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रोशनी उगाने का एक जतन और......."

श्री विभूति दत्त झा म् प्र के जानेमाने वकील और सामाजिक कार्यकर्ता है और पिछले तीस बरसो से वे लोगों के मुकदमे ब्लाक से लेकर हाईकोर्ट तक लड़ रहे है. इन दिनों वे मंडला में रहकर बिछिया ब्लाक के गाँव में अलख जगाने का कार्य कर रहे है. आज उन्होंने एक राज्य स्तरीय कार्य शाला में अपने अनुभव सुनाते हुए कहा कि जब वे लगातात कोर्ट कचहरी से तंग आकर आलीराजपुर जिले के कठ्ठीवाडा ब्लाक में गये तो मेरी एक मित्र साधना हेर्विग ने उन्हें दो किताबें पढाने को बहुत पतली किताबें थी एक " द हंगर प्रोजेक्ट" द्वारा प्रकाशित पुस्तिका जिसे संदीप नाईक ने लिखा था ग्राम सभा एवं दूसरी "डिबेट" संस्था द्वारा प्रकाशित पैसा एक्ट पर किताब, इन दोनों किताबों ने उनका नजरिया ही बदल दिया और फ़िर विभूति जी अपने डेढ़ घंटे के उदबोधन में कठ्ठीवाडा में किये आदिवासियों की लड़ाई, कालान्तर में मंडला के बिछिया ब्लाक के छोटे से गाँव हेमलपुरा पंचायत से शुरू हुई लड़ाई और आज लगभग पुरे इलाके में एक आंदोलन बन चुके विभूति जी एक बड़ी हस्ती है. उन्होंने जिस तरह से छः बरस पुरानी लिखी किताब का जिक्र और फ़िर सारी मानसिकता बदलने का वर्णन किया उसे सुनकर झुरझुरी आ गई. लगा कि लिखे शब्दों की कोई कीमत होती है और किस बात का असर कहाँ जाकर कैसे होता है यह हममे से कोई नहीं बयाँ कर सकता पर आज अपने होने की सार्थकता और फ़िर से अपने लिखे पर प्यार हो आया. सहज, सरल और एकदम ठेठ देसी अंदाज में और धोती में रहने वाले विभूति दा को देखकर कहना मुश्किल है कि ये वही शख्स है जिसकी तूती कोर्ट में बोलती है या थी, अब वे आदिवासी लोक भाषाओं में पारंगत है. एक मजेदार बात उन्होंने कही कि जब वे आदिवासियों की हकों के लड़ाई लड़ते है तो सबसे सब भाषाओं में बात करते है कलेक्टर से अंगरेजी में बात करते है तो तहसीलदार, एस डी एम कौतुक से उन्हें देखते है और फ़िर बाद में नक्सलवादी कह देते है... वाह विभूति दा आज आपकी बातों ने एक बार फ़िर से दम भर दिया और कुछ करने का जज्बा याद दिला दिया कि "एक जतन और अभी एक जतन और, रोशनी उगाने का एक जतन और......."
Herwig Streubel, Leena Kanhere, Amitabh Singh

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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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