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डबल्यू लिविंगस्टन लारनेड का पत्र 11 June 2019

जो अभिभावक है वे पढ़ें और जो नही है वे जरूर पढ़ें , मुझे रुला दिया सुबह सुबह इस पत्र ने
यह पत्र शिक्षक को लिखे अब्राहम लिंकन के पत्र से लाख गुना बेहतर, मानवीय मूल्यों से ओत प्रोत है, अपनी गलतियां सुधारूँगा और रास्ते में जो उजाला आया है इस बहाने कुछ बदलूंगा अपने को
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अपने बेटे को बुरी तरह डांटने के बाद गहरी आत्मग्लानि से भरे हुए डबल्यू लिविंगस्टन लारनेड यह पत्र हर पिता को पढ़ना चाहिए-
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सुनो बेटे ! मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं । तुम गहरी नींद में सो रहे हो । तुम्हारा नन्हा सा हाथ तुम्हारे नाजुक गाल के नीचे दबा है और तुम्हारे पसीना-पसीना ललाट पर घुंघराले बाल बिखरे हुए हैं । मैं तुम्हारे कमरे में चुपके से दाखिल हुआ हूं , अकेला । अभी कुछ मिनट पहले जब मैं लाइब्रेरी में अखबार पढ़ रहा था , तो मुझे बहुत पश्चाताप हुआ । इसीलिए तो आधी रात को मैं तुम्हारे पास खड़ा हूं किसी अपराधी की तरह ।
जिन बातों के बारे में मैं सोच रहा था , वे ये है बेटे ।
मैं आज तुम पर बहुत नाराज हुआ । जब तुम स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे थे , तब मैंने तुम्हें खूब डांटा ... तुमने टोवेल के बजाए पर्दे से हाथ पोंछ लिए थे । तुम्हारे जूते गंदे थे इस बात पर भी मैंने तुम्हें कोसा । तुमने फर्श पर इधर-उधर चीजें फेंक रखी थी .. इस पर मैंने तुम्हें भला बुरा कहा । नाश्ता करते वक्त भी मैं तुम्हारी एक के बाद एक गलतियां निकालता रहा । तुमने डाइनिंग टेबल पर खाना बिखरा दिया था खाते समय तुम्हारे मुंह से चपड़ चपड़ की आवाज़ आ रही थी । मेज पर तुमने कोहनियां भी टिका रखी थी । तुमने ब्रेड पर बहुत सारा मक्खन भी चुपड़ लिया था । यही नहीं जब मैं ऑफिस जा रहा था और तुम खेलने जा रहे थे और तुमने मुड़कर हाथ हिलाकर बाय-बाय डैडी कहा था , तब भी मैंने भृकुटी तान कर टोका था । अपना कॉलर ठीक करो ।
शाम को भी मैंने यही सब किया । ऑफिस से लौटकर मैंने देखा कि तुम दोस्तों के साथ मिट्टी में खेल रहे थे , तुम्हारे कपड़े गंदे थे , तुम्हारे मोजों में छेद हो गए थे । मैं तुम्हें पकड़कर ले गया और तुम्हारे दोस्तों के सामने तुम्हें अपमानित किया । मोजे महंगे हैं -- जब तुम्हें खरीदने पड़ेंगे तब तुम्हें इनकी कीमत समझ में आएगी । जरा सोचो तो सही , एक पिता अपने बेटे का इस से ज्यादा दिल किस तरह दुखा सकता है ?
क्या तुम्हें याद है जब मैं लाइब्रेरी में पढ़ रहा था तब तुम रात को मेरे कमरे में आए थे । किसी सहमे हुए मृगछौने की तरह । तुम्हारी आंखें बता रही थीं कि तुम्हें कितनी चोट पहुंची है । और मैंने अखबार के ऊपर से देखते हुए पढ़ने में बाधा डालने के लिए तुम्हें झिड़क दिया था । " कभी तो चैन से रहने दिया करो अब क्या बात है ? " और तुम दरवाजे पर ही ठिठक गए थे । तुमने कुछ नहीं कहा था बस भागकर मेरे गले में अपनी बाहें डाल कर मुझे चूमा था और गुड नाइट कहकर चले गए थे । तुम्हारी नन्ही बाहों की जकड़न बता रही थी कि तुम्हारे दिल में ईश्वर ने प्रेम का ऐसा फूल खिलाया है जो इतनी उपेक्षा के बाद भी नहीं मुरझाया । और फिर तुम सीढ़ियों पर खटखट करके चढ़ गए ।
तो बेटे , इस घटना के कुछ ही देर बाद मेरे हाथों से अखबार छूट गया और मुझे बहुत ग्लानि हुई । यह क्या होता जा रहा है मुझे ? गलतियां ढूंढने की डांटने -डपटने की आदत सी पड़ती जा रही है मुझे । अपने बच्चे के बचपन का मैं यह पुरस्कार दे रहा हूं ? ऐसा नहीं है बेटे कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता , पर मैं एक बच्चे से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें लगा बैठा था । मैं तुम्हारे व्यवहार को अपनी उम्र के तराजू पर तौल रहा था ।
तुम इतने प्यारे हो , इतने अच्छे और सच्चे । तुम्हारा नन्हा सा दिल इतना बड़ा है जैसे चौड़ी पहाड़ियों के पीछे से उगती सुबह । तुम्हारा बड़प्पन इसी बात से नजर आता है कि दिनभर डांटते रहने वाले पापा को भी तुम रात को गुड नाईट किस देने आए । आज की रात और कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है , बेटे । मैं अंधेरे में तुम्हारे सिरहाने आया हूं और मैं यहां पर घुटने टिकाए बैठा हूं , शर्मिंदा ।
यह एक कमजोर पश्चाताप है । मैं जानता हूं कि अगर मैं तुम्हें जगा कर यह सब कहूंगा , तो शायद तुम नहीं समझ पाओगे । पर कल से मैं सचमुच तुम्हारा प्यारा पापा बन कर दिखाऊंगा । मैं तुम्हारे साथ खेलूंगा , तुम्हारी मजेदार बातें मन लगाकर सुनूंगा , तुम्हारे साथ खुलकर हँसूँगा और तुम्हारी तकलीफों को बांटूंगा । आगे से जब भी मैं तुम्हें डांटने के लिए मुंह खोलूंगा , तो इससे पहले अपनी जीभ को अपने दांतों में दबा लूंगा ।मैं बार-बार किसी मंत्र की तरह यह कहना सीखूंगा , " वह तो अभी बच्चा है .... छोटा सा बच्चा ।"
मुझे अफसोस है कि मैंने तुम्हें बच्चा नहीं ,बड़ा मान लिया था ।परंतु आज जब मैं तुम्हें गुड़ी मुड़ी और थका-थका पलंग पर सोया देख रहा हूं बेटे , तो मुझे एहसास होता है तुम अभी बच्चे ही तो हो । कल तक तुम अपनी मां की बाहों में थे उसके कंधे पर सिर रखे । मैंने तुमसे कितनी ज्यादा उम्मीदें की थी कितनी ज्यादा...
- डबल्यू लिविंगस्टन लारनेड

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