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Sharwil in Dewas, Drisht kavi, Khari Khari and Ayodhya Poojan posts from 3 to 10 August 2020

#Sharwil जी कल शाम मुम्बई से घर आये दिसम्बर के बाद, जाहिर है अब घर में रौनक रहेंगी आठ दिन मुम्बई के फ्लैट में घबरा गया बच्चा - पांच महीने में बाहर निकलने का कोई सवाल ही नही था और घर में सारे खिलौने खोलकर भी रखें पर वो मज़ा कहाँ जो खुली और मुक्त जगह में होता है - अब यहाँ खूब बड़ा घर हैं , बरामदा है, झूला, सामने मैदान, खूब सारे पेड़, दरवाजों के सामने से निकलते ट्रक - गाडियाँ, गाय - बकरी और चिड़ियाएँ जो आते जाते रहते है और उनकी प्यारी लेब्राडोर चेरी ताई जिसके साथ वीडियो कॉल पर भी रोज आधा घण्टा बात होती है शरविल जी की याद था कि आजोबा ने केक के फोटो भेजे थे तो बस आज सुबह से " आजोबा पेन केक बनाओ " और आपका आदेश सर आँखों पर मेरे सबसे लाड़ले बच्चे लो जी बन गया शरविल जी का केक, पेन केक तो नही पर अभी जल्दी में बनाया है बाकी अब आठ दिन रोज पसंद चलेगी इन्हीं की

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"आराम से बैठिए , यूँ घूमने से समस्या हल नही होगी और फिर तसल्ली से बताईये क्या हुआ है " - मैंने कहा और चाय का कप बढ़ा दिया, सुबह से आये थे और बेचैनी से टहल रहे थे
"आप समझ नही रहें, साला हमारा परिचय देते है तो उम्र बता देते है कि 1 मई 1965 को जन्में श्री श्री ... के इतने संग्रह है और बाकी सब, पर ये महिला कवियों के परिचय में कोई नही बताता - यहाँ तक कि किताब के पिछले पृष्ठ पर फोटो भी साला जवानी का लगाती है और जन्म दिनांक, साल सब एकदम गायब " - कविराज हाँफने लगे थे
"तो आपको क्या दिक्कत है" - मैंने साँप की बांबी में हाथ डाल दिया था
"रिटायर्ड मास्टरनी भी अंकल या भाईसाब बोल देती है - सबके सामने स्टेज पर , जबकि अभी बाईस साल बाकी है सर्विस बुक के हिसाब से " - कविराज का पारा अब दसवें आसमान पर था
मैंने घर वाली को कहा "सुनो, एक कोल्ड कॉफी और बना दो यार , चाय से बात बनती नही आजकल इस देश में " ....
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बीमा कम्पनी
प्लास्टिक के बर्तन बेचने
बगीचे के माली
प्रजनन स्वास्थ्य
सबका स्वास्थ्य
शिक्षा
मछली
खनिज उत्खनन
शौचालय निर्माण

से लेकर अंतरराष्ट्रीय विधि में विशेषज्ञ या सलाहकार होने की योग्यता हमारे एनजीओ कर्मियों या कवियों में ही हो सकती है
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51 कवियों
52 कहानीकारों
53 उपन्यासकारों
54 आलोचकों
और
55 सर्वगुण सम+पन्न लोगों के नाम बता दीजिए

