डॉक्टरेट करके भी मजदूर से गए बीते हाल है
क्या ईद मिलने जाने की हिम्मत होती मेरी, जब रोज उसे जीवन से भिड़ते हुए देखता हूँ
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कुल मिलाकर बात यह है कि ईद की जो खुशफहमियाँ , ईद मुबारक के स्लोगन के पीछे की दास्तानें है - भयावह है, कैसे लोग त्योहार मना रहें हैं, कैसे वो सिवई , दूध और मेवे जुगाड़ रहें है और आपको दस्तरखान में परोस रहें हैं - एक बार झांकिये खाने से पहले
एक बार अपनी होली - दीवाली देख लीजिए कितने मित्रों, रिश्तेदारों को आप गिफ्ट दे पा रहें है, दावतें दे पा रहें है और अपने मन में भी किसी त्योहार पर ख़ुश हो पा रहें है रोज की चिंताओं को छोड़कर और तसल्ली से हंस भी पा रहें हैं
फिर भी सबकी हिम्मत को सलाम और जज्बों को सौ सौ सलाम कि इसके बाद भी हम कह पाते है
◆ ईद मुबारक
◆ हैप्पी दिवाली
◆ मेरी क्रिसमस 
◆ हैप्पी होली

मैं मुतमईन हूँ कि कोई सुवह तो आएगी
कल कही नही गया , ना अब कभी जाऊँगा फोन , वाट्सएप, फेसबुक पर ही दुआएँ दूँगा
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चुनाव, ध्रुवीकरण और पोस्ट ट्रुथ
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हाल ही में देवास के सोनकच्छ तहसील के एक गांव पीपलरावां में बारात निकालने को लेकर दो समुदायों में लड़ाई हो गई, दुर्भाग्य से एक दलित युवक की मौके पर ही मृत्यु हो गई थी, जिसकी मैं निंदा करता हूँ , गांव में चार छह दिन तनाव रहा, बाज़ार नही खुले, ईद के पहले प्रशासन की समझाइश से बाज़ार खुले , राजनैतिक रोटियां सेंकने नेता, अफसर और यहां तक कि दिग्विजय सिंह जी भी पहुंचे वहाँ, पर यह देखिये इस घटना का असर तुरन्त चुनावों के बाद कैसे हमारी गंगा जमनी तहज़ीब पर पड़ा है
एक युवा मुस्लिम मित्र ने बताया कि इस घटना और चुनाव के बाद हिन्दू - मुस्लिम ध्रुवीकरण कितना हो गया है कि ईद पर एक समुदाय विशेष के लोग गेहूं और इनाम लेने जो बरसों से घरों में आ रहें थे - मेलजोल की भावना में हक से ले जाते थे और मुस्लिम परिवार भी मीठी सिवईयां खिलाकर उन्हें गेहूं दे देते थे वो अबकी बार इस मीठी ईद पर लगभग नही आये - गेहूं मांगने और दुआ देने जो कि बहुत ही अजीब था
यह कैसे जानते हो कि जो मांगने आते है वे उस समुदाय के है - मेरा प्रश्न था उस युवा मित्र से जो बहुत संवेदनशील, होशियार और पढ़ाकू है
उसका जवाब था - गांव में सबको अब जातियों से ही जानते है, एक एक घर को नाम और जाति से जानते है, इस समुदाय से हमें खेती में , दैनिक जीवन मे कई प्रकार के काम पड़ते है - वे हमेंशा मदद करते है और यह ईद का गेहूं नई फसल आने के बाद एक तरह से उस मजदूरी का इनाम भी होता है और हमारे यहां फसल में बारहवां हिस्सा भी देने का रिवाज़ है, इस तरह भाई चारे की खुशबू सालभर बनी रहती है
उसकी चिंता थी कि यह अच्छी भी बात है कि इन लोगों में अब मांगना और मांगकर खाना खत्म हो रहा है, परन्तु अबकी ना आने के पीछे यह भावना नही थी - मूल कारण यह है कि वे अब वृहद हिन्दू समाज के हिस्से है और मुस्लिमों का गेहूं नही लेंगे, हो सकता है किसी ने उन्हें समझाईश दी हो , मित्र बेहद दुखी था क्योंकि उसके साथ कई मित्र बचपन से साथ पढ़े है और इस समुदाय के और मुस्लिम समाज के लोग भेदभाव नही मानते और जाति जैसी कुप्रथा भी नही पर इस व्यवहार से मेरे युवा मुस्लिम मित्र का हृदय छलनी था - बहुत दुखी होकर बोला मेरे बचपन के साथी ईद मिलने , गले लगने भही नही आये, उसकी दादी जो 100 के पार है - दुखी थी कि ये हवाओं में जहर कौन घोल रहा है
