हम सबका दुख बहुत बड़ा है, हम सबके पास दुखों के अनगिनत पहाड़ है - पर एक दुख जो सबसे बड़ा है वह है - किसी पिता का जो अपने बेटे को अति गंभीर स्थिति में देख रहा है, असहाय है और इस इकलौते बेटे के दो छोटे बच्चों को लेकर बैठा दुनियाभर में सबसे दुआओं की अपेक्षा कर रहा है, उसके पास सब है ज्ञान, संसाधन और संपर्क - परन्तु एक सीमा के बाद सब असहाय हो जाता है, सब ओर से नैराश्य और वेदना ही मिलती है, यह अवसाद इतना गहरा है कि इससे उबरने के लिए एक क्या - सात जन्म भी कम पड़ेंगे, आठ माह भी नहीं हुई मौत को घर से विदा किए हुए जो इन बच्चों की जननी को सदा के लिए संग ले गई थी - पर मौत को ना जाने क्यों इस घर से लगाव हो रहा है और वह आते - जाते झांक रही है, मौत का यह झांकना बेहद डरावना है और यह भीतर तक किसी को भी तोड़ सकता है - हम तो खैर कमजोर माटी के पुतले ही है
हम सबके पास अपने - अपने सामान की गठरियाँ है, एक लंबी यात्रा है, एक भीड़ है जिसके बीच हम फंसे हुए है, सांसों का सफर कैसे हो रहा नहीं मालूम, सबके सिर पर सुख - दुख के साथ रिश्तों, नातों और स्मृतियों का भारी बोझ है , ना ठीक से खड़े रहने की जगह है - ना सरकने की, ना मुस्का पा रहें है - ना रो पा रहे है और अपनी - अपनी गठरी का बोझ सम्हाल पा रहे है, हाथों से आंसू पोछते हुए अपनी गठरी को संभालकर इसी मर्त्य लोक में यात्रा पूरी करनी है, व्योम में देवता खड़े अधीर है और अपनी ही बनाई इस कलाकृति को संकट में देखकर परीक्षा ले रहें है, पर मानव का धैर्य और साहस बहुत बड़ा है, यद्यपि हमें मालूम है कि जम सबको अपनों को देखते - देखते विदा करना है और एक दिन चुपचाप निसंगता से विदा हो जाना है : अब तक के सफर में मैं खुद अपने घर में तीन मौत को झेलकर और आज अपने को इस पथ पर अग्रगामी होते देख या आसपास की दुख भरी कहानियां सुनते - देखते या भुगतते हुए लगता है कि दुख बड़ा है सुख से - इसलिए स्थाई होता है, सहज होता है और अपना सा लगता है
दुआओं की जरूरत है उस युवा को, दुआएं दीजिए कि वो बच जाए थोड़े साल और उसके उन अबोध बच्चों के लिए जिनके सामने पूरा जीवन पड़ा है
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