अभी कमरा साफ किया तो बहुत से सड़ गल गए पुराने कप, ट्राफी और प्रमाणपत्र निकलकर आये - सोचा अटाले वाले को दे दूँ , फिर विचार बदला कि सम्मान कर दूँ
समारोह ऑनलाइन ही करना है - मोतीलाल पहलवान को बुला लूँगा, मुहल्ले के ही है बा साब, 89 के हो गए, प्रेमचंद की कविताएं फारवर्ड कर लेते है वाट्सएप पर, उन्हें ना दिखता है, ना सुनाता है कुछ - शरीर का दाया भाग लकवाग्रस्त भी है - एकाध घँटे उनके घर वाले भी ख़ुश हो जाएंगे कि मुक्त हुए थोड़ी देर तो
बस सब कीमती पुरस्कारों को धो पोछकर रख लिया है, एक शानदार प्रमाणपत्र अभी लेपटॉप पर बना लेता हूँ, रामजी की कृपा से घोलचू विश्व विद्यालय प्रायोजित करने को भी तैयार हो गया है बस वहाँ के कुलपति उजबक शर्मा को झेलना पड़ेगा बाईस मिनिट
आप लोग जरा छाँट बीन दें तब तक ये नाम, और ज्यादा शर्म सॉरी श्रम मत करिए - यही मिल जायेंगे सब नाम
जल्दी प्लीज़ , आज ही शाम को 6 बजे कर देता हूँ - मोतीलाल जी का भरोसा नही कब टपक जाये
और हाँ किसी की किताब का भी विमोचन ऑन लाइन करवाना हो तो करवा लें मोतीलाल जी का भरोसा ....
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"कल कैसा रहा आपका लाइव और फेसबुक पर अकाउंट नही दिख रहा" - अभी फोन करके पूछा मैंने
"साला कोई आया ही नही, 1 मई से सूचना दे रखी थी, रोज 100 लोगों के इनबॉक्स, वाट्सएप पर नियमित याद दिलाता था पर सब करके भी कोई नही आया आखिर लाइव नही हुआ और फेसबुक भी डिएक्टिवेट कर दिया कल रात को ही " - कविराज त्रस्त थे
"सुनिए तो.... " - मैंने कहा
"अब फोन मत करना वरना तुम्हे फोन पर भी ब्लॉक कर दूंगा - साला सुबु सुबु आ गया "- कविराज की आत्मा तड़फ गई थी
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राम के नाम पर
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इतने पटाखे , इतना जोश - विश्वास ही नही कि ये वही देश है जो अभी अप्रैल से अभी तक भिखमंगो की तरह से सड़कों पर था, जूते - चप्पल, सैनिटरी नेपकिन और दो रुपये के बिस्किट के पैकेट के लिए तरस गए थे - यही धर्म अब रोटी देगा - जाओ अब इन्हीं से मांगो अब रोजगार और रोटी
कब तक थाली , लोटा , झाँझ और ढोल बजाकर या रैली और इस तरह के पटाखों पर लोगों का रुपया बर्बाद कर भूखे रखोगे और कंगाल करोगे और यह सब भी ठीक है पर जो सोशल डिस्टनसिंग क़ा मज़ाक सत्ता के शीर्ष से बनाया गया है - उससे बड़ा दोगलापन इतिहास में देखने को नही मिलेगा
बहुत अच्छा बेवक़ूफ़ बनाया - पूरे देश को पांच महीने क़ैद करके रखा और सत्ता से जुड़े लोग सारे नियम तोड़कर मजे करते रहें
सबको बर्बाद करके खुद नेतागण नौटँकी कर कोरोना बाँट रहें हैं -शिवराज सिंह और इनके मंत्री मंडल को ही देख लो विश्वास ना हो तो
सवाल यह है ना कि हम ही सब मूर्ख है तो इन गधों को क्या दोष दें
मार्क्स तो अफीम कहता था यहाँ तो सरेआम जनता को सरकार बाँट रही है 1990 से और जनता साष्टांग प्रणाम के नाटक देख रही है मज़े में और पूर्ण नशे में
जय जय सियाराम
भाड़ में जाओ और मरो भूखे जनता जनार्दन
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काश राम'नाथ के 'राम' को ही सम्मान दे देते तो लगता कि जिस संस्कृति और धर्म की बात करते है वह नज़र आता
पर ब्राह्मणों और साधु संतों से घिरे समारोह में उस पवित्र जगह और प्रक्रिया में एक दलित का प्रवेश कैसे हो सकता था
और सड़कों पर सबसे ज़्यादा धर्म ध्वजा उठाने वाले, भीड़ बढ़ाने वाले अधिकांश दलित युवाओं और नेताओं को सोचना चाहिये कि वे कहां है इस राम राज्य में, उनका स्थान, महत्व या सम्मान कितना है - शम्बूक और शबरी हमेशा जिंदा रहते है याद रखना और राम कभी ये भूलते नही है
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अगस्त की आज़ादी में चार चाँद
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रामो राजमणि सदा विजयते ...
पर मन्दिर बनने से क्या राम राज की स्थापना होगी
ऐतिहासिक दिन है राजनैतिक, सामाजिक दृष्टि से जब पंथ निरपेक्ष राज्य में राज्य का वित्त मन्दिर में लग रहा है, प्रधान कार्यक्रम में जा रहा है, कोरोना की त्रासदी और लाशों के अम्बार के बीच उत्सव मनाने की सनक ने कितना खोखला कर दिया है सबको - केदारनाथ के लिए राज्य का रुपया है, सिंहस्थ के लिए भी, अयोध्या के लिए भी और बाकी सबके लिए है - नही है तो गरीब के लिए - जिसे माह भर में पाँच किलो का गेहूं देकर बेशर्मी से एहसान सरकार जताती है
यह भाजपा की ही नही - कांग्रेस और बाकी सभी पार्टियों की देन है देश को और सबसे ज़्यादा न्याय पालिका की - जिसने देश को समता, स्वतंत्रता, भ्रातृत्व ,अभिव्यक्ति की छूट, वैज्ञानिक मानसिकता बढ़ाने और पंथ निरपेक्ष राज्य जैसे मूल्यों के बजाय पूरे देश को साम्प्रदायिक, अंधविश्वासी और जाहिल बना दिया
मीडिया संस्थानों पर मनमाना प्रचार करने पर लगाम लगाने के बजाय इन्हें खुल्ले सांड की भांति छोड़ दिया - मेरे आराध्य राम ये नही है कम से कम जो इस पूरे प्रचार और धन लिप्सा में शामिल है
गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी के बीच जिस तरह से दीवाली मनाई जा रही है , वह कितना हास्यास्पद है और 1992 का वो मन्ज़र तैरता है आंखों के सामने - रथयात्रा से आज तक कितने लोगों की जान गई और हम 'रामं रमेशं भजे' की बात कर रहें है
कितना दुर्भाग्य है कि ठीक दस दिन बाद हम स्वतंत्रता दिवस मनायेंगे पर क्या ये वो सुबह है जिसका इंतज़ार था, जिन लोगों ने आज़ादी की लड़ाई नही लड़ी पर आज़ादी का भरपूर उपयोग करते हुए देश बर्बाद कर दिया एक लंबी दीर्घकालीन योजना बनाकर - कितना दुखद और शर्मनाक है यह सब देखना 1992 और 2020 के बीच क्या क्या नही हुआ पहलू खान हो या कोई और
बहरहाल, बधाई सबको कि ये कहां आ गए हम
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