मेरे सामने सवालों के फेहरिस्त थी परंतु जवाब नही थे, बस एक ही सवाल था और उसकी दादी का चेहरा घूम जाता था जो अभी कुछ दिन पूर्व मिली थी जब मैं गया था - मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोली थी - तूने बहुत दुख झेले, अल्ला बड़ा कारसाज़ है वह सबका हिसाब करेगा और तुझे नेकी के फल देगा - हवाओं में जहर कौन घोल रहा है उस दादी का सवाल क्या आपको भी परेशान करेगा
सभी को जीवन, राजनीति, संस्कृति, मूल्य, तहज़ीब, संस्कार, धर्म और वोट के बीच फर्क करके देखना होगा, मुस्लिम समुदाय को भी कट्टरपन छोड़ना होगा और हिंदुओं को भी यह समझना होगा कि सबको यही रहना है और मिलजुलकर ही रहना है सबसे , दलितों को अब अपने पुराने आचार विचार छोड़कर नए युवाओं के साथ चलना होगा जो शिक्षित हुए है और अब इल्म की रोशनी से लबरेज है
छोटी जगहों पर मंदिर मस्जिद मुख्य मार्गों या गांव की प्रमुख जगहों पर बनें हुए है , वर्षभर उत्सव, शादी ब्याह और कीर्तन भजन होते रहते है -डीजे बजाना , बैंड का होना बहुत कॉमन है और यह दिखावा, रोज़गार और समृद्धि का भी द्योतक है फैशन के इस दौर में - कब तक और किस किसको कानफोड़ू संगीत और भौंडे अश्लील नृत्यों से रोकते रहेंगे , बेहतर है कि नए जमाने मे अब या तो रिवाज़ बदले जाए या सहिष्णु बना जाए या फिर ध्वनि प्रदूषण के तहत सब बंद किया जाये
सही दुश्मन की पहचान करना होगी - मुफलिसी , तंगहाली हर जगह है और यह सब करके हम अपने ही लोगों का, उनकी आजीविका का नुकसान कर रहें हैं और कुल मिलाकर यह देश के लिए ठीक नही है, सत्ताएं आती जाती रहती है निज़ाम तो हम फिर बदल देंगे पर हमारे बीच का विश्वास टूट गया तो फिर कैसे जिएंगे
[ विशेष समुदाय यानी चर्मकार समाज की बात हो रही है और दलित समाज के भी कुछ लोग इसमें शामिल हैं ]
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अरविंद केजरीवाल का निर्णय और आधी आबादी
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दिल्ली में मेरी कुछ मित्र है जो पेज थ्री टाईप औरतें है , कुछ सहकर्मी और कुछ प्राध्यापक मित्र है जो 24 x 7 लिपी पुती दिखेंगी पर जब बात करो तो असली समझ सामने आती है
अपनी 16 फीट की कार, एक ड्राइवर को लेकर दिनभर पार्टियां, डांस करती रहती है, साड़ियों और ज्वेलरी में लदी फदी ये महिला मित्र जब यहां तस्वीरें पोस्ट करती है तो दिल करता है कि एक बार उनसे पूछूं कि ये जो रोज़ - रोज़ तुम नखरे और पेट्रोल में कम से कम दो हजार अकेली ही उड़ा देती हो, हर पार्टी के लिए सात से दस हजार की साड़ी पहनकर जाती हो , दारू और खाने में जो खर्च करती हो - वो किस मानसिकता की निशानी है, कल और आज जब उनसे इस घोषणा के बाद बात की तो जवाब था कि "अब झुग्गी वाली सड़ी औरतें मेट्रो को गुटखा , मछलियों, गंदगी और सब्जियों से भर देंगी" .... "कौन जाएं इनके संग मेट्रो में और बस में हमारे खानदान में कोई नही चढ़ा कभी "....
