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Khari Khari - Post of 27 March 2025

किशोरों के लिए एक मप्र भोपाल से एक पत्रिका निकलती है, तमाम तरह की रचनात्मकता और नएपन की बात करती है यह पत्रिका, पर चापलूस और फर्जी लेखकों के जमावड़े से ज़्यादा कुछ नही है उसमें, देश के नामी गिरामी छटे हुए इलीट गैंग के लोग इन कृत्यों में शामिल होकर अपनी कही ना छप सकने वाली रचनाएँ नवाचार के नाम पर परोसकर मानदेय की दौड़ में शामिल रहते है
हद तो यह है कि एक सम्पादक एक ही अंक में चार - पाँच रचनाओं के सम्पादन, कल्पना, अनुवाद और मौलिकता में अपना नाम छापकर ज्ञानी होने का दावा करता है, इसमे अक्सर बहुधा एक ही लेखक या चापलूस कवि की 4,5 रचनाएँ छप जाती है - यदि आप वाजपेयी खानदान या किसी पत्रकार की औलाद हो, या जी हुजूरी में माहिर, हीहीही करके पपोल सकते हैं तो दो पंक्तियों के लिये हजारों रुपये आपकी राह तक रहें हैं
यह एक निज हाउस से छपती है और किसी छुटभैये अडानी अम्बानी टाईप माफ़िया सेठ के अंडर है सब कुछ तो - कोई क्या ही कहेगा, बस अपुन अब ना पढ़ेगा ना पत्रिका लेगा, इस प्रकाशन के बाकी प्रकाशनों से भी आज से मुक्ति ले ली, पुराने अंक किसी जगह दान कर रहा हूँ
***
लम्बी रेस का घोड़ा बनने में ही फ़ायदा है, बोझ तो गधे भी ढो लेते है
मज़ेदार बात है ना ? हालांकि गधों की आवश्यकता को नकारा नही जा सकता, व्यवस्था में उनका होना उतना ही ज़रूरी है जितना किसी चेहरे पर डिठोना

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