स्वतंत्र ने एकदम सही लिखा है और इस बात से भी सहमत हूँ कि ट्रांसपोर्ट में जिन निम्न या मध्यम वर्गीय औरतों का रुपया जा रहा था उसमें जो बचत होगी उससे घर में जीवन का स्तर सुधरेगा, जो बच्चियां पढ़ रही है उनके माँ बाप पर भार कम पड़ेगा, बाहर से दिल्ली नौकरी या पढ़ने आई बेटियों और महिलाओं को बचत या कही और खर्च करने की सुविधा मिलेगी
प्रशंसनीय निर्णय है और पेज थ्री वाली औरतों की तो गाड़ियां छीनकर जब्त कर लेना चाहिए - जो दिनभर ठुमके लगाते हुए बियर और सुट्टा में पेट्रोल बर्बाद कर रही है
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का मेट्रो रेल और बस में महिलाओं को फ्री यात्रा की इजाज़त देने का यह कदम एक लोक कल्याणकारी राज्य की दृष्टि से बहुत अहम है। इसे इस तरह से देखना चाहिए कि अगर आपकी पत्नी, माँ, बेटी, बहन और भाभी नौकरी कर रही हैं और उनका आने-जाने पर 3000 रुपये खर्च हो रहा है तो ये बचत एक बड़ी बचत सिद्ध होगी। महंगाई के दौर में ये राहत भी बहुत है।
एक बात और कि कई महिलाएं घरों में इसलिए भी कैद रहती हैं क्योंकि उन्हें उनके पिता, भाई, पति और बेटे खर्च नहीं देते हैं। कइयों को रेगुलर कॉलेज की जगह पत्राचार से पढ़ाई करनी पड़ती है, क्योंकि परिवार उनपर यह आनेजाने का खर्च नहीं करना चाहता या वहन करने में असमर्थ होते हैं। अब वे स्कूल और कॉलेज जा सकेंगी।
अगर इस कदम को सुरक्षा की दृष्टि से भी देखें तो अति महत्वपूर्ण है। रात को 8, 9, 10 बजे प्राइवेट सेक्टर में महिलाएं काम करके निकलती हैं तो एक स्टेशन (प्रारंभिक बिंदु) से दूसरे स्टेशन (अंतिम बिंदु) तक वो मेट्रो में सुरक्षित यात्रा कर सकती हैं।
दूसरा रात में अगर किसी कारण से आपका कोई पीछा कर रहा है तो बेझिझक महिलाएं मेट्रो में घुसकर सुरक्षित महसूस कर सकती है।
कुछ लोगों की इस तरह की पोस्ट भी देखी जिसमें उन्होंने दिल्ली सरकार के घाटे या कर्जे पर केजरीवाल को कोसा है। इस तरह तो देश में कोई भी सब्सिडी नहीं देनी चाहिए। तेल, गैस सिलिंडर , शिक्षा आदि पर भी सब्सिडी खत्म कर देनी चाहिए, क्योंकि इनका भी बोझ राजकोष और अन्ततः हमारे यानी टैक्स देने वालों के कंधों पर ही पड़ता है।
फेसबुक पर इसे महिलाओं को बेवजह की मदद करने का रोना रोते दिख रहे हैं। उन्हें देखकर समझ आता हैं कि ये लोग सम्भ्रांतपने और मर्दवाद के कॉकटेल के हैंगओवर से ग्रस्त हैं और आजन्म रहेंगे।
और आखिरी बात :
लाभान्वित होने वाली महिलाओं में आप किसे देखते हैं ...सम्भ्रांत महिलाओं को या 5000 - 10000 कमाने वाली निम्नमध्यवर्गीय महिलाओं को।
Copy paste संदीप नाईक जी की वाल से।

Swatantra Mishra

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आज सुबह से मेरी लात खुजा री हेगी
कोई भैंन है क्या इदर कूँ - सुनो, 3- 4 पेले लात मारूवा सड़क पे - रोने की आवाज़ मस्त आना चईये - है नी
फिर माफी लिखूंगा यही पे
फिर राखी बंधवाकर फोटू चेंप दूँगा यही पर
जित्ते लाईक और कमेंट आएँगे उतने नगद दे दूँगा बैन हून को
एक लाईक का एक रुपया और एक कमेंट का पांच रुपया
बोलो भैंजी होन तैयार हो - ये भई इंतज़ार कर रियाँ है फोन का
लगाओरे जल्दी जल्दी - भोत लम्बी लाईन लगेगी
साला अब्बी ईच राखी मनाना पड़ेगी अगस्त के बदले
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